मेरठ. सुरेंद्र सिंह ने कहा कि हम ज्ञान की पूजा करते हैं और सरस्वती ज्ञान की देवी है. विश्वगुरू इसीलिए थे क्योंकि हम सरस्वती के आराधक थे. बसंत पंचमी को हम बसंत ऋतु के स्वागत के रूप में मनाते हैं. इसी दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था. इस दिन को हम विद्या आरम्भ दिवस के रूप में भी मनाते हैं. बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ माना गया है. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वृक्षों में मैं पीपल और ऋतुओं में बसंत हूं.
बसंतोत्सव पर सरस्वती पूजन एवं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जयंती के अवसर पर विश्व संवाद केंद्र एवं तिलक पत्रकारिता व जनसंचार स्कूल चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने भारत की व्याख्या करते हुए कहा कि भारत दो शब्दों से मिलकर बना है भा और रत. भा का अर्थ है प्रकाश अर्थात ज्ञान तथा रत का अर्थ है उसमें निरंतर लगे रहना. इसीलिए भारत सदैव ज्ञान की खोज और दुनिया को ज्ञान देने के लिए जाना जाता है. हजारों वर्ष पहले जब दुनिया में शिक्षा प्रारंभ भी नहीं हुई थी, भारत में विश्वविद्यालय थे.
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को छायावाद का महेश, कठिन काव्य का प्रेत, छायावाद का गोरखनाथ, महाप्राण औघडदानी तथा इलाहाबाद के दारागंज का संत भी कहा जाता है.
विशिष्ट अतिथि लोकगायिका व भारतीय नाट्य अकादमी भारत सरकार की सदस्य नीता गुप्ता ने कहा कि मां भगवती स्वयं मां सरस्वती के रूप में अवतरित हुईं. मन और तन जब एक साथ काम करते हैं तो कल्याण होता है. अपनी वाणी को शुद्ध रखें. बोलने से पहले सोचें.
तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार के निदेशक प्रो. प्रशांत कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन बीनम यादव ने किया.