कोरोना महामारी के कारण वर्तमान में लॉकडाउन चल रहा है. बच्चों की गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं. बच्चे घर पर खाली बैठ या मोबाइल, टीवी देख समय गुजारें, इससे अच्छा है कि बच्चों को प्रकृति के प्रति जागरूक किया जाए. इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हिंगोली के माध्यमिक शिक्षक अन्ना जगताप ने ऑनलाइन प्रकृति विद्यालय प्रारंभ किया है. बच्चों को सप्ताह में एक घंटा पेड़ों के लिए देना चाहिए, यही सोच इसके पीछे है.
वर्तमान में, लगभग 50 बच्चे प्रकृति विद्यालय में भाग ले रहे हैं. और अपने-अपने घरों में नर्सरी स्थापित कर रहे हैं. ज़ूम एप के माध्यम से इस स्कूल की घंटी प्रत्येक शनिवार को शाम ठीक पाँच बजे बजती है. 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे ऑनलाइन स्कूल में आते हैं और उस दिन कक्षा में सीखे गए पाठ का छह दिनों में प्रात्यक्षिक करते हैं.
प्रकृति स्कूल परियोजना के बारे में अन्ना जगताप कहते हैं कि पिछले तीन वर्षों से हम प्रकृति स्कूल परियोजना को लासंचालित कर रहे हैं. हमारे घर में कई अनावश्यक चीजें रहती हैं, जैसे कार्ड बोर्ड बॉक्स, तेल के कैन-बैग, पीने के पानी की बोतलें, प्लास्टिक की थैलियां इन चीजों का उपयोग पौधों के संवर्धन के लिए किया जा सकता है.
प्रकृति स्कूल के समय के दौरान सिखाई पद्धति के अनुसार इन वस्तुओं में देशी बीज डाले जाते हैं. प्रत्येक बच्चे को प्रतिमाह तीस या अधिक पौधे लगाने होते हैं और अपनी नर्सरी बनानी पड़ती है. उस नर्सरी को लड़के या लड़की के नाम दिए जाते हैं.
पिछले साल, अवनी जगताप ने 700 पौधे लगाए. नासिक के विरुपाक्ष, परभणी की अर्पिता, आराध्या जैसे सैकड़ों बच्चों ने अब तक इस पहल में भाग लिया है. इनमें दुर्लभ पेड़ काशीबेल और हादग्या शामिल हैं. स्कूल में न केवल देसी पौधों की खेती के बारे में बताया जाता है, बल्कि इसके फलों के पोषण मूल्य के बारे में भी बताया जाता है. आम, टिड्डे, बैंगनी और इमली के साथ-साथ हादग्या के फूल और बेलफल हमारे शरीर के लिए कितने महत्वपूर्ण और उपयोगी हैं, इसका ज्ञान विज्ञान के आधार पर दिया जाता है.
पालघर, नासिक, नांदेड़, पुणे, संभाजी नगर, नागपुर, सांगली, परभणी, यवतमाल आदि विभिन्न जिलों के बच्चे अब तक अभियान में भाग ले चुके हैं. इस साल लॉकडाउन की वजह से आभासी माध्यम से प्रकृति विद्यालय प्रारंभ किया गया. जल्द ही १४ साल के आगे के किशोर और युवकों के लिए यह उपक्रम शुरू होने वाला है.
अन्ना जगताप के साथ नांदेड़, नासिक और पालघर के विभिन्न शिक्षक और छात्र समूह ऑनलाइन माध्यम से मिलते हैं. पौधारोपण पर चर्चा करते हैं और बाकी के छह दिन में प्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं. अलग-अलग गांव में लगाए पौधों को जीवित रखने के लिए तथा उनकी देखभाल के लिए गांव के बच्चों को एक साथ आना चाहिए और रविवार को पेड़ों को पानी देना चाहिए.
उनका मानना है कि यदि हम किसानों को विकसित करना चाहते हैं, तो शून्य उत्पादन लागत वाला उपाय करना बहुत जरूरी है. इसके लिए लंबे समय तक चलने वाले देशी वृक्ष तथा फलों के वृक्ष लगाना चाहिए. शुरुआत में वृक्षों की देखभाल करनी पड़ती है. भविष्य में दीर्घकाल तक उत्पादन देते हैं. किसानों को सुझाव दिया कि प्रत्येक माता-पिता को हर साल अपने बच्चे के नाम पर प्रति एकड़ 30 पौधे लगाने चाहिए और अगले तीन वर्षों तक उसका पालन पोषण करना चाहिए. इससे मराठवाड़ा जैसे शुष्क क्षेत्र में भी उत्पादन और प्रकृति संरक्षण मिलेगा.
अन्ना जगताप ने न केवल किसानों को उत्पादन के बारे में बताया है, बल्कि उत्पाद की बिक्री की एक श्रृंखला भी बनाई है. 110 व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से, ये फल और उत्पाद खुदरा बाजार के साथ-साथ घर तक भी पहुंचते हैं. इस नेटवर्क के माध्यम से हजारों टन गेंदे, हजारों तरबूज बेचने का रिकॉर्ड बनाया है.
अन्ना जगताप कहते हैं, जिस दिन मेरे पिता की मृत्यु हुई, मैंने अपना पूरा जीवन प्रकृति संरक्षण और किसानों के कल्याण के लिए समर्पित करने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि नेचर स्कूल परियोजना शुरू की क्योंकि स्कूली बच्चे इस उम्र में अपने जीवन के लिए प्रकृति संरक्षण की शिक्षाओं को संजोएंगे.