मुंबई (विसंकें). लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश सरकार को भारत से भगाने के लिए स्वदेशी, स्वराज, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा का नारा दिया. सार्वजनिक गणेशोत्सव के माध्यम से स्वाधीनता के लिए राष्ट्र जागरण और लोकसंग्रह कर लोगों का नाता राष्ट्र से जोड़ा. इस कार्य के लिए उन्होंने १८९३ में सार्वजनिक गणेशोत्सव का आयोजन का प्रारंभ किया. लोकमान्य तिलक के प्रखर एवं क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित होकर अनेक कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरू किया और स्वतंत्रता के लिए जनजागरण किया. उत्सव में आयोजित किये जाने वाले व्याख्यानों से सर्वसामान्य लोगों को ज्ञान मिलने लगा. मेलों में गाए जाने वाले गीतों से सामाजिक-धार्मिक बातें सुनाने का अवसर मिला. स्फूर्ति देने वाले ऐसे अनेक उपक्रमों का लोगों ने शस्त्रों जैसा उपयोग किया. लोकमान्य तिलक के विचार, और भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल के कार्यों पर दृष्टिक्षेप……..
श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी ने पुणे में १८९२ में सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना कर स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने का प्रयास किया. श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी ट्रस्ट द्वारा अन्याय के विरोध में प्रतिकार करने की ऊर्जा देने वाले, स्वाधीनता संग्राम से लेकर गोवा मुक्ति संग्राम तक क्रांतिकारियों को प्रेरणा देने वाले अनेक उपक्रम चलाए गए. सार्वजनिक गणेशोत्सव के माध्यम से शस्त्रों का आदान प्रदान, शस्त्रों का एकत्रीकरण, क्रांतिकारियों सुरक्षित मार्ग उपलब्ध करवाना, आदि श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी का वाडे से संचालित होता था. अनेक क्रांतिकारी योजनाओं को मूरत रूप मिला, इसलिए इस स्थान को क्रांतिकारियों का मायका भी कहा जाता है.
१८९३ में लोकमान्य तिलक के करकमलों से श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपती की स्थापना हुआ. स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने हेतु अनेक पहलवानों को संगठित किया गया. क्रांतिकारियों का सहयोग किया.
लोकमान्य तिलक की धरोहर नाम से प्रसिद्ध केसरीवाडा में १८९४ में सार्वजनिक गणेशोत्सव की स्थापना हुई. गणेशोत्सव द्वारा जन प्रबोधन करना तिलक जी का मुख्य उद्देश्य था. इसी के कारण इस गणेशोत्सव में हमेशा प्रबोधनात्मक भाषणों पर जोर दिया गया. तिलक जी स्वयं यहां पर भाषण किया करते थे. केसरीवाडा गणेशोत्सव का वैशिष्ट्य था, प्रबोधनात्मक कार्यक्रम एवं भाषणों पर दिया गया जोर.
पुणे के ग्रामदेवता अर्थात कसबा पेठ गणपति. स्वाधीनता पूर्व कालखंड में लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने के उद्देश्य से मेलों/सभाओं का आयोजन किया जाता था. १९०४ में हुए एक संस्कृत श्लोक पाठान्तर कार्यक्रम में स्वातंत्र्यवीर सावरकर उपस्थित थे. इस मंडल ने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना, स्वाधीनता का महत्व, विषयों की जानकारी कथा, मेले, सभाओं द्वारा जनसामान्य तक पहुंचाई.
तुलसी बाग़ गणपति. १९०१ में स्थापित गणेशोत्सव मंडल के कार्यकर्ता पुणे के क्रांतिकारियों की गुप्त सभाओं में सहभागी होते थे. परिसर के कार्यकर्ता इकट्ठे होकर स्वाधीनता प्राप्ति की चर्चा किया करते थे और समाज प्रबोधन के लिए उस चर्चा का उपयोग करते थे.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने पुणे यात्रा के दौरान शनिवार वाडा पर पुणे के निवासियों से मदद का आह्वान किया था. अनेक लोग नेताजी की सभा में उपस्थित थे. पुणे के अखिल मंडई मंडल की गंगूबाई नामदेवराव मते ने अधिक समय गवाए बिना अपने सोने के कंगन और कानों की बालियाँ उतारकर सुभाषबाबू को सोंप दी थीं.. मंडल के व्यापारी सदस्यों ने भी कुछ रकम और सोना दिया.
स्वाधीनता पूर्व कालखंड में पुणे में एक बड़ा आन्दोलन हुआ था. पुणे के अखिल मंडई मंडल के अनेक व्यापारियों ने इस आन्दोलन में सहभाग लिया. ऐसे एक आन्दोलन के लिए पुणे से जाने वाली एक ट्रेन में बैठे कार्यकर्ता और सदस्य मुंबई से भूखे हैं, ऐसा ध्यान में आया. अखिल मंडई मंडल द्वारा सभी व्यापारी बंधु, महिला वर्ग और हमाल ने अत्यल्प समय में हजारों लोगों के खाने का प्रबंध किया. अपनी अपनी दुकानों में चूल्हे जलाकर, अपने मजदूर और घरवालों को साथ लेकर भोजन की व्यवस्था की गई.
१९२८ में स्थापित गणेश गल्ली, लालबाग सार्वजनिक उत्सव मंडल ने गणेशोत्सव में अलग-अलग झांकिया बनायीं. झांकियों का उद्देश्य और स्वरूप ऐसा रहता था, जिससे स्वाधीनता संग्राम के प्रति समाज जागरूक हो. १९४५ की संस्मरणीय झांकी में दिखाया गया था – नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वाधीनता के सूर्योदय का रथ चला रहे हैं और रथ में श्रीगणेश विराजमान हैं. इस झांकी को इतनी प्रसिद्धि मिली कि १० दिनों के बदले ४५ दिनों बाद गणेश विसर्जन किया गया.
लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल द्वारा १९३४ से १९४७ तक विविध राष्ट्रीय विचारधारा के नेताओं के भाषण आयोजित किये गए. देशभक्ति की भावनाओं को बढ़ा देने वाली झाकियां, सजावट तैयार की जाती थी.
स्वाधीनता ही ध्येय मानकर चिंचपोकली चिंतामणि सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल ने जनजागृति के लिए अखंड भारत, श्रीराम की महती, वैकुंठगमन जैसी झांकियां तैयार की थीं.
१९२० में स्थापित ठाणे के श्री गणेशोत्सव लोकमान्य आली मंडल ने १९३१ में मंत्रजागर आयोजित न करते हुए अस्पृश्यों के मेले का आयोजन किया था. १९२५ में इसी तरह के एक मेले में ठाणे के कार्यकर्ताओं ने दादर में आकर एक मेले में सहभाग लिया था और उत्तम सादरीकरण का स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया था.
कल्याण में १८९५ में स्थापित त्वष्टा कसार गणेशोत्सव मंडल में कुश्ती में पारंगत अनेक कार्यकर्ता थे. मंडल के कार्यकर्ताओं द्वारा मैदान में नागरिकों को कुश्ती, लाठीकाठी, मलखंभ सिखाकर स्वसंरक्षण की सीख दी जाती थी.
लोकमान्य तिलक के प्रखर और क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित खामगाव, बुलडाना के तानाजी गणेशोत्सव मंडल के कार्यकर्ताओं ने स्वाधीनता संग्राम सहित गोवा मुक्ति आन्दोलन में भी जेल में समय गुजारा है.