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कैसे बदली संभल की डेमोग्राफी, 1978 की घटना

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संभल की शाही जामा मस्जिद सर्वे का आदेश स्थानीय अदालत ने 19 नवंबर को जारी किया था. 24 नवंबर को जब कोर्ट कमिश्नर की टीम मस्जिद का सर्वे करने के लिए पहुंची तो वहां भीड़ ने हिंसा की घटना को अंजाम दिया. पुलिस पर पत्थरबाजी हुई और घटना में पांच लोगों की मौत हो गई.

ताजा घटनाक्रम में कार्तिकेय महादेव मंदिर मिलने के बाद मामला और गहराया है. 46 वर्ष बाद संभलेश्वर महादेव मंदिर के पट खुलने के बाद अब कई सवाल उठने लगे हैं. 46 वर्ष तक मंदिर का ताला बंद क्यों रहा? 46 साल पहले ऐसा क्या हुआ था, जिस कारण मंदिर में ताला लगाकर लोगों को यहां से जाना पड़ा?

संभल में 1978 के भड़की हिंसा पर चर्चा की मांग को लेकर सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में हंगामा हुआ. समाजवादी पार्टी विधायकों ने मुद्दे को उठाया. चर्चा के बाद मुख्यमंत्री जब जवाब देने के लिए उठे तो उन्होंने 1978 की उस घटना के काले अध्याय को खोलकर रख दिया. दावा किया कि 1978 के दंगों में 184 हिन्दुओं की मौत हो गई थी.

उन्होंने संभल के अल्पसंख्यक हिन्दुओं का जिक्र किया. संभल में मिले मंदिर का इतिहास बताया जो वर्षों से बंद पड़ा था. संभल में मिले मंदिर परिसर से कई और मूर्तियां मिली हैं. इनमें बजरंगबली, नंदी, गणेश की मूर्तियां शामिल हैं. स्वास्तिक के चिह्न वाली ईंटें और कार्तिकेय की खंडित मूर्ति भी वहां मिली हैं.

दंगों के बाद से ताला

हिन्दू पक्ष की ओर से दावा किया जा रहा है कि कार्तिकेय महादेव मंदिर में 1978 के दंगों के बाद से ताला लगा था. चार दशक बाद मंदिर का ताला खुला है. मंदिर में विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ शुरू हुआ है. मंदिर के पास स्थित कुंए से अवैध अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई चल रही है. आखिर 1978 में संभल में क्या हुआ था? 1978 में हुए दंगों के बाद ही संभल से पलायन शुरू हुआ. डर और दहशत के कारण उन्हें अपने प्राचीन मंदिर पर ताला लगाकर जाना पड़ा.

मंदिर के कपाट खुलने के बाद दर्शन करने आने वाले लोगों का कहना है कि 1978 के दंगे ने नफरत का माहौल बनाया. जान के डर के कारण हिन्दू पलायन कर गए. जिस स्थान पर मंदिर मिला है, एक समय वहां 45 हिन्दू परिवार रहते थे. बाद में लोग घर बेचकर वहां से चले गए.

हिन्दू वर्ग के लोगों का कहना है 1978 के दंगों के बाद संभल हम लोगों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया था. संभल नगरपालिका इलाके में कभी 45 प्रतिशत हिन्दू आबादी के रहने का दावा किया गया है. अब वहां केवल 10 प्रतिशत हिन्दू बचे हैं. संभल के डीएम और एसपी ने न्यूज चैनल आजतक से बातचीत में कहा कि संभल नगरपालिका में आजादी के समय हिन्दुओं की आबादी 45 प्रतिशत थी. यह अब 15 से 20 प्रतिशत है. स्पष्ट है कि संभल नगरपालिका में हिन्दुओं की आबादी घटी है.

29 मार्च 1978 को भड़की हिंसा ने संभल में भाईचारे का गला घोंट दिया. आज भी संभल के हिन्दू इस तारीख को सुनकर सिहर जाते हैं.

16 सांप्रदायिक दंगों का इतिहास

संभल में लगातार सांप्रदायिक दंगे भड़कते रहे हैं. आजादी के बाद से अब तक संभल में 16 बार सांप्रदायिक हिंसा हुई. इसमें 213 लोगों की मौत हुई. मरने वालों में 209 हिन्दू और 4 मुसलमान शामिल हैं. वर्ष 1947 में हुए दंगे में एक व्यक्ति की मौत हुई थी. वर्ष 1948 में 6 लोगों की मौत हुई. वर्ष 1958 और 1976 के दंगों में 7 लोगों की मौत हुई. वर्ष 1978 में दंगा भड़का, जिसमें 184 लोग मारे गए. वर्ष 1980 में दंगा हुआ, इसमें एक मौत हुई. इसके अलावा वर्ष 1982, 1986, 1992, 1995 और 2019 में संभल में दंगे हुए.

मुख्यमंत्री ने विधानसभा में संभल दंगों का जिक्र करते हुए आंकड़ा पेश किया. 1947 से अब तक हुए दंगों में हुई मौतों का आंकड़ा सामने रखा. 1978 के दंगे का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस साल 184 हिन्दुओं को सामूहिक रूप से जला दिया गया था. दंगों के कारण कई महीनों तक लगातार कर्फ्यू लगा रहा.

संभल में भड़के 1978 के दंगे का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि संभल में एक कारोबारी की निर्मम हत्या कर दी गई. कारोबारी लोगों की आर्थिक मदद करते थे. दंगों के दौरान हिन्दुओं ने उस कारोबारी के घर में शरण मांगी थी. पहले उनके हाथ काटे गए, फिर उनके पैर और गला काट दिया गया. इसके बाद भी लोग सद्भाव की बात करने का साहस कर रहे हैं. बजरंगबली का मंदिर अब दोबारा खोला गया है. इन लोगों के विरोध के कारण 1978 से यह बंद रखा गया था.

सवाल किया कि 22 कुएं किसने बंद किए? संभल में तनावपूर्ण माहौल किसने बनाया? ये वही लोग हैं, जिन्होंने अदालत के आदेश पर मस्जिद के सर्वे के दौरान पथराव किया होगा. जिन लोगों ने संभल की शांति भंग की और माहौल खराब किया. हिंसा भड़काने वाले किसी भी आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा.

इनपुट साभार – नवभारत टाइम्स

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