करौली. नव वर्ष के शुभारंभ पर हिंसा की आग में धधके करौली में कर्फ्यू जारी रहे. हिंसा का एक कारण पुलिस का सुस्त रवैया भी रहा.
घटना को लेकर दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक पुलिस उपद्रव की वजह नहीं खंगाल पाई है. वहीं पथराव-आगजनी की घटना को लेकर पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह फेल रहा. जुलूस पर पथराव के लिए एक पक्ष ने पहले से तैयारी कर रखी थी और एक मकान में काफी संख्या में लोग जमा थे..
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, करौली के हटवाड़ा बाजार के एक मकान में करीब 150 असामाजिक तत्व जमा थे. हटवाड़ा बाजार में रैली ने जैसे ही प्रवेश किया तो घरों की छतों से रैली पर पथराव शुरू हो गया. इसके बाद दोनों पक्ष आमने-सामने हो गए और आगजनी तक हो गई. हैरानी की बात है कि हर साल जुलूस निकलने के एक दिन पहले जिला स्तर पर शांति समिति की मीटिंग होती है.
मीटिंग में एसपी, कलेक्टर और सभी समुदाय के लोग शामिल होते हैं, लेकिन इस बार कलेक्टर-एसपी ने मीटिंग नहीं की. थाने में एसएचओ ने मीटिंग की. इस मीटिंग में उपद्रवी भी शामिल हुए. पुलिस ने हिंसा के बाद इन्हें नामजद किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, रैली में लगभग 800 लोग थे. ये विभिन्न क्षेत्रों से होकर हटवाड़ा बाजार तक पहुंचे, जहां पथराव हुआ. इस दौरान कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी मात्र 40 पुलिसवालों पर थी, जबकि कागजों में 3 एसएचओ व एक डिप्टी एसपी सहित 60 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगी थी. जुलूस में आधे पुलिस वाले 100 मीटर आगे और इतने ही 100 मीटर पीछे चल रहे थे.
दैनिक भास्कर ने रिपोर्ट में घटना को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं….
– जुलूस में 150 पुलिसकर्मियों का जाप्ता लगाना चाहिए था. एडि. एसपी रैंक के अधिकारी भी शामिल होते और खुद एसपी मॉनिटरिंग करते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
– रूट की पहले से ड्रोन से निगरानी की जानी चाहिए थी. ताकि छतों पर एकत्रित पत्थरों की भनक लग जाती. कलेक्टर और एसपी शांति समिति की मीटिंग लेते.
– सूचना तंत्र मजबूत करते ताकि हमले की सूचना पहले मिलती.
– संवेदनशील क्षेत्र से जब रैली निकल रही थी तो एसपी को स्वयं उपस्थित रहना चाहिए था. जयपुर में रैली के दौरान एडिशनल कमिश्नर व डीसीपी रैंक के अफसर मौजूद रहते हैं.