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जम्मू कश्मीर – बंगाल में हिंसा पर अंकुश लगाने की मांग के साथ प्रबुद्धजनों ने राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन

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सामाजिक, व्यापारिक संगठनों और प्रबुद्ध नागरिकों ने की राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग

जम्मू. देश जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर से लड़ रहा है तो पश्चिम बंगाल में एक बड़ा वर्ग सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के अलावा अवैध प्रवासियों द्वारा की जा रही हिंसा से पीड़ित है. पश्चिम बंगाल के ताजा हिंसक घटनाक्रम ने 1990 में कश्मीर से हिंदुओं के पलायन पर मजबूर करने की यादें ताजा कर दी है. शुक्रवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक, औद्योगिक संगठनों के अलावा प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के माध्यम से भेजा गया. इस संबंध में जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को ज्ञापन भेंट करने वालों में डीआरडीओ के पूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ. सुदर्शन, शासकीय डेंटल कॉलेज जम्मू के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. गौतम मैंगी, सनातन धर्म सभा जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष पुरुषोत्तम दधीचि और सेवानिवृत्त मेजर जनरल एसके शर्मा प्रमुख थे.

ज्ञापन को समर्थन देकर इस पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों में सेवानिवृत्त्त जस्टिस सुनील हाली, पूर्व आईएएस अधिकारी डॉ. सुधीर सिंह बलोरिया, जम्मू विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो. मनोज धर, केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू के उप कुलपति प्रो. अशोक ऐमा, पद्मश्री शिव दत्त निर्मोही, पद्मश्री केएन पंडिता, सेवानिवृत्त आइएफएस सीएम सेठ, सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी हेमंत शर्मा, पूर्व जिला सत्र न्यायाधीश सुरेश शर्मा, सीनियर एडवोकेट लीला कर्ण शर्मा, जम्मू पीपुल्स फोरम के अध्यक्ष रमेश सभरवाल, जम्मू विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रार मीनाक्षी कीलम, वेयर हाउस ट्रेडर्स एसोसिएशन जम्मू के अध्यक्ष दीपक गुप्ता, गुज्जर महासभा के उपाध्यक्ष कमर रब्बानी चीची सहित अन्य आदि शामिल हैं.

प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रतिनिधियों ने उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को बताया कि बंगाल हिंसा ने अब तक वहां के 3000 से अधिक गांवों और 70,000 राष्ट्रीय विचार के लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है और यह निरंतर जारी है. प्रभावितों में से अधिकांश सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों के लोग हैं, जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब  लोग शामिल हैं.

विडंबना यह है कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में एक महिला मुख्यमंत्री के होते हुए वहां बड़ी संख्या में महिलाओं को विशेष रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. पहले से ही बलात्कार के चार और 39 बलात्कार की धमकियों के मामलों की पुष्टि हो चुकी है और पश्चिम बंगाल में यह संवेदनहीन आतंक संगठित देशद्रोहियों द्वारा फैलाया गया है. इसकी वजह से अब 23 सत्यापित हत्याएं हुई हैं. इनमें 11 एससी, एक एसटी और तीन महिलाएं शामिल थीं. वर्तमान में 191 आश्रय स्थल, 6779 असहाय पीड़ितों को शरण दे रहे हैं और अन्य 1800 ने पड़ोसी राज्य असम में शरण ली है.

प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रतिनिधियों का कहना था कि बंगाल में इस क्रूर हिंसा के लिए कुछ नागरिकों को विशेष रूप से चुना गया है, खासकर विधानसभा चुनाव के बाद 2157 नागरिकों पर हमला किया गया और 692 निर्दोष परिवारों को मौत की धमकी दी गई है. पहले ही 3886 संपत्तियां नष्ट हो चुकी हैं, हिंदू परिवारों को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया और भारत विरोधी दृष्टिकोण का माहौल बनाया गया है. इससे भी अधिक दुख की बात है कि पीड़ितों को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति नहीं है और महिलाओं की शिकायतों पर कोई मेडिकल जांच नहीं की जा रही है, यहां तक कि कई मामलों में हत्या की प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की गई है. बंगाल की हिंसा ने भारतीय संविधान के साथ-साथ संवैधानिक संस्थाओं और भारतीय लोकतंत्र में हमारे दृढ़ विश्वास को गहराई से तोड़ दिया है, जो बंगाल में आतंक के पीड़ितों के अधिकारों के लिए एक अंधेरे जैसा प्रतीत होता है.

प्रतिनिधि मंडल में शामिल सदस्यों ने उप राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति से मांग की है कि बंगाल में दृढ़ता से हिंसा को तुरंत रोका जाए, इस आतंक के लिए जिम्मेदार लोगों, समूहों, को दंडित किया जाए, भारत विरोधी और अवैध अप्रवासियों को नियंत्रित करने के लिए सभी संभव संवैधानिक प्रावधानों का उपयोग हो, पीड़ितों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की तत्काल तैनाती की जाए और बंगाल में पीड़ितों के लिए मुआवजे का प्रावधान भी किया जाए.

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