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#InternationalYogaDay – वैश्विक जीवनचर्या का हिस्सा बना भारतीय योग विज्ञान

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सूर्यप्रकाश सेमवाल

भारतीय समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा ज्ञान पर अवलम्बित है. ईश्वर के विषय में बताने वाले वेदों के 6  अंगों में यदि शिक्षा ,कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष शामिल हैं तो आयुर्वेद और योग को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा का कवच माना गया है. योग शब्द का जन्म संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुआ है; जिसका अर्थ है – स्वयं का सर्वश्रेष्ठ, (सुप्रीम) स्वयं के साथ मिलन.

योग का वर्णन सर्वप्रथम  ऋग्वेद में और फिर यजुर्वेद में मिलता है. यह हमें फिर से सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के दर्शन कराता है. ठीक उसी सभ्यता से, पशुपति मुहर (सिक्का) जिस पर योग मुद्रा में विराजमान एक आकृति है, जो वह उस प्राचीन काल में योग की व्यापकता को दर्शाती है. वृहद् आरण्यक और छांदोग्य उपनिषद में भी योग व प्राणायाम के अभ्यास का उल्लेख मिलता है. यथावत, ”योग” के वर्तमान स्वरूप के बारे में, पहली बार उल्लेख कठोपनिषद में आता है, …..संहिताओं में उल्लेखित है कि प्राचीन काल में मुनियों, महात्माओं, विभिन्न साधु और संतों द्वारा कठोर शारीरिक आचरण, ध्यान व तपस्या का अभ्यास किया जाता था.

आदिदेव महादेव के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों के साथ हमारे अवतारी पुरुषों भगवान श्रीकृष्ण, जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी और बौद्ध धर्म के पुरोधा महात्मा बुद्ध के समय योग का प्रचार-प्रसार हुआ. ईसा से 200 वर्ष पूर्व रचित पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार, योग का अर्थ है – मन को नियंत्रण में रखना. योगसूत्र में पतंजलि, योग को चित्तवृत्ति का निरोध करने वाला बताते हैं..”योग:चित्त-वृत्ति निरोध:” पतंजलि ने संक्षिप्त रूप में योग के 195 सूत्र (सूत्र) संकलित किए. राजयोग नाम देते हुए उन्होंने योग के आठ अंग बताए, जिनमें – यम (सामाजिक आचरण), नियम (व्यक्तिगत आचरण), आसन (शारीरिक आसन), प्राणायाम (श्वास विनियमन), प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि (अतिक्रमण) इत्यादि सम्मिलित हैं.

जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञा और बौद्ध धर्म के योगाचार की जड़ें पतंजलि योगसूत्र में निहित हैं. पतंजलि के योग को ही सिद्ध और नाथ पंथियों के साथ शैव, वैष्णव और शाक्त श्रद्धालुओं ने अपने जीवन में उतारा. बाद में द्वापर युग के महानायक श्रीकृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद्भगवद गीता के उपदेश में योग की विस्तार से चर्चा है. साथ साथ, महाभारत के शांतिपर्व में भी योग का विस्तृत उल्लेख है.

अपने समय के चर्चित महापुरुषों ने भारतीयों को ही नहीं, विश्व को भी योग को अपनाने की सीख दी.

1893 में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो विश्व धर्म संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे विश्व को योग से परिचित करवाया. इसके उपरान्त महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानंद, और रमण महर्षि आदि प्रमुख योग गुरुओं ने न केवल भारतवर्ष अपितु पश्चिमी दुनिया को भी प्रभावित किया और धीरे-धीरे योग एक जीवनोपयोगी विधा के रूप में दुनिया भर में चर्चित होने लगा. आज कोरोना संकटकाल में भी समूचा विश्व आयुर्वेद और योग को जीवन में ढालकर मनोवैज्ञानिक रूप से कोरोना से लड़ने को तैयार दिखाई पड़ता है. पश्चिम में भारतीय योग विधा को आगे बढ़ाने वालों में टी. कृष्णमाचार्य के तीन शिष्यों – बी.के.एस.आयंगर, पट्टाभि जोयस और टी.वी.के. देशिकाचार के साथ योग गुरु बाबा रामदेव की भी विशेष भूमिका है. इन सभी महानुभावों ने योग को न केवल भारत में घर-घर तक पहुंचाने का काम किया, बल्कि विश्व स्तर पर भी योग को प्रचारित करने का काम किया है.

योग भारत की एक लोकप्रिय विधा के रूप में विश्वभर में चर्चित तो था ही, लेकिन इसे वैश्विक स्वीकृति मिली 11 दिसम्बर 2014 को. जब भारतीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा में 21 जून को समूचे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे 193 देशों में से 175 देशों ने बिना किसी मतदान के स्वीकार कर लिया. यूएन ने योग की महत्ता को स्वीकारते हुए माना कि ‘योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक सम्पूर्ण नजरिया है.’ तब से प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. इस बार कोरोना के वैश्विक संकटकाल में भी विश्व योग दिवस के प्रति पूर्ण उत्साहित है.

भारतीय प्रधानमन्त्री ने अपने देशवासियों के साथ विश्व समुदाय का भी आह्वान किया है कि घर पर रहकर परिवार के साथ सारा विश्व योग दिवस मनाएं….

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