वाराणसी. रूद्राक्ष इण्टरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, सिगरा, (वाराणसी) में आयोजित तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव – 2023 के तीसरे दिन कुल पांच चर्चा सत्र आयोजित हुए.
प्रथम सत्र – भारतीय हिन्दू सम्राट और अखंड भारत
आक्रमणों के बीच भक्ति आन्दोलन के साहित्य का हुआ निर्माण
काशी शब्दोत्सव समारोह में भारतीय हिन्दू सम्राट और अखंड भारत चर्चा सत्र में दिनेश मानसेरा ने कहा कि जिस समय आक्रांता भारत को लूटने का कार्य कर रहे थे. उस समय हमारे मनीषी विचार को आगे बढ़ा रहे थे. आक्रांताओं के आक्रमण के दौरान भक्ति आन्दोलन का सम्पूर्ण साहित्य लिखा गया. भक्ति साहित्य ने देश में आत्मबल बढ़ाया, जिससे राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई तथा पूरा देश में भक्ति की परंपरा चली. आज के समय में दुनिया के तमाम लोग उसी भारतीय ज्ञान से लाभान्वित हो रहे हैं.
विशिष्ट अतिथि व योग प्रशिक्षक सुश्री अमी गनत्र ने कहा कि अखंड भारत की परिकल्पना हम काबुल से कश्मीर तक करते थे. आज के परिवेश में अखण्ड भारत को समझना लोगों के लिए बहुत जरूरी है. जो भौगोलिक स्थिति थी, उसे सोचकर खुश हों या कुछ नया करने के लिए आगे बढ़ने पर मंथन की आवश्यकता है. महत्वकांक्षा इतनी होनी चाहिए कि जहाँ हमारे शक्तिपीठ हैं, वहां हम जा सकें क्योंकि वो अखंड भारत का हिस्सा रहा है. हमारा अखंड भारत पश्चिम की दर्शन से प्रभावित नहीं है, बल्कि अखंड भारत की बात करें तो यह पाकिस्तान बलूचिस्तान बांग्लादेश तक उसका प्रभाव रहा है.
मुख्य वक्ता स्कूल ऑफ संस्कृत एण्ड इंडिक स्टडीज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. रामनाथ झा ने कहा कि अखंड भारत की चर्चा होती है तो आदि शंकराचार्य की बात अवश्य होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने भारत को ज्ञान और भौगोलिक दृष्टि से नापा. जिसे आज वृहत्तर भारत कहते हैं. शंकराचार्य ने सौराष्ट्र होते हुए नेपाल और गंधार की यात्रा की और चार पीठों की स्थापना की. उन्होंने अखंडता को परिभाषित करते हुए कहा कि सजातीय, विजातीय भेद से जो परे हो, उसे अखंड कहते हैं. दुनिया के चिंतन में भारत का चिंतन विशेष महत्त्व रखता है. संस्कृति और आध्यात्मिक दृष्टि से भारत की अखंडता कभी कम नहीं हुई.
कार्यक्रम के अध्यक्ष संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि अनादि काल से जो ज्ञान पंरपरा प्रवाहित हो रही है, जिसमें नए विद्वतजन नवाचार करते आए हैं. उन्होंने ‘भारते भवः भारतीय’ की बात करते हुए कहा कि संस्कृति, भूमि और जन से ही राष्ट्र बनता है.
द्वितीय सत्र – वसुधैव कुटुंबकम और भारतीय मूल्य
भारत की मूल भावना दुनिया में प्रेम और सौहार्द बनाना
सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक संदीप भूतोड़िया ने वसुधैव कुटुंबकम और भारतीय मूल्य पर चर्चा करते हुए कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा यह बताती है कि भारत में जनतंत्र की धारणा पहले से है. भारत की मूल भावना दुनिया में प्रेम व सौहार्द को बनाये रखना है. एक दूसरे से मिल कर विकास संभव है. पूरे विश्व ने हमें समझाया कि संपूर्ण विश्व बाजार है, परंतु हमारा देश समझता है कि पूरा विश्व हमारा परिवार है. हमें सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सभी प्रकार से वसुधैव कुटुंबकम् को आदर्श मानना चाहिए.
लेखिका एवं पत्रकार शैफाली ने एलोरा मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे देश के हर छोटे बड़े मंदिर किसी न किसी प्रकार से हमारे राष्ट्र की समृद्धि और विभिन्नता में एकता का परिचय देते हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत आपदा के समय में दुनिया के सभी देशों को संजीवनी बूटी देने का काम करता है. राष्ट्र के बलशाली, ज्ञान शौर्य और आर्थिक रूप से धनी होने की बात कही. धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो. जैसे नारे के साथ उन्होंने भारतीय मूल को समझाने का प्रयास किया. भारत पूरी दुनिया को सहनशीलता, क्षमा और दया सिखाता है.
वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा कि जहां भारत खड़ा है, दुनिया को नई दिशा देने के लिए खड़ा है. उन्होंने श्रीलंका के अकाल के समय खाद्य सामग्री पहुंचाने, कोरोना के समय पूरी दुनिया को वैक्सीन देने का संदर्भ दिया. हमारा व्यवहार नेपाल से कभी खराब नही हुआ. ये वसुधैव कुटुंबकम के विचार के कारण संभव है. हम पूरे विश्व को एक मानते हैं. लेकिन इसकी कल्पना हमसे है.