नई दिल्ली. पाणिनी के अष्टाध्यायी जैसे ग्रंथ की एक गुत्थी (मुश्किल) को ढाई हजार साल बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भारतीय छात्र (शोध छात्र) ऋषि राजपोपट (27) ने सुलझाया है. यह ईसा से 700 वर्ष पूर्व भाषाओं के जनक कहे जाने वाले भारतीय मनीषी पाणिनी के नियम से बनी थी. ऋषि ने अपने शोध पत्र – इन पाणिनी, वी ट्रस्ट डिस्कवरिंग द एल्गोरिदम फॉर रूल कॉन्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन इन द अष्टाध्यायी में इस गुत्थी को सुलझाया है.
पाणिनी के अष्टाध्यायी (व्याकरण) के आठ अध्यायों में चार हजार सूत्र हैं. ये सूत्र किसी भी भाषा के वेदवाक्य हैं. अष्टाध्यायी में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और पारिवारिक जीवन के नियमों का विस्तृत वर्णन है. अष्टाध्यायी के अध्ययन के बाद जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने कहा था कि इस ग्रंथ के सामने अंग्रेजी या ग्रीक या लैटिन की संकल्पनाएं नगण्य हैं. ब्रिटिश विश्वविद्यालय के अनुसार संस्कृत के शीर्ष विद्वानों ने राजपोपट की खोज को क्रांतिकारी करार दिया है. इसके कारण अब पाणिनी की व्याकरण कंप्यूटर के जरिये पढ़ाई जा सकेगी. राजपोपट के अनुसार उन्हें कैंब्रिज में ज्ञान की दिव्यदृष्टि मिली, जिसके आधार पर वह यह कार्य करने में सफल हो पाए.
ऋषि राजपोपट ने बताया कि नौ महीने के लगातार प्रयास के बाद इस भाषाई गुत्थी को सुलझा पाने में जब विफल रहा तो मैं उसे छोड़ने वाला था, कुछ सोच नहीं पा रहा था. इसलिए एक महीने के लिए किताबें बंद करके रख दीं. इसके बाद गर्मी के मौसम का आनंद लेने लगा. उस दौरान तैराकी की, लंबी दूरी तक साइकिल यात्राएं कीं, खाना पकाया, मंत्रों का जाप किया और ध्यान लगाया. इसके बाद चमत्कार हो गया.
जैसे ही दोबारा से पुस्तक खोली कुछ ही मिनट बाद मस्तिष्क में संकल्पनाएं आकार लेने लगीं. इसके बाद बहुत कुछ करना था और किया, लेकिन उस समय व्याकरण की गुत्थी सुलझाने का मार्ग मिल चुका था. रोमांच की इसी अनुभूति के चलते उस रात और उसके बाद की कई रातों में सो नहीं पाया. सब भूलकर घंटों लाइब्रेरी में गुजारने लगा. विषय से जुड़ी ज्यादा से ज्यादा पुस्तकें पढ़ने लगा. कई बार आधी रात तक पढ़ता और अगले दिन सुबह जल्द उठकर फिर पढ़ना शुरू कर देता. अन्य कार्य करते हुए भी मस्तिष्क संबंधित भाषाई मुश्किलें सुलझाने में लगा रहता था. ऐसा करते हुए ढाई साल काटे, तब जाकर पाणिनी की गुत्थी सुलझाने में सफल हुआ.
राजपोपट ने कहा कि पाणिनी के पास अद्भुत मस्तिष्क था. मानव इतिहास में उनके जैसे मस्तिष्क वाला व्यक्ति होने का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता. उन्होंने कुछ भी नया करने की नीयत से नहीं किया. उन्होंने वही किया जो उनके मस्तिष्क का स्तर था. उसी का नतीजा था कि वह दुनिया को ऐसी निधि दे गए जो हजारों साल बाद भी उतनी ही बहुमूल्य है, जितनी उनके समय में थी. कैंब्रिज विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर ¨वसेन्जो वर्जियानी ने कहा, मेरे शिष्य ऋषि ने हजारों साल की अनसुलझी गुत्थी को सुलझाया है. उसने असामान्य कार्य किया है. समूची मानव जाति को इसका लाभ होगा.