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रामलला के साथ भारत का ‘स्व’ लौटकर आया है – डॉ. मोहन भागवत जी

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अयोध्या. श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्रभु श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि आज रामलला के साथ भारत का ‘स्व’ लौटकर आया है. आज के आनंद का वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता है. भगवान राम १४ वर्ष बाहर रहकर बाहर के कलह मिटाकर अयोध्या वापस आये थे, अब दोबारा राम जी अपने घर वापस आये हैं. अब हमें आपसी कलह को मिटाकर आगे बढ़ना होगा. छोटे-छोटे विवादों को पीछे छोड़ना पड़ेगा. हमें अपने को संयम में रखना होगा. जिससे संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला भारत खड़ा होकर रहेगा, इसका प्रतीक आज का कार्यक्रम बन गया है.

आज हमने सुना कि प्रधानमंत्री जी ने यहां आने से पहले कठोर तप रखा. जितना कठोर तप रखा जाना चाहिए था, उससे ज्यादा कठिन तप रखा. मेरा उनसे पुराना परिचय है. मैं जानता हूं, वे तपस्वी हैं ही. परंतु, वे अकेले तप कर रहे हैं…. प्रधानमंत्री जी ने तप किया, अब हमें भी तप करना है. राम राज कैसा था, यह याद रखना है. हम भी भारत वर्ष की संतानें हैं.

उन्होंने कहा कि 14 वर्ष के वनवास में श्रीराम दुनिया के कलह को मिटाकर वापस आए. आज पांच सौ वर्ष के बाद रामलला फिर से वापस आए हैं. जिनके त्याग, तपस्या, प्रयासों से आज हम यह स्वर्ण दिवस देख रहे हैं, उनका स्मरण प्राण-प्रतिष्ठा के संकल्प में हमने किया. 500 वर्षों तक अनेक पीढ़ियों ने लगकर, परिश्रम करके बलिदान देकर खून पसीना बहाने के बाद आज ये आनंद का दिन सारे राष्ट्र को उपलब्ध करा दिया, उन सबके लिए हमारे मन में कृतज्ञता है.

दैहिक दैविक भौतिक तापा. राम राज नहिं काहुहि ब्यापा..

सब नर करहिं परस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती..

सब निर्दंभ धर्मरत पुनी, नर अरु नारि चतुर सब गुनी..

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी, सब कृतग्य नहिं कपट सयानी..

राम राज कैसा था, यह याद रखना है. राम राज्य के सामान्य नागरिकों का ये वर्णन है. हम भी इस गौरवमय भारत वर्ष की संताने हैं. कोटि-कोटि कंठ उसका जयगान करने वाले हैं. हमको इस प्रकार के व्यवहार को रखने का तप आचरण करना पड़ेगा.

सरसंघचालक जी ने कहा कि हमें अच्छा व्यवहार रखने का तप-आचरण करना होगा. हमें भी सारे कलह को विदाई देनी होगी. छोटे-छोटे परस्पर मत रहते हैं, छोटे-छोटे विवाद रहते हैं. उसे लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़नी पड़ेगी. हमें समन्वय से चलना होगा. आपस में समन्वय रखकर व्यवहार रखना ही सत्य का आचरण.

इस युग में आज के दिन रामलला के फिर वापस आने का इतिहास जो-जो स्मरण करेगा, वह राष्ट्र के लिए होगा. राष्ट्र का सब दुख हरण होगा, ऐसा इस इतिहास का सामर्थ्य है. हमारे लिए कर्तव्य का आदेश भी है.

श्रीमद्भागवत में बताया है, धर्म के चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, शुचिता, तपस. उसका आज हमारे लिए युगानुकूल आचरण क्या है, तो सत्य कहता है कि सब घट में राम हैं. ब्रह्म सत्य है. वही सर्वत्र है. तो हमको ये जानकर आपस में समन्वय से चलना होगा, क्योंकि हम चलते हैं सबके लिए चलते हैं. सब हमारे हैं, इसलिए हम चल पाते हैं. और इसलिए आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना, ये धर्म का पहला पैर है सत्य, उसका आचरण है.

करुणा दूसरा कदम है, उसका आचरण है सेवा और परोपकार. सरकार की कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही हैं, सब हो रहा है. लेकिन हमारा भी कर्तव्य है, ये सब समाज बांधव हमारे अपने बंधु हैं. तो जहां हमको दुख दिखता है, पीड़ा दिखती है. वहां हम दौड़ जाए, सेवा करें. दोनों हाथों से कमाएं, अपने लिए न्यूनतम आवश्यक रखकर बाकी सारा वापस दें, सेवा और परोपकार के माध्यम से. ये करुणा का अर्थ आज है.

शुचिता पर चलना है यानी पवित्रता होनी चाहिए. पवित्रता के लिए संयम चाहिए. अपने को रोकना है, सब अपनी इच्छाएं हैं, सब अपने मत, सब अपनी बातें, ठीक होंगी ही ऐसा नहीं और होंगी तो भी अन्यों के भी मत हैं, अन्यों की भी इच्छाएं हैं. और इसलिए अपने आप को संयम में रखते हैं तो सारी पृथ्वी सब मानवों को जीवित रखेगी. गांधी जी कहते थे – Earth has enough for everyone’s need, but it cannot satisfy everyone’s greed.

तो लोभ नहीं करना, संयम में रहना और अनुशासन का पालन करना. अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब में अनुशासन रहना, अपने समाज में अनुशासन रहना, सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना. भगिनी निवेदिता कहती थी कि स्वतंत्र देश में नागरिक संवेदना रखना और नागरिक अनुशासन का पालन करना, यही देशभक्ति का रूप है.

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