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जंगल सत्याग्रह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – स्वतंत्रता आंदोलन में संघ स्वयंसेवकों का सहभाग

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डॉ. श्रीरंग गोडबोले

देश को स्वतंत्रता दिलाने के सभी प्रयासों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त होता था. इसी कारण उन्होंने जंगल सत्याग्रह में भाग लिया. किसी नेता का बड़प्पन उसके व्यक्तिगत कर्तृत्व और मात्र उपदेशों से सिद्ध नहीं होता, वह अपने व्यक्तिगत आचरण से न सिर्फ अनुयायियों को प्रेरणा देता है, बल्कि अपनी अभिलाषा को उनके हृदय में उतारता भी है. हिन्दू संगठन के नित्य कार्य पर अटल निष्ठा रखने वाले डॉ. हेडगेवार ‘जंगल सत्याग्रह’ जैसे महत्वपूर्ण आंदोलन में सहभागी हुए. संघ के स्वयंसेवक क्या करें, यह उन्होंने उनके विवेक पर छोड़ दिया था. उन्होंने अपना आग्रह स्वयंसेवकों पर थोपा नहीं. नेता द्वारा कोई भी औपचारिक निर्देश न मिले और वह कारावास में हो तो अनुयायी क्या कर रहे थे, यह असली सवाल है..!

जंगल सत्याग्रह में संघ कार्यकर्ता

डॉ. हेडगेवार के समान संघ के अन्य पदाधिकारी भी जंगल सत्याग्रह में शामिल हुए. सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु नागपुर में 1 मई, 1930 को हुई पहली जनसभा में नमक प्रतिबंध तोड़ने वाले तीन सत्याग्रही – डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, डॉ. मोरेश्वर रामचंद्र चोलकर और गोपाल मुकुंद उपाख्य बालाजी हुद्दार थे. इनमें से श्री हुद्दार संघ के सरकार्यवाह थे. डॉ. हेडगेवार के समय संघ में सरसंघचालक के बाद सरसेनापति का क्रम आता था. 2 जून, 1930 को मध्य प्रांत के युद्ध मंडल में संघ के सरसेनापति मार्तंड परशुराम जोग को ‘असिस्टेंट कमांडर’ नियुक्त किया गया था (के. के. चौधरी (संपादक), सिविल डिसओबिडियंस मूवमेंट, अप्रैल-सितंबर 1930, खंड 9, गजेटियर्स डिपार्टमेंट, महाराष्ट्र सरकार, 1990, पृष्ठ 946)

8 अगस्त, 1930 को मार्तंडराव जोग को युद्ध मंडल में स्वयंसेवक प्रमुख बनाया गया. 13 सितंबर, 1930 को एंप्रेस मिल के सामने धरना देने के कारण मार्तंडराव जोग को बंदी बनाया गया. उनके साथ भास्कर बड़कस नाम के एक संघ स्वयंसेवक को भी बंदी बनाया गया था. उन्हें पहले नागपुर और बाद में रायपुर कारागार में रखा गया. 7 जनवरी, 1931 को वह कारावास से बाहर आये. डॉ. हेडगेवार की ही टुकड़ी में प्रांतीय कांग्रेस समिति के सचिव और वर्धा जिला संघचालक हरी कृष्ण उपाख्य अप्पाजी जोशी, त्र्यंबकराव कृष्णराव देशपांडे तथा आर्वी (जिला वर्धा) के संघचालक नारायण गोपाल उपाख्य नानाजी देशपांडे शामिल थे. इनमें से प्रत्येक को चार महीने के कारावास का दंड मिला था. नानाजी देशपांडे की जगह नियुक्त आर्वी के संघचालक डॉ. मोरेश्वर गणेश आप्टे को भी 27 अगस्त, 1930 को जंगल सत्याग्रह के कारण कारावास दिया गया था. उनके साथ वामन हरी मुंजे नाम के स्वयंसेवक भी थे.

नागपुर जिला संघचालक लक्ष्मण वामन उपाख्य अप्पासाहब हलदे और सावनेर (जिला नागपुर) के संघचालक नारायण आंबोकर को भी बंदी बनाया गया था. संघ की मंडली में सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार, सरसेनापति मार्तंडराव जोग, सरकार्यवाह बालाजी हुद्दार, डॉ. परांजपे, अण्णा सोहोनी, आबाजी हेडगेवार, विश्वनाथराव केलकर और आप्पाजी जोशी थे. इनमें से डॉ. परांजपे, सोहोनी, आबाज़ी और केलकर को छोड़कर अन्य सभी जंगल सत्याग्रह में शामिल हुए थे. ऐसा प्रतीत होता है कि चारों कार्यकर्ता योजनानुसार ही संघ कार्य सँभालने के लिए बाहर रहे.

जंगल सत्याग्रह में संघ स्वयंसेवक

नागपुर में संघ की स्थापना यद्यपि वर्ष 1925 में हुई, फिर भी अन्य स्थानों पर संघ कार्य को शुरू हुए एक वर्ष भी नहीं हुआ था. बहुत सी जगहों पर संघ कार्य अनियमित था और स्वयंसेवकों की कुल संख्या सैकड़ों में भी नहीं थी. अतः जब जंगल सत्याग्रह शुरू हुआ, तब संघ एकदम नवीन संगठन था. 12 अक्तूबर, 1929 के विजयादशमी उत्सव में प्रस्तुत वृत्त में सरकार्यवाह बालाजी हुद्दार ने संघ के मध्य प्रांत और बरार सहित कुछ अन्य प्रांतों को मिलाकर शाखाओं की संख्या 40 बताई थी. इनमें 18 शाखाएं नागपुर में और 12 शाखाएं वर्धा जिले में थी. संघ का अधिकांश कार्य मराठी भाषी मध्य प्रांत के नागपुर, वर्धा, चांदा और भंडारा जिलों तक फैला था. बरार के जिलों – अमरावती, बुलढाणा, अकोला और यवतमाल में नगण्य था. शुरूआती कालखंड में बहुतांश कार्य दो जिलों तक ही सीमित था और वहीं से संघ के सैकड़ों स्वयंसेवकों ने जंगल सत्याग्रह में सहभाग किया था. संघ अभिलेखागार में मौजूद प्रलेखों से उपलब्ध जानकारी के अनुसार जगह-जगह सत्याग्रह में शामिल होने वाले संघ स्वयंसेवकों के नाम निम्नलिखित हैं –

ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियाँ और संघ स्वयंसेवक

2 अगस्त, 1930 को मुम्बई में कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल सहित मदन मोहन मालवीय और अन्य सात कांग्रेसी नेताओं को बंदी बनाया गया था (चौधरी, पृष्ठ 362). इसके विरुद्ध मध्य प्रांत युद्ध मंडल ने 3 अगस्त, 1930 से ‘बहिष्कार सप्ताह’ मनाने की घोषणा कर दी, जिसके अंतर्गत 8 अगस्त, 1930 को ‘गढ़वाल दिवस’ मनाया गया. कांग्रेस कार्यालय के सामने एकत्रित 50,000 लोगों में आतंक फैलाने की दृष्टि से कामटी से आई एक सैनिक टुकड़ी ने नागपुर में मार्च किया. जमाबंदी के कानून का उल्लंघन करने वाले इस जुलूस को पुलिस ने लगभग 12 घंटे मध्य रात्रि तक रोक कर रखा. संघ के शुश्रुषा पथक के 60 गणवेशधारी स्वयंसेवक दोपहर 1 बजे से दूसरे दिन दोपहर 1 बजे तक प्यासे लोगों को अविरत पानी पिलाने का काम करते रहे. अकोला कारागार से डॉ. हेडगेवार ने इस शुश्रूषा पथक को तैयार करने की सूचना डॉ. परांजपे को दी थी. (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, register/register 7/DSC_0247)

9 सितंबर, 1930 को रामटेक के दो युवकों को सत्याग्रह करने के कारण नागपुर कारागार में कोड़े मारने की सजा सुनाई गयी. उस दिन निषेध सभा आयोजित की गयी और दूसरे दिन हड़ताल की घोषणा की गई. न्यायालय के सामने एकत्रित भीड़ को तितर-बितर करने के लिए घुड़सवार पुलिस के लाठीचार्ज में चार लोग घायल हुए. युद्ध मंडल के अध्यक्ष पी.के. साल्वे और अन्य तीन लोगों को बंदी बनाया गया. कोड़ों से दंडित सत्याग्रहियों को मोटरकार में रखे स्ट्रेचर पर लिटाकर दोपहर में एक विशाल जुलूस निकाला गया (चौधरी, पृष्ठ 1036). इस जुलूस में 32 संघ स्वयंसेवक शुश्रुषा पथक का गणवेश पहनकर शामिल हुए थे. दूसरे दिन यानि 11 सितंबर, 1930 को बंदी बनाए गए लोगों का अभिनंदन करने संबधी जनसभा सरसंघचालक डॉ. परांजपे की अध्यक्षता में आयोजित की गयी थी. पुलिस के अनुसार इस सार्वजनिक सभा में 35,00 लोग उपस्थित थे (चौधरी, पृष्ठ 1038).

कांग्रेस नेता एवं बैरिस्टर मोरोपंत अभ्यंकर पर जेल में हुए अत्याचार के विरोध में मध्य प्रांत युद्ध मंडल ने 24 अक्तूबर, 1930 को ‘अभ्यंकर दिवस’ मनाने का फैसला किया. संघ को भी आमंत्रित किया गया. संघ के स्वयंसेवक इसमें व्यक्तिगत स्तर पर घोष (बैंड) लेकर सहभागी हुए. इसी प्रकार संघ का गणवेशधारी शुश्रुषा पथक भी इस कार्यक्रम में शामिल हुआ था. (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, register/register 7/DSC_0249,DSC_0250)

जंगल सत्याग्रह का संघ कार्य पर प्रभाव

डॉ. हेडगेवार की गिरफ्तारी के बाद भी संघ कार्य नहीं रुका. जुलाई माह में संघ के कार्यकारी मंडल की तीन सभाओं सहित शिक्षकों की एक सभा हुई. महाविद्यालयीन अवकाश समाप्त होने पर संघ में लाठी- काठी की कक्षाएं नियमित रूप से शुरू हुई. यंसेवकों की उपस्थिति भी बढ़ते हुए क्रम पर थी. डॉ. हेडगेवार की अनुपस्थिति में नागपुर में संघ के दैनिक कार्य अण्णा सोहोनी, सेनापति यशवंत नारायण उपाख्य बापुराव बल्लाल, कार्यवाह कृष्णराव मोहरीर, डॉ. हेडगेवार के चचेरे भाई मोरेश्वर श्रीधर उपाख्य आबाजी हेडगेवार इत्यादि लोग देख रहे थे. इसके अतिरिक्त सरसंघचालक डॉ. परांजपे, विश्वनाथराव केलकर की भी संघ कार्य पर नजर रहती थी. डॉ. हेडगेवार के कारावास के दौरान डॉ. परांजपे नियमित रूप से उनसे मिलते और उनकी ठीक होने की सूचना नियमित रूप से संघ स्वयंसेवकों की दी जाती थी. (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, register/register 7/DSC_0242, DSC_0244)

2 अक्तूबर, 1930 को विजयदशमी संचलन के दौरान संघ स्वयंसेवकों ने नागपुर कारागार में बंद सरसेनापति मार्तंडराव जोग तथा बंदी बनाए गए कांग्रेस नेता बैरिस्टर मोरोपंत अभ्यंकर के घर की ओर मुख करके सैनिक मानवंदना दी. इस दौरान कुछ संकुचित लोगों के कारण मोहिते स्थित केंद्रीय संघ स्थान को 24 दिसंबर, 1930 को राजा लक्ष्मणराव भोंसले के हाथी-खाने पर स्थानांतरित कर दिया गया था. (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers/register 7/DSC_0292)

राष्ट्रीय उत्सव मंडल की ओर से 1 अगस्त, 1930 को तिलक पुण्य तिथि का उत्सव नागपुर के सहस्त्र चंडी मंदिर में मनाया गया. ‘महाराष्ट्र’ के संपादक गोपालराव ओगले की अध्यक्षता में, सरसंघचालक डॉ. परांजपे की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम की समस्त व्यवस्था संघ स्वयंसेवकों के पास ही थी. (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers/register 7/DSC_0243)

23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई. उसी दौरान सोलापुर में दो पुलिस वालों की हत्या के मामले में 13 जनवरी, 1931 को चार देशभक्तों को फांसी दी गई थी. दोनों ही प्रसंगों में हुतात्माओं को सैनिक मानवंदना देने के बाद संघ के सभी कार्यक्रम रद्द किए गए. 26 जनवरी, 1931 को स्वातंत्र्य दिन घोषित होने के चलते कांग्रेस के जुलूस में 55 स्वयंसेवक सहभागी हुए. 6 फरवरी, 1931 को मोतीलाल नेहरू के निधन के दूसरे दिन संघ कार्य की छुट्टी दी गई. (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers\register 7\DSC_0304, DSC_0306)

कुछ स्थानों पर प्रतिकूल परिणाम

जंगल सत्याग्रह के कारण संघ के दैनिक कार्य पर कुछ जगहों पर कुछ अवधि के लिए प्रतिकूल परिणाम भी सामने आये. चिमूर (चांदा जिला) से संघ के स्थानीय सह संघचालक माधव नारायण भोपे ने पत्र के माध्यम से डॉ. हेडगेवार को सूचना भेजते हुए लिखा – “चिमूर में 24/8/30 को सामुदायिक जंगल सत्याग्रह हुआ, जिसमें औसतन 1500-1600 लोग शामिल थे. इसकी धरपकड़ 16/9/1930 से शुरू हुई और 22/9/30 तक पंद्रह लोग पकड़े गए. इनमें प्राय: अपने संघ के लोग थे. बाकी सभी स्वयंसेवकों का ध्यान उस ओर खिंच जाने से संघ प्रशिक्षण (औसतन दो माह के लिए) पूर्णतः बंद हो गया है. चिमूर में कांग्रेस के प्रचारकों ने आकर व्याख्यान देना शुरू किया और इस कारण संघ के स्वयंसेवक और गाँव के लोग कुल मिलाकर औसतन दो सौ लोगों ने कांग्रेस के प्रचार का काम करना शुरू कर दिया है.” (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers\Register 3 DSC_0061)

सन् 1930 के अल्लीपुर (वर्धा जिला) के विजयदशमी उत्सव के वृत्त में उल्लेख मिलता है कि “पिछले वर्ष का पूरा कार्यकारी मंडल उसी पद पर बना हुआ है. गोविंदराव (सेनापति और कोषाध्यक्ष) और बालाजी कोठेकर (पर्यवेक्षक) वर्तमान आंदोलन के कारण अब (कार्यकारी मंडल में) नहीं हैं. आजकल बीस-पच्चीस लोग ही संघ में उपस्थित रहते हैं. वर्तमान आंदोलन के कारण अधिकांश लोग नहीं आते. पर्याप्त स्थान के अभाव में अन्य है. प्रार्थना और व्यायाम मात्र शुरू हैं, लेकिन शिक्षा देने वाला भी कोई नहीं है.” (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers\Register 3 DSC_0062)

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्ष 1921 की जनगणना के अनुसार अल्लीपुर की जनसंख्या 4443 थी, जिसमें नवंबर 1929 तक 110 संघ स्वयंसेवक थे. 2 अक्तूबर, 1930 को चांदा में हुए शस्त्र पूजन उत्सव के वृत्त में बताया गया कि “स्वयंसेवकों पर कांग्रेस का प्रभाव है, जिसके चलते ब्रह्मपुरी (चांदा जिला) में संघ का उत्सव उल्लास और हर्ष के साथ होने की संभावना कम है. शस्त्र पूजन के बाद श्री स्वामी रामदास, श्री शिवाजी, लोकमान्य, गांधीजी तथा वज्रदेही मारुति (हनुमान) जी का पूजन किया गया था.” (संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers\Register 3 DSC_0068)

जंगल सत्याग्रह का संघ कार्य पर अनुकूल परिणाम

जंगल सत्याग्रह के फलस्वरूप संघ का बरार में अच्छा-खासा विस्तार हुआ. यह अपेक्षित था कि मध्य प्रांत से होने के कारण डॉ. हेडगेवार मध्य प्रांत में ही सत्याग्रह करेंगे. परंतु डॉ. हेडगेवार ने सत्याग्रह बरार में किया था. उस समय तक बरार संघ के बारे में अनभिज्ञ था. डॉ. हेडगेवार द्वारा बरार में सत्याग्रह किए जाने के परिणामस्वरूप उन्हें अकोला कारागार में रखा गया. उस समय उनके संपर्क में आए कांग्रेस के सभी तत्कालीन कार्यकर्ता संघ के कार्यकर्ता बन गए. अकोला कारागार से छूटने के बाद अगस्त-सितंबर 1931 में डॉक्टर जी ने संघ कार्य के विस्तार हेतु बरार में प्रवास कर संघ शाखाएं शुरू कीं. सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय अनेक लोग डॉ. हेडगेवार से प्रभावित होकर संघ में शामिल हुए. इनमें से अनेक सितंबर 1931 में निम्नानुसार संघचालक बने – डॉ. यादव श्रीहरी उपाख्य तात्याजी अणे (कलकत्ता से ही डॉ. हेडगेवार के मित्र थे), डॉ. प्रहलाद माधव काले (खमगाव), दाजी साहब बेदरकर (आकोट), और शंकर राव उपाख्य अण्णा साहब डबीर (वाशिम). (चौधरी, पृष्ठ 888, 891, 897, 931, 942, 998, 1009, 1023)

दारव्हा (यवतमाल जिला) में बापू साहब डाऊ की संघचालक पद पर नियुक्ति की गई. 29 जुलाई, 1930 को अमरावती में सत्याग्रह करते समय बंदी बनाए गए अमरावती के ‘उदय’ समाचारपत्र के संपादक नारायण रामलिंग उपाख्य नानासाहब बामणगावकर 11 सितंबर, 1933 में अमरावती संघचालक बने.

बाबासाहब चितले का संस्मरण

डॉ. हेडगेवार से आयु में बड़े और उन पर परम स्नेह करने वाले अकोला के संघचालक गोपाल कृष्ण उपाख्य बाबासाहब चितले का जंगल सत्याग्रह के सन्दर्भ में एक संस्मरण उल्लेखनीय है. “डॉ. हेडगेवार सत्याग्रह पर हैं, यह ज्ञात होते ही संघ के जिम्मेदार 125 लोगों ने भी सत्याग्रह किया. सभी को दंड सुनाकर अकोला जेल में रखा गया. मैं डॉक्टर जी से मिलने जेल गया” (केसरी, 2 जुलाई, 1940). डॉ. हेडगेवार के साथ सैकड़ों संघ स्वयंसेवक जंगल सत्याग्रह में शामिल हुए. पर, इससे संघ का दैनिक कार्य रुका नहीं, बल्कि बरार क्षेत्र में काफी कार्य विस्तार हुआ. संघ स्वयंसेवकों ने सरसंघचालक की अनुपस्थिति में भी उनके निर्देश की प्रतीक्षा किये बगैर देश के प्रति अपनी निष्ठा और भक्ति को प्रदर्शित किया. इससे यह स्पष्ट हो जाता है की स्वतंत्रता आंदोलन में न केवल डॉ. हेडगेवार, बल्कि सामान्य संघ स्वयंसेवकों ने भी सक्रियता से भाग लिया.

समाप्त

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