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‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ में निहित मानवाधिकार

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सूर्यप्रकाश सेमवाल

सर्वे भवन्तु सुखिनः के भारतीय सनातन विचार में “शन्नो अस्तु द्विपदे शन्नो अस्तु चतुष्पदे”  का व्यापक भाव विद्यमान है. बुद्धि, विवेक और चेतना के प्रतीक मनुष्य के अधिकार ही नहीं, हम निरीह जीवों – जिनमें दोपाए और चौपाए शामिल हैं, उनकी रक्षा, उनके कल्याण और अधिकारों की भी पर्याप्त  चिंता करते हैं. भारत में सबके मानवाधिकार सर्वथा सुरक्षित हैं. चाहे हमारी आधी आबादी का हिस्सा मातृशक्ति हो, चाहे दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले मूल निवासी अथवा वनवासी, चाहे वंचित और पिछड़े या अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले, हम सबके साथ परस्पर समता और न्याय के पक्षधर रहे हैं.

भारत की संस्कृति और परंपरा ही सर्व समावेशी है, हम सबसे आत्मीयता और प्रेम का भाव रखते आए हैं. अयं निजः परोवेति – के भाव में न पड़ते हुए, भारत वसुधैव कुटुंबकं का व्यापक संदेश पहले से ही दुनिया को देता आया है. संगच्छध्वं संवदध्वं, सं वो मनांसि… के जीवन सूत्र को अपनाते हुए अपने यहां साथ चलने, साथ बोलने और एक समान मन बनाने की परंपरा चलती आई है जो शिव संकल्प की ओर ले जाती है.

इन अखंड सनातन जीवन मूल्यों की अनुपम धरोहर के साथ साढ़े सात दशक की स्वाधीनता प्राप्ति और विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारतीय संविधान में भी ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि भारत में मानवाधिकारों के विषय में कोई प्रश्न खड़े नहीं कर सकता.

19वीं सदी के दूसरे दशक में ही सत्य, अहिंसा और प्रेम के संदेशवाहक महात्मा गांधी ने काले गोरे का भेद मिटाने के लिए सात समंदर पार दक्षिण अफ्रीका से रंगभेद के विरुद्ध वैश्विक आंदोलन छेड़ा था.

आज जब समूचे विश्व में धर्म, मजहब, नस्ल और पूंजी के आधार पर भेदभाव ही नहीं मानवाधिकारों का क्रूर हनन और मनुष्यों का उत्पीड़न और दमन हो रहा है, उस दृष्टि से भारत आज भी विश्व में न्याय और समता के साथ सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के कालजयी विचार को क्रियान्वित कर दुनिया को अचंभित कर रहा है.

विश्व में साम्राज्यवादी विस्तार के लिए कुख्यात चीन अपने शिंजिंयांग प्रांत में उइग्गर मुसलमानों का कैसा शोषण, दमन और उत्पीड़न कर रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है. मस्जिदों को जमींदोज कर दिया गया है. उइगर मुसलमानों को डिटेन्शन सेंटर में प्रताड़ित किया जा रहा है तो मुस्लिम महिलाओं के बुर्के पर कड़ा प्रतिबंध लगाया गया है.

विश्व के लिए आतंक का पर्याय बन चुका पाकिस्तान भारत में मुसलमानों का रोना रोते नहीं थकता, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू, जैन, और बौद्धों का उत्पीड़न क्या मानवाधिकार का हनन नहीं है. पकिस्तान में जिस प्रकार छोटी – छोटी हिन्दू और ईसाई बच्चियों का जबरन यौन प्रताड़ना के साथ इस्लाम में कनवर्जन किया गया है वो दुनिया के सामने है. अफग़ानिस्तान के बामियान में तालिवान ने जिस प्रकार विशाल बौद्ध प्रतिमाएं ध्वस्त कीं, क्या वो मानवाधिकार का हनन नहीं था? आईएस और जिहादी कट्टरपंथी जिस प्रकार अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और आस्ट्रिया सहित विश्वभर में गैर इस्लामिक लोगों पर बर्बर अत्याचार कर रहे हैं, उनके मानवाधिकारों पर क्यों कुछ नहीं बोला जाता?

भारत जैसे एक आदर्श, सभ्य और लोकतान्त्रिक समाज में जहां श्रेष्ठ मूल्य परंपरा और मानवीय संवेदना के साथ एक शक्तिशाली सर्वमान्य संविधान है, वहां किसी छोटी सी घटना की वास्तविकता और सत्यता परखे बिना तिल का ताड़ बनाकर प्रस्तुत करना और मानवाधिकार की दुहाई देना कहाँ तक उचित है? मानवाधिकार का शोर मचाने वालों को अपने गिरेबान में झांकते हुए निरीह और निर्दोष लोगों पर घोर अमानवीय अत्याचार, क्रूर दमन और यंत्रणा को तुरंत रोकना चाहिए, तभी संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसंबर को घोषित मानवाधिकार दिवस की सार्थकता सिद्ध हो पाएगी.

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