देवास जिले का अंतिम गांव है, तिवड़िया. गांव बारेला समाज का है, यानि जनजातीय गांव. जनजातीय गांव है तो सबसे पहले गिद्ध दृष्टि पड़ी मिशनरी महोदय की, मिशनरियों के पास्टर और नन पेंठ बनाने के प्रयास करने लगे, रविवार की गिरिजाघर की प्रार्थना में आने और उसके कारण दु:खों को भगाने की बात कहने लगे. लेकिन अपनी जड़ों से मजबूती से जुड़े इस गांव के एक भी व्यक्ति की अपने धर्म के प्रति निष्ठा को थोड़ा भी नहीं हिला सके. ग्रामीणों ने उन्हें सादर विदा किया, जैसे हिन्दू करता है.
वर्ष 2010 के आसपास का समय होगा, ग्रामीण नशे में धुत्त रहते, देव प्रथाओं में शराब की अनिवार्यता का अवैधानिक लाभ उठाया जाता, नालियों -सड़कों में पड़े लोग मिल जाते या मदिरा के प्रभाव से लोगों को अनाप – शनाप गालियां बकते लोग.
इसी दौरान गांव में “सेवा भारती” पहुंची, कुछ बैठकें हुई और भागवत कथा करवाने की योजना बनी. योजना में यह भी तय हुआ कि जब तक भागवत कथा चलेगी, तब तक कोई शराब नहीं पीएगा. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो गांव में किसी ने शराब नहीं पी थी. यहीं से गांव के दिन बदलना प्रारंभ हुए, ग्रामोदय होने लगा.
भागवत कथा प्रतिवर्ष होने लगी. गांव में सेवा भारती संस्कारों के बीज बोने लगी और आज कुछ वृद्धों के अलावा कोई भी ग्रामीण शराब नहीं पीता.
सेवा भारती ने बच्चों के पढ़ने और गढ़ने की व्यवस्था की, महानगरों के छात्रावासों में भेजा और आज गांव के कई बच्चे उच्च पदों पर पदस्थ हैं. गांव के एक लड़के ने ऊंची डिग्रियां प्राप्त कीं और फिर सरपंच बन गांव की सेवा करने की ठानी, आज वो गांव को गांव बनाने में लगा है.
इस उदयकाल में “भगवतियां” कैसे पीछे रह सकती थीं. उन्होंने अपने भजनों के समूह बनाए. भजन के समूह “स्वयं सहायता समूह” बन गए और आज ये देवियां अपने घरों में कुछ अच्छा करने में योगदान दे रही हैं, स्वयं को आत्मनिर्भर बना रही हैं. हमारी “फेमिनिज्म” की ओर आकर्षित बहनों को एक बार इन्हें देखना चाहिए तो समझ जाएंगी, कि “नारी सशक्तिकरण” का सत्व क्या है.
गांव बारेला जनजाति समाज का है, कुलदेवी “गुजरात” में बताई गई. तो गांव का गांव अपनी विस्मृत हो चुकी कुलदेवी को खोजने के लिए निकला. भगवती के दर्शन किए और आग्रह किया कि हम सब तिवाड़िया में आ बसे हैं. आप भी आइये. मां के लिए एक ग्रामीण ने अपनी भूमि दान दे दी. मां मोगरा देवी आ जाएगी तो फिर “मेरा यीशु -यीशु” वाले इन्हें अपने मूल से काट नहीं पाएंगे.
बच्चे पढ़ रहे हैं, ग्रामीण उद्यम कर रहे हैं. जिजाऊ अपने शिवबा को संस्कार दे रही है. “तिवड़िया” वैसा ही बन रहा है, जैसा भारत के गांवों को होना चाहिए. जिसके लिए कहा गया “ग्रामोदय से राष्ट्रोदय”.
गांव शराब मुक्त सरकार की आबकारी नीति से नहीं हुआ, किसी विज्ञापन से प्रभावित होकर भी नहीं हुआ. वह शराब मुक्त और संस्कार युक्त कुछ जीवनों के वहां खपने से हुआ है. अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति की इच्छा को तजकर किसी सामाजिक कार्यकर्ता ने अपने सुखों को त्याज्य कर इन गांवों में धूल छानी होगी, मिशनरियों के षड्यंत्रों से योजनापूर्वक कोई संगठन लड़ा होगा. इन्हीं ग्रामीणों की गालियां भी खाई होंगी, जो आज प्रशंसा करते नहीं थक रहे. तब जाकर एक दशक में इस गांव की तस्वीर कुछ संवर रही है.
देश सरकारों से नहीं बदलता, समाज बदलता है. कुछ लोग बदलते हैं जो खपते हैं जीवन भर, “भारत मां का मान बढ़ाने को”.