पारंपरिक वेशभूषा में कलश पूजा और भव्य कलश यात्रा का आयोजन
गाजियाबाद. छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक (हिन्दू साम्राज्य दिवस) के उपलक्ष्य में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया. हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के उपलक्ष्य में 2019 से निरंतर कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. समाज के विभिन्न वर्गों के लोग कार्यक्रम में प्रतिभागिता करते हैं.
कार्यक्रम का शुभारंभ प्राचीन श्री दूधेश्वरनाथ पीठ से हुआ. जिसमें 1100 माताओं-बहनों ने पारंपरिक वेशभूषा में कलश पूजा की. तत्पश्चात भव्य पूजित कलश यात्रा निकाली गई. यात्रा शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए बलिदान पथ पर समाप्त हुई. यात्रा में छत्रपति शिवाजी महाराज की अतिसुंदर झांकी के साथ 101 खड्गधारी बहनों का संचलन निकला. विभिन्न स्थानों पर झांकी की आरती व मंगल गीत की प्रस्तुति हुई. पूरी यात्रा की सुरक्षा एवं सफलता में राष्ट्र सेविका समिति की 50 बहनों का सहयोग रहा. घोष और नृत्य के साथ यात्रा की समाप्ति के पश्चात मंच पर प्रस्तुति रही.
मंचीय कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि महेंद्र जी (क्षेत्र प्रचारक), मुख्य वक्ता प्रो. राकेश सिन्हा (वरिष्ठ विचारक व सांसद) और कार्यक्रम अध्यक्ष महंत श्री नारायण गिरी जी महाराज ने भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया.
मुख्य अतिथि महेंद्र जी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना कर जैसे को तैसा जवाब देने की प्रथा शुरू की. शिवाजी महाराज एक कुशल प्रशासक थे. उन्होंने विदेशी व्यापारियों पर कर लगाया और हिन्दू व्यापारियों सुविधाएं प्रदान कीं. जो लोग धर्म बदल चुके थे, उन्हें अपने धर्म में लाने के लिए विशेष कार्य किया. शिवाजी महाराज ने समाज को संगठित करने पर बल दिया. छत्रपति शिवाजी एक ऐसे साहसी और संकल्पित योद्धा थे, जिन्होंने 17वीं शताब्दी में ‘हिन्दवी स्वराज्य’ के संस्थापक के रूप में ऐतिहासिक कार्य किया. ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, 6 जून, 1674 को अपूर्व भव्यता के साथ, वह छत्रपति, ‘सर्वोच्च संप्रभु’ के रूप में सिंहासन पर बैठे.
मुख्यवक्ता प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक साम्राज्य की स्थापना की. मुगल आक्रांता शिवाजी महाराज के किलों को तोड़ने पर विचार करने लगे तो शिवाजी ने 332 किलों की स्थापना की. औरंगजेब अपने जीवन काल में 27 किले ही तोड़ पाया.
राकेश सिन्हा ने कहा कि देश में 6 विभाजन हुए कंधार, भूटान, नेपाल, तिब्बत, लंका, म्यांमार 1947 में पाकिस्तान हमसे अलग हो गया. उन्होंने विभाजन को इतिहास में ना पढ़ाए जाने को एक साजिश बताया. उन्होंने समाज से एकजुट होकर देश को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होने का संकल्प करवाया.
कार्यक्रम अध्यक्ष मंहत श्री नारायण गिरी जी ने शिवाजी की गाथा बताते हुए सभी को आशीर्वचन प्रदान किया. उन्होंने कहा कि प्रबोधन के लिए ग्रामीण स्तर पर और ज्यादा कार्य करने पर जोर दिया जाए. जातिवाद को मिटाना संभव नहीं है, पर समरसता हो सकती है. उन्होंने जीजाबाई द्वारा बाल शिवा को प्रदत्त शिक्षा के संबंध में विस्तार से चर्चा की.
समारोह में 21 बालकों का शिवाजीराजे के प्रतिरूप में राज्याभिषेक किया गया, साथ ही बालिकाओं द्वारा माता जीजाबाई के स्वरूप का वैभवशाली प्रदर्शन किया गया. 100 से अधिक बच्चे उत्साहपूर्वक छत्रपति शिवाजी महाराज की वेशभूषा में उपस्थित रहे.
हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के 350वें गौरवशाली वर्ष को नाटकबाज थिएटर द्वारा नाट्य मंचन कर प्रस्तुत किया गया. नाट्य मंचन द्वारा बताया गया कि शिवाजी ने एक महान ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना करते हुए विभाजनकारी और दमनकारी इस्लामी शासन का प्रतिरोध किया. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान और प्रसार सुनिश्चित किया. अपनी माँ जीजाबाई, समर्थ गुरु रामदास और भारत के अन्य संतों और सम्राटों के उच्चतम आदर्शों से प्रेरित होकर, न केवल हिन्दुओं की सुप्त चेतना को जागृत किया, बल्कि उन्हें संगठित करते हुए मुगल शक्ति को खुली चुनौती दी.