नई दिल्ली. भारत में बना पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत अब भारतीय नौसेना का हिस्सा बन गया है. अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत INS विक्रांत विशिष्ट, विराट और विहंगम है जो 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है.
कोचीन शिपयार्ड पर तैयार आईएनएस विक्रांत को आज केरल के कोच्चि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय नौसेना को समर्पित किया. विमानवाहक पोत के निर्माण में 20,000 करोड़ रुपये की लागत आई है. ये देश के समुद्री इतिहास में बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा जहाज है. इसमें लगा स्टील भी स्वदेशी है, जिसे भारत के वैज्ञानिकों ने ही विकसित किया है.
INS विक्रांत के हर भाग की अपनी एक खूबी है, एक ताकत है, अपनी एक विकास यात्रा भी है. ये स्वदेशी सामर्थ्य, स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है. आईएनएस विक्रांत के नौसेना में शामिल होने से भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में भी शामिल हो गया, जिनके पास खुद का विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता है.
कोचीन शिपयार्ड में बने आईएनएस विक्रांत की लंबाई 262 मीटर है और चौड़ाई लगभग 62 मीटर है. ये 59 मीटर ऊंचा है और इसकी बीम 62 मीटर की है. युद्धपोत में 14 डेक हैं और 17 सौ से ज्यादा क्रू को रखने के लिए 2300 कंपार्टमेंट्स हैं. इनमें महिला अधिकारियों के लिए अलग से केबिन बनाए गए हैं. इसमें आईसीयू से लेकर चिकित्सा से जुड़ी सभी सेवाएं और वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं भी हैं. आईएनएस विक्रांत का वजन करीब 40 हजार टन है.
इस युद्धपोत के पार्ट स्वदेशी हैं, एयरक्राफ्ट कैरियर में शामिल हल बोट्स, एयर कंडीशनिंग से लेकर रेफ्रिजरेशन प्लांट्स और स्टेयरिंग से जुड़े पुर्जे देश में ही बने हैं. इसके निर्माण में बड़े उद्योगों के साथ ही सौ से ज्यादा मध्यम और लघु उद्योगों ने भी इस पोत पर लगे स्वदेशी उपकरणों और मशीनरी के निर्माण में मदद की है.
नौसेना ने बताया कि युद्धपोत को बनाने में भारतीय उत्पादक शामिल रहे. इसके निर्माण के दौरान हर दिन दो हजार भारतीयों को सीधे तौर पर रोजगार मिला है, जबकि 40 हजार अन्य को परोक्ष तरीके से काम करने का मौका मिला. इस पोत को बनाने में लगी लागत का 80-85 प्रतिशत वापस भारतीय अर्थव्यवस्था में ही लगा दिया गया.
आईएनएस विक्रांत की समुद्री अधिकतम स्पीड 28 नॉट्स तक है यानि लगभग 51 किमी प्रतिघंटा, इसकी सामान्य गति 18 नॉट्स यानि 33 किमी प्रतिघंटा तक है. ये एयरक्राफ्ट कैरियर एक बार में 7500 नॉटिकल मील यानि 13,000+ किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है. यह युद्धपोत एक बार में 30 एयरक्राफ्ट ले जा सकता है. इनमें मिग-29 के फाइटर जेट्स के साथ-साथ कामोव-31 अर्ली वॉर्निंग हेलिकॉप्टर्स, एमएच-60आर सीहॉक मल्टीरोल हेलिकॉप्टर और एचएएल द्वारा निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर भी शामिल हैं. नौसेना के लिए भारत में निर्मित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट-एलसीए तेजस भी आसानी से उड़ान भर सकते हैं.
दरअसल, भारत के पास पहले भी एयरक्राफ्ट कैरियर रहे हैं, लेकिन वे ब्रिटिश या रूसी थे. जहां इससे पहले भारत के दो विमानवाहक पोत- आईएनएस विक्रांत-1 और आईएनएस विराट ब्रिटेन से खरीदे गए थे. वहीं भारतीय नौसेना का मौजूदा इकलौता एयरक्राफ्ट कैरियर- आईएनएस विक्रमादित्य सोवियत काल का युद्धपोत – ‘एडमिरल गोर्शकोव’ है, जिसे भारत ने रूस से खरीदा है.
नए विक्रांत में नए और आधुनिक हथियार लगे हैं. जबकि, पुराने विक्रांत में उस दौर के हथियार लगे थे.
मौजूदा समय में सिर्फ पांच से छह देशों के पास ही एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता है. अब भारत भी इस श्रेणी में शामिल हो गया है.