चैन्नई. तमिलनाडु की एमके स्टालिन की नेतृत्व वाली डीएमके सरकार केवल सनातन विरोधी ही नहीं है, अपितु उसे ‘भारत माता’ से भी नफरत है. यही कारण रहा कि भाजपा कार्यालय परिसर में लगी भारत माता की प्रतिमा को हटवा कर जब्त कर लिया गया. लेकिन, अब प्रशासन के इस कृत्य पर मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै बेंच ने फटकार लगाते हुए प्रतिमा को वापस करने का आदेश दिया है.
मदुरै बेंच के जस्टिस आनंद वेकेंटेश ने प्रशासन द्वारा भाजपा कार्यालय से प्रतिमा को हटाने पर टिप्पणी की – ये राज्य सरकार का कार्य नहीं है कि वे किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी के अंदर चल रही गतिविधियों पर नियंत्रण करने का प्रयास करे. इस बात में किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं है कि प्रशासन ने मनमानी की है. न्यायालय ने आशंका जताई कि हो सकता है पुलिस-प्रशासन ने ये सब किसी के दबाव में आकर किया हो.
न्यायालय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन बताया. जस्टिस आनंद ने फटकार लगाते हुए चेतावनी दी कि हम कल्याणकारी राज्य में रहते हैं. ये बहुत ही निंदनीय है, ध्यान रखें भविष्य में दोबारा ऐसा न हो. संवैधानिक अदालत इस कृत्य को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती है. अगर कोई व्यक्ति अपने विवेक से कोई भी कार्य करता है तो ये कभी नहीं कहेगा कि देश से प्रेम और अपनी देशभक्ति को व्यक्त करना किसी भी प्रकार से समाजिक हितों को नुकसान पहुंचाता है.
भारत माता की प्रतिमा को घर में या आंगन में रखना श्रद्धा का प्रतीक माना जा सकता है.
घटना की शुरुआत साल 2022 से होती है. जब उच्च न्यायालय के ही एक आदेश को आधार बनाकर डीएमके सरकार ने भाजपा को टार्गेट किया. उसने भाजपा को एक नोटिस भेजकर कहा कि किसी भी नेता की प्रतिमा को स्थापित नहीं किया जा सकता है. राज्य सरकार का तर्क था कि जिन प्रतिमाओं से सार्वजनिक अशांति का खतरा हो, उन्हें हटाना होगा. बाद में भारत माता की प्रतिमा को सामाजिक अशांति का प्रतीक बताते हुए भाजपा कार्यालय से पुलिस ने हटा दिया था.