डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर (उपाख्य : हरिभाऊ वाकणकर ; 4 मई 1919 – 3 अप्रैल 1988) भारत के प्रमुख पुरातत्वविद् थे. उन्होंने भोपाल के निकट भीमबेटका के प्राचीन शिलाचित्रों का अन्वेषण किया. अनुमान है कि यह चित्र 1,75,000 वर्ष पुरानें हैं. इन चित्रों का परीक्षण कार्बन-डेटिंग पद्धति से किया गया, इसी के परिणामस्वरूप इन चित्रों के काल-खंड का ज्ञान होता है. इससे यह भी सिद्ध होता है कि उस समय रायसेन जिले में स्थित भीम बैटका गुफाओं में मनुष्य रहता था और वो चित्र बनाता था. सन् १९७५ में वाकणकर जी को भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया.
श्री वाकणकर का जन्म मध्य प्रदेश के नीमच में हुआ था. वे संस्कार भारती से सम्बद्ध थे, संस्कार भारती के संस्थापक महामंत्री थे. संस्कार भारती संगठन कला एवं साहित्य को समर्पित अखिल भारतीय संगठन है. इसकी स्थापना चित्रकार बाबा योगेंद्र जी पद्मश्री (2017) ने 1981 में की.
डॉ. वाकणकर जी ने अपना समस्त जीवन भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने में अर्पित किया. उन्होंने अपने अथक शोध द्वारा भारत की समृद्ध प्राचीन संस्कृति व सभ्यता से सारे विश्व को अवगत कराया. इन्होंने ‘सरस्वती नदी भारतवर्ष में बहती थी’, इसकी अपने अन्वेषण में पुष्टि करने के साथ-साथ इस अदृश्य हो गई नदी के बहने का मार्ग भी बताया. इनके शोध के परिणाम सम्पूर्ण विश्व को आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं. आर्य-द्रविड़ आक्रमण सिद्धान्त को झुठलाने वाली सच्चाई से सबको अवगत कराने का महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आने पर उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक और शैक्षिक उत्थान कार्य किया. लगभग 50 वर्षों तक जंगलों में पैदल घूमकर विभिन्न प्रकार के हजारों चित्रित शैल आश्रयों का पता लगाकर उनकी कापी बनाई तथा देश-विदेश में इस विषय पर विस्तार से लिखा, व्याख्यान दिए और प्रदर्शनी लगाई. प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में डॉ. वाकणकर ने अपने बहुविध योगदान से नये पथ का सूत्रपात किया.
संस्कार भारती ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए इस महान कलाविद, पुरातत्ववेत्ता, शोधकर्ता, इतिहासकार, महान चित्रकार का जन्म-शताब्दी वर्ष 04 मई 2019 से 03 मई 2020 तक मनाने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया है. यह इस विश्व विख्यात कला-साधक को सच्ची श्रद्धाञ्जलि होगी.