अर्चना प्रकाशन के स्मारिका “आत्मनिर्भर भारत-समर्थ भारत” का हुआ विमोचन
भोपाल. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि कोरोना काल पूरी दुनिया के सामने चुनौती बनकर आया, लेकिन जिस प्रकार भारत के समाज ने इस चुनौती को स्वीकार कर कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, उस प्रकार विश्व के किसी भी समाज ने नहीं लड़ा. इस कारण से भारत की स्थिति दुनिया के अन्य देशों की तुलना में काफी कम गंभीर हुई. आने वाले समय में विश्व इस विषय पर शोध करेगा कि यह संतुलन, यह सामंजस्य आखिर बना कैसे?
विश्व संवाद केंद्र शिवाजी नगर में आयोजित अर्चना प्रकाशन की स्मारिका “आत्मनिर्भर भारत -समर्थ भारत” के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार तमाम संसाधनों से परिपूर्ण देश कोरोना के आगे लाचार नजर आए, वह दृश्य पूरी दुनिया ने देखा. चीन में भी कोरोना का व्यापक असर देखने को मिला. किंतु चीन ने कोरोना के आंकड़े दुनिया से छिपा कर रखे. उसी समय भारतीय समाज ने कोरोना जैसे बड़े संकट में भी अपनी जागरूकता का उदाहरण प्रस्तुत किया, यही हमारे समाज की विशेषता है. लॉकडाउन के समय जब रोजगार का संकट उत्पन्न हुआ तो समाज के लोग जो किसी मल्टीनेशनल कम्पनी के लिए काम करते थे, उन्होंने अपने अपने गृह क्षेत्र में खेती सहित अन्य प्रयोग करके न केवल अपना जीवन यापन किया, बल्कि अन्य लोगों को भी रोजगार के अवसर दिए.
अपने आत्म गौरव अपने पराक्रम से साक्षात्कार करें
कार्यक्रम के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश अशोक जी पांडेय ने कहा कि हम आत्मनिर्भर शब्द के भौतिक और आर्थिक पक्ष ही न देखें, बल्कि इसके भावनात्मक पक्ष को भी समझने का प्रयास करें. हम अपने आत्मगौरव अपने पराक्रम से साक्षात्कार करें. विश्व की अनेक शक्तियां भारतीय विचार को, पहचान को तोड़ने के प्रयासों में लगी हैं. ऐसे समय में अर्चना प्रकाशन सत साहित्य का प्रकाशन कर सामाजिक मूल्यों की रक्षा करते हुए समाज को एक दिशा दे रहा है.
स्मारिका के संपादक गिरीश उपाध्याय ने कहा कि आत्मनिर्भरता का तत्त्व ही हमें समाधान दे सकता है और ये सिर्फ मनुष्य के माध्यम से संभव है. इस स्मारिका में प्रयुक्त आत्मनिर्भर शब्द के सिर्फ बाह्य भाग पर ही नहीं, बल्कि इसकी आत्मा पर भी विस्तार से बात की गई है. आत्मनिर्भरता को संस्कार के रूप में धारण करना होगा, हमें ये समझना होगा कि आत्मनिर्भर होने का मतलब आत्मकेंद्रित होना नहीं है, यहां आत्मनिर्भरता सामाजिक है. हमें आत्मनिर्भर होने के लिए स्वदेशी होना पड़ेगा.
2021 का भारत पुरुषार्थ का भारत है
कार्यक्रम में अतिथि वक्ता रंजना चित्तले ने कहा हमारा भारत आज के समय का भारत है. आज का भारत ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी वाला भारत नहीं, बल्कि आज के भारत के लिए कहना चाहिए कि ऐ मेरे वतन के लोगों हाथ में ले लो शमशीरें वाला भारत है. यह शमशीर किसी से युद्ध के लिए नहीं है, यह शमशीर अपने मूल्यों की रक्षा के लिए है. भारतीय गौरव और संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए है. 2021 का भारत पुरुषार्थ का भारत है. उन्होंने कहा कि साहित्य ही समाज में परिवर्तन लाता है और अर्चना प्रकाशन अपने साहित्य के माध्यम से इस कार्य को सफलतापूर्वक कर रहा है.
कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन माधवराव दांगी ने किया. कार्यक्रम का संचालन वंदना गांधी ने किया.