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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस और प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई के दौरान अवैध रोहिंग्या मुस्लिमों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस और प्रशांत भूषण ने याचिका में दावा किया था कि रोहिंग्या म्यांमार में नरसंहार का सामना कर रहे हैं, उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें शरणार्थियों के रूप में भारत में रहने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और कोटोश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि भारत में रहने का अधिकार केवल उसके नागरिकों को ही है और गैर-भारतीयों के साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार ही व्यवहार किया जाएगा। न्यायालय ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तिथि तय की।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय को बताया कि सर्वोच्च न्यायालय पहले ही असम और जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्याओं को देश से निकालने के फैसले पर रोक लगाने से मना कर चुका है। केंद्र सरकार ने चिंता व्यक्त की थी कि रोहिंग्या की मौजूदगी देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर किया था।
सरकार ने तर्क दिया कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए भारत पर रोहिंग्या को शरण देने की कोई बाध्यता नहीं है। साथ ही रोहिंग्या विदेशी हैं और उन्हें वापस भेजने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।
न्यायालय ने कहा कि भले ही रोहिंग्या को जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21) प्राप्त है, लेकिन वे विदेशी हैं तो उनके साथ कानून के अनुसार ही व्यवहार होगा। केवल भारतीयों को ही भारत में रहने का अधिकार है।
एडवोकेट गोंजाल्विस और भूषण ने कहा कि इन लोगों को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा शरणार्थी के रूप में रजिस्टर्ड किया गया है, जिसने उन्हें शरणार्थी कार्ड दिए हैं।