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कला के माध्यम से राष्ट्रीयता, सामाजिक समरसता को स्थापित करने वालों का संगम है ‘कला साधक संगम’

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बेंगलुरु में अखिल भारतीय कला साधक संगम का शुभारंभ

बेंगलुरु. श्री श्री रविशंकर इंटरनेशनल सेंटर में संस्कार भारती द्वारा आयोजित चार दिवसीय अखिल भारतीय कला साधक संगम का विधिवत शुभारंभ हुआ. इस दौरान मैसूर के महाराजा यदुवीर वडियार तथा विजय नगर के महाराजा कृष्णदेव राय की गरिमामय उपस्थिति रही. इनके साथ पद्मश्री मंजम्मा जोगती, प्रसिद्ध तबला वादक रविन्द्र यागवगल, संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध चित्रकार वासुदेव कामत और महामंत्री एवं सुरबहार वादक अश्विन दलवी व मैसूर मंजूनाथ उपस्थित रहे.

अखिल भारतीय महामंत्री अश्विन दलवी जी ने बताया कि पिछले 42 वर्षों से कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना जगाने का काम करने वाली संस्था संस्कार भारती आज सबसे बड़े संगठन का रूप ले चुकी है. कला साधक संगम देशभर में कला के द्वारा राष्ट्रीयता, सामाजिक समरसता को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने वाले लोगों की सहभागिता का एक आयोजन है.

सुप्रसिद्ध तबला वादक पंडित रविन्द्र यागवगल ने संस्कार भारती द्वारा देशभर में कला के क्षेत्र में हो रहे प्रयोगों की प्रशंसा करते हुए इसे एक मील का पत्थर बताया. राष्ट्र जागरण में कला की ऐतिहासिक भूमिका के बारे में बात करते हुए, कला साधकों को देश को एकसूत्र में पिरोने वाला साधन बताया.

पद्मश्री मंजम्मा जोगती ने संस्कार भारती के प्रयासों की सराहना करते हुए देश के हर राज्य से कला साधकों के संगम को एक महत्वपूर्ण पहल व प्रशंसनीय बताया. कला कभी व्यक्तिगत नहीं होती, यह समाज के लिए प्रस्तुत की जाती है. यह व्यवसायिक नहीं, बल्कि परिवर्तन और संस्कृति के प्रसार को जारी रखने का एक क्रम होता है. उन्होंने थर्ड जेंडर समाज और उसकी कला में भूमिका और समाज में उनकी बढ़ती भूमिका को प्रोत्साहित करने का आग्रह किया.

अखिल भारतीय साहित्य संयोजक आशुतोष आदूनि जी ने कलाऋषि बाबा योगेन्द्र जी तथा अमीरचंद जी के जीवनी तथा कार्यों पर देशभर के कलाकारों द्वारा लिखित आलेखों के समग्र ‘कला दधीचि योगेंद्र जी’ और ‘कांतिज्ञ अमीरचंद’ से लोगों का परिचय करवाया. इसके पश्चात मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य लोगों ने दोनों पुस्तकों का विमोचन किया.

वासुदेव कामत ने कला के बिना जीवन की कल्पना की व्यवहारिकता को समझाया. उन्होंने बताया कि कला केवल लोगों के मनोरंजन के लिए नहीं होती है, उस कला में यदि विचार व संस्कार का मिलन हो, तब उसका संदेश प्रभावी और अपने लक्ष्य में सफल होने की क्षमता रखती है. उन्होंने कला साधक संगम में होने वाले कार्यक्रमों व वैचारिक सत्रों को अपने हृदयमंदिर में स्थापित करने का आग्रह किया.

विजयनगर के महाराजा कृष्णदेव राय ने विजय नगर के सभी ऐतिहासिक मंदिरों के जीर्णोद्धार को अपनी प्राथमिकता बताते हुए स्थानीय ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के विषय में अपनी बातें रखी. इसके अतिरिक्त विजय नगर साम्राज्य की ऐतिहासिक कलाओं को पुनर्जीवित करने के विषय में बताते हुए आज की पीढ़ी को इस कार्य से जुड़ने के आह्वान किया. उन्होंने कला क्षेत्र में सांस्कृतिक विविधताओं को कायम रखने के प्रयासों के लिए संस्कार भारती का धन्यवाद किया.

मैसूर साम्राज्य के महाराज यदुवीर ने कार्यक्रम में शामिल होना अपने लिए गौरव का विषय बताया. उन्होंने कर्नाटक की धरती को समस्त भारतीय परंपरा और संस्कृति के लिए घर बताया. उन्होंने आइडिया ऑफ इंडिया को जानने के लिए कर्नाटक के इतिहास और कला के बारे में कलाकारों से आग्रह भी किया. देश के केंद्र में चल रहे नार्थ-साउथ टकराव पर बात करते हुए कहा कि यह जरूरी नहीं कि हर भारतीय कन्नड़ भाषी हो, मगर हर कन्नड़ भाषी भारतीय अवश्य है.

मंचासीन अतिथियों ने कार्यक्रम में लगाई चित्रकला प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया. इस चार दिवसीय कार्यक्रम का समापन 4 फरवरी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी तथा आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर की उपस्थिति में होगा.

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