जगद्गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने वेदों पर आधारित वैदिक गणित ज्ञान को विकसित कर अतुलनीय कार्य किया है. स्वामी जी द्वारा 16 पांडुलिपियां लिखी गई थीं, जिनमें 16 गणित सूत्रों और 13 उपसूत्रों की विस्तृत व्याख्या की गई. वैदिक गणित सूत्र और उपसूत्र गणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, कलनशास्त्र, सांख्यिकी, प्रायिकता इत्यादि के प्रश्नों को हल करने में सहायक सिद्ध हुए हैं.
ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी जगद्गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज का जन्म 14 मार्च, 1884 को तिन्निवेली (तमिलनाडु) में एक शिक्षित व संस्कारित परिवार में हुआ था. स्वामी जी ने 1903 में अमेरिकन कॉलेज ऑफ साइंसेज, रोचेस्टर, न्यूयॉर्क से संस्कृत, दर्शन, अंग्रेजी, गणित, इतिहास और विज्ञान में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1911 से श्रृंगेरी मठ में आठ वर्ष तक वेदांत दर्शन और ब्रह्म साधना का भी गहन अध्ययन किया. जिसके अंतर्गत उन्हें वैदिक ऋचाओं से गूढ़ रहस्यों के दर्शन हुए.
स्वामी भारती जी ने वैदिक गणित की इस विधा को अश्रुविहीन गणित कहा है. इसका अर्थ यह है कि वैदिक गणित बहुत ही रूचिपूर्ण गणित है. वैदिक गणित के सूत्र व उपसूत्र गणित के प्रश्नों को एक या दो पंक्ति में हल करने में सक्षम हैं. वैदिक गणित के सूत्रों व उपसूत्रों द्वारा गणित को समझना सहज, सरस और आनंददायक तो है ही, साथ-साथ कठिन से कठिन प्रश्नों को शीघ्रता से हल किया जा सकता है. इस धारणा को एक गुणन के प्रक्रिया द्वारा समझा जा सकता है.
उदाहरण – 9985×9970 को विद्यार्थी बिना पैन और नोटबुक के वैदिक गणित सूत्र-निखिलं द्वारा हल किया जा सकता है. सूत्र द्वारा दोनों संख्याओं का विचलन ज्ञात किया जा सकता है. दोनों संख्याएं 10000 से छोटी हैं, इनका 10000 से अंतर -15 और -30 है. जिसे विचलन कहा जाता है. विचलनों द्वारा ही दोनों संख्याओं का गुणनफल ज्ञात किया जा सकता है. उत्तर के बाएं भाग को प्राप्त करने के लिए पहली संख्या में से दूसरी संख्या के विचलन का व्यकलन (घटाया) किया जाता है. अतः 9985-30 = 9955 और गुणनफल के दाएं भाग को प्राप्त करने हेतु दोनों विचलनों के गुणनफल किया जाता है जैसे कि (-30)×(-15) = 0450, अतः दोनों संख्याओं का गुणनफल 99550450 प्राप्त होता है.
वैदिक गणित के सूत्र गणित की प्रत्येक शाखा में प्रयोग में प्रयुक्त होते हैं. वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा त्रिकोणमिति के 100 से अधिक सूत्र लिखे जा सकते हैं. त्रिकोणमिति के इन फोर्मूलों को रटने की आवश्यकता नहीं है. इन्हें विद्यार्थी स्वयं ही वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा लिख सकते हैं. वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा कैलकुलस के प्रश्नों का हल भी सुगमता से किया जा सकता है. गणित में बहुत बड़ी समस्या पहाड़े याद ना होना भी है. पर वैदिक गणित द्वारा 100 तक के पहाड़े की गणना करना बहुत ही सरल है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 वर्णन करती है कि भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण विद्यार्थियों में मूल आधारित ज्ञान को आनंदमय व छात्र केन्द्रित शोध प्रवृति को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. गणित के क्षेत्र में वैदिक गणित सूत्रों व उपसूत्रों द्वारा काफी शोध हुए हैं. वैदिक गणित सूत्रों द्वारा कंप्यूटर इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों ने कंप्यूटर में प्रोग्राम बनाकर इनकी उपयोगिता सिद्ध की है. वेद रतन से सम्मानित डॉ. एस.के. कपूर ने वैदिक गणित पर शोध ग्रन्थ लिखा है. उन्होंने अपने शोद्ध में वर्णन किया है कि वैदिक गणित केवल गणना करने के लिए ही नहीं, बल्कि कई अन्य विषयों के बहुत महत्वपूर्ण तथ्यों में इनका प्रयोग किया जा सकता है. वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा गोल्डबैक प्रमेय सिद्ध की है. यह प्रमेय वर्ष 1742 से सिद्ध करने के लिए लंबित थी. गणित ज्ञान वेदों में दिए गए सूत्रों पर आधारित है. आज भारत सहित कई देशों में हिंदी प्रचलन बढ़ता जा रहा है.
इसका करण विषयों को हिंदी भाषा में पढ़ना ही नहीं है, बल्कि वैदिक गणित के सूत्रों द्वारा यह भी सिद्ध किया गया है कि देवनागरी लिपि और गणित का घनिष्ठ सम्बन्ध है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार विषय का ज्ञान भारतीय परिप्रेक्ष्य में रुचिकर तरीकों से संप्रेषण करना है. वैदिक गणित के सूत्र इस दृष्टिकोण से खरे उतरते हैं. वैदिक गणित के सूत्र और उपसूत्र इतने सरल व स्पष्ट हैं कि विद्यार्थी इनका प्रयोग कर खेल-खेल में गणित के प्रश्नों को सरलता से हल कर लेते हैं. इनका प्रयोग करते करते गणित में शोध प्रवृति जागृत होने लगती है और गणित के सूत्रों को रटने की मासिकता समाप्त हो जाती है व विद्यार्थियों के मौलिक चिंतन, तर्क शक्ति व सचेतन बुद्धि का विकास होना प्रारम्भ हो जाता है. वैदिक गणित के सूत्रों की उपादेयता व इनके व्यावहारिक प्रयोग से छात्र/छात्राओं में वेदों के प्रति आस्था व पूजा का भाव जागृत करेगा जो उनके सर्वांगीण विकास और चरित्र निर्माण के पावन पथ पर अग्रसर करेगा.
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली ने 2009 से वैदिक गणित के प्रचार-प्रसार ने बहुत अच्छी पहल की है. न्यास द्वारा कक्षा 1 से 12 तक वैदिक गणित के पाठयक्रम का निर्माण किया गया है. देश में 15 विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में वैदिक गणित सर्टिफिकेट कोर्स और डिप्लोमा कोर्स के लिए न्यास द्वारा अनुबंध किया गया है. कोरोना के समय एक लाख से ज्यादा लोगों को वैदिक गणित का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया गया. इसी जागरूकता के कारण कई विश्वविद्यालयों में स्नातक कक्षाओं में भी वैदिक गणित का एक पेपर शामिल किया गया है. शिक्षकों और छात्र/छात्राओं में वैदिक गणित के अध्ययन और अध्यापन के प्रति बढ़ती रूचि से स्पष्ट है कि वैदिक गणित विषय को शिक्षण संस्थाओं में नियमित रूप से अध्ययन/अध्यापन करवाने की आवश्यकता है.
डॉ. राकेश भाटिया, वैदिक गणित सह-संयोजक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली