नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार (14 सितंबर) को अधिवक्ताओं द्वारा बेवजह जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने के अधिकार का दुरुपयोग करने के प्रति आगाह किया. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि अधिवक्ताओं को ऐसी जनहित याचिका दायर करने से रोकने के लिए अदालतों को कदम उठाने पड़ सकते हैं.
कोरोना संक्रमण के कारण मरने वाले 60 साल से कम उम्र के अधिवक्ताओं के परिजनों को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की.
न्यायालय ने टिप्पणी की कि “यह एक प्रचार हित याचिका है और सिर्फ इसलिए कि आप काले कोट में हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आपका जीवन दूसरों की तुलना में अधिक कीमती है. समय आ गया है कि हमें वकीलों को इन फर्जी जनहित याचिकाओं को दर्ज करने से रोकना होगा.“
न्यायालय ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव को फटकार लगाते हुए कहा कि याचिका में आधार अप्रासंगिक हैं.
“अगर हम आपका आधार देखें, तो एक भी आधार प्रासंगिक नहीं है. आप अगर कट पेस्ट कर देंगे तो ऐसा नहीं होता कि न्यायधीश पढ़ेंगे नहीं.“
न्यायालय ने दोहराया कि COVID के कारण कई लोगों की मृत्यु हो चुकी है और वकीलों के लिए कोई अपवाद नहीं बनाया जा सकता है.
न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, “ऐसा नहीं हो सकता है कि वकील इस तरह की जनहित याचिकाएं दायर करें और न्यायाधीशों से मुआवजे की मांग करें और वे अनुमति दें. आप जानते हैं कि बहुत सारे लोग मारे गए हैं. आप अपवाद नहीं हो सकते.“