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समाज में परिवर्तन करने के लिये सैकड़ों पीढ़ियों की साधना लगती है – स्वप्निल जी कुलकर्णी

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ब्यावरा, भोपाल. स्थानीय सरस्वती शिशु मंदिर के प्रांगण में संघ शिक्षा वर्ग सामान्य में आए शिक्षार्थियों ने बीस दिवसीय प्रशिक्षण में साधना पश्चात् प्रगट कार्यक्रम में विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किये. स्वयंसेवक ब्यावरा जिले के ब्यावरा नगर, सारंगपुर, पचोर, नरसिंहगढ़ एवं सुठालिया तहसील के 726 ग्रामों से उपस्थित हुए. कार्यक्रम में आने वाले स्वयंसेवको को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो इस हेतु नगर में चार पार्किंग की व्यवस्था की गई. नगरवासियों ने स्वयंसेवकों के लिए 32 प्याऊ लगवाए.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कैलाश चंद्र जी पण्डा ने की. मंचासीन अतिथियों में वर्गाधिकारी प्रहलाद जी सबनानी, मुख्य अतिथि हरि सिंह जी चौहान एवं मुख्य वक्ता मध्यभारत प्रांत प्रचारक स्वप्निल जी कुलकर्णी उपस्थित रहे.

शिक्षार्थियों ने आत्मविश्वास को बढ़ाने एवं आत्मरक्षार्थ निःयुद्ध, पद्विन्यास, दण्ड संचालन एवं दण्ड युद्ध का प्रदर्शन किया. शिक्षार्थियों द्वारा सूर्यनमस्कार, आसन, दण्डयोग, व्यायाम योग एवं सामूहिक गीत का प्रदर्शन किया. वर्ग का प्रतिवेदन वर्ग कार्यवाह संजीव जी मिश्रा द्वारा पढ़ा गया. वर्ग में 297 शिक्षार्थियों में से विद्यार्थी 39, कृषक 43, अभियन्ता 2, शिक्षक 30 एवं अन्य 9 ने भाग लिया.

वर्ग में प्रशिक्षण देने वाले शिक्षक 26, गृहस्थ कार्यकर्ता 8 एवं प्रचारक 8 उपस्थित रहे. वर्ग में 22414 परिवारों से संपर्क कर राम रोटी का संग्रह किया गया. वर्ग कार्यवाह द्वारा मंचासीन अधिकारियों का परिचय कराया गया.

कार्यक्रम अध्यक्ष ने कहा कि कलयुग में केवल संगठन ही शक्ति है. आज की आवश्यकता है कि हम सभी मिलजुल कर हिन्दू समाज को संगठित करें. हिन्दू समाज किसी बहकावे में न आए. संगठित समाज ही देश की शक्ति है. दुनिया केवल शक्तिशाली देश की बात सुनती है.

मुख्य वक्ता स्वप्निल जी कुलकर्णी ने कहा कि कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए आयोजित होने वाले 20 दिवसीय प्रथम वर्ष के शिक्षार्थियों के शारिरिक प्रदर्शन की हल्की सी झांकी अभी हम सभी ने देखी. इस प्रकार के संघ शिक्षा वर्ग सम्पूर्ण देश में आयोजित होते हैं, जिसमें स्वयंसेवक अपना समय देकर बड़ी मात्रा में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं. आज 1925 से चला अपना यह संघ कार्य दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है. हम 100 वर्ष पूर्ण करने को है, किसी भी संस्था या संगठन की स्थापना होती है तो उसकी आयु भी बढ़ती ही है. संघ शताब्दी वर्ष में जा रहा है, उस से ज्यादा महत्वपूर्ण पूर्ण है कि हमारे यशस्वी 100 वर्ष हो रहे हैं. अच्छी परम्परा एवं समाज में परिवर्तन करने के लिये सैकड़ों पीढ़ियों की साधना लगती है. संघ किसी के विरोध या प्रतिक्रिया के लिए नहीं, परंतु सकारात्मक परिवर्तन के लिए कार्य कर रहा है. संघ में राष्ट्रीय होने का मतलब ही यही है कि सम्पूर्ण भारत को अपना मानने वाले स्वयं की प्रेरणा से कार्य करने वाले लोग.देश पर आए प्रत्येक संकट चाहे वो देश की स्वतंत्रता का आंदोलन हो या भारत माता का दुखांत विभाजन हो या चीन 1962, पाकिस्तान (1948, 1965, 1971, 1999 कारगिल) से युद्ध हो, बाढ़ हो, तूफान हो, कोरोना जैसी आपदा ही क्यों न हो, स्वयंसेवक अपने देश-समाज के लिए खड़ा रहता है. उन्होंने कहा कि आज जातियों के बीच संघर्ष खड़ा करने का प्रयास होता है, समाधान यह हिन्दू भाव है. आने वाले समय में सभी प्रकार से संघर्षरत विश्व को अपने जीवन मूल्यों के आधार पर सुख और शान्ति का मार्ग अपने हिन्दू धर्म से ही मिलने वाला है. वे जीवन मूल्य है – कृण्वन्तो विश्वमार्यम, वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवंतु सुखिनः…..

इस आचरण को व्यक्तिगत जीवन में लाना होगा. भेद रहित, शोषण मुक्त, समता युक्त, व्यसन मुक्त, विवाद मुक्त अपना गांव बने. जागृत, संगठित, निर्दोष समाज बने. धरती माता को मां मानने वाला इस मां की कोख को अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए रसायनों के उपयोग से बांझ न करे. गौ-रक्षा के लिए गौ शाला या अन्य व्यवस्था से ज्यादा महत्वपूर्ण के गाय को लेकर संवेदना से भरा हुआ अपना समाज, गाय को देखने की हमारी दृष्टि ही उसकी सुरक्षा और संवर्धन की गारंटी है. अपना देश भले ही राजनीतिक रूप से गुलाम हुआ हो, परन्तु अपना गांव कभी गुलाम नहीं हुआ. उसकी अपनी एक आर्थिक व्यवस्था थी और ग्राम स्वाबलंबी हुआ करते थे.

रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी पुस्तक स्वदेशी समाज में इसका उल्लेख किया है. माता बहनों की सुरक्षा व उनका सम्मान यह हमारी जिम्मेदारी रही है, आज लव जेहाद जैसे षड्यंत्रों से अपनी बहनों की रक्षा करनी है. हम केवल दूर खड़े देखने वाले या संघ के समर्थक न बनें, बल्कि अपने दैनिक समय में से 1 या 2 घण्टे का समय संघ का कार्य करें.

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