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स्वास्थ्य विभाग की टीम ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र के गांव में जाकर किया टीकाकरण

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नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य जनता व जनजाति समाज को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव रहता है. नक्सली बेहतर सुविधाओं में अड़चन पैदा करते हैं.

कोरोना संकट से जंग में देशभर में टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है तो बस्तर के इन क्षेत्रों में टीकाकरण में समस्याएं सामने आ रही है. इसके बावजूद स्वास्थ्य कर्मी स्थानीय लोगों को सुरक्षित रखने और महामारी से बचाने के लिए अपनी जान पर खेलकर उन्हें वैक्सीन लगाने पहुंच रहे हैं.

कुछ दिन पहले बीजापुर जिले में माओवादियों ने आतंकी हमला कर सुरक्षाकर्मियों को अपना निशाना बनाया था, उसी बीजापुर के जिला मुख्यालय से लगभग 67 किलोमीटर दूर एक गांव में पहाड़ और नदी पार कर पथरीले रास्ते पर चलते हुए मेडिकल टीम पहुंची और ग्रामीणों को वैक्सीन लगाई.

20 अप्रैल को मेडिकल टीम बीजापुर जिले के भैरमगढ़ ब्लॉक के अबूझमाड़ की सीमा में स्थित माओवाद से प्रभावित गांव ताकीलोड पहुंची थी. यहां पर सभी का टीकाकरण करने के बाद उन्हें वापस पहुंचते-पहुंचते रात के 10:00 बज गए.

जिला मुख्यालय से 67 किलोमीटर और भैरमगढ़ से तकरीबन 22 किलोमीटर दूर अबूझमाड़ के किनारे गांव में लोगों के टीकाकरण के लिए मेडिकल टीम में भैरमगढ़ अस्पताल के डॉक्टर सत्य प्रकाश खरे, डॉक्टर रमेश तिग्गा, बलराम कोर्राम, रानी मंडावी, महेंद्र कुरसम एवं तालीकोड गांव के शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शामिल थे.

मेडिकल टीम तकरीबन सुबह 10:00 बजे निकली थी, उन्हें पथरीले रास्तों और खेतों से गुजरना पड़ा. बीच में इंद्रावती नदी पर पुल नहीं होने के कारण अपनी बाइक को नाव में डालकर नदी पार करनी पड़ी. लगभग 12:30 बजे मेडिकल टीम गांव में पहुंची.

स्वास्थ्य कर्मियों ने गांव वालों को कोरोना से बचने के उपाय बताए. मेडिकल टीम की निगरानी में गांव के 60 लोगों का टीकाकरण किया गया, उन्हें 30 मिनट तक ऑब्जर्वेशन में रखा गया और उसके बाद उन्हें घर जाने की अनुमति दी गई.

साथ में डॉक्टरों की टीम होने की वजह से गांव के 200 ग्रामीणों का मेडिकल परीक्षण भी किया. ग्रामीणों की जांच में पांच को मलेरिया के लक्षण, तथा दो एनीमिया के भी मरीज मिले. खुजली के शिकार बच्चे एवं बड़े भी मिले. कुछ गर्भवती महिलाएं भी थी. सभी को मेडिकल टीम ने परीक्षण के बाद दवा दी और उन्हें सतर्कता बरतने को कहा.

वापसी में जब मेडिकल टीम निकल रही थी तो भारी बारिश की वजह से उन्हें 2 घंटे रुकना पड़ा और अंततः रात के 10:00 बजे मेडिकल टीम भैरमगढ़ पहुंची.

यह बताता है कि किस तरह एक लोकतांत्रिक सिस्टम अपने दूरस्थ अंचलों में बसने वाले ग्रामीणों को भी स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए सभी परेशानियों और दिक्कतों का सामना करने के बाद भी नहीं रुकता और इसी लोकतांत्रिक सिस्टम को खत्म करने के लिए माओवादी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं.

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