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खिलाफत आंदोलन – मोपला जिहाद

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डॉ. श्रीरंग गोडबोले

खिलाफत आंदोलन के बीच हिंसा की कई घटनायें हुईं. खिलाफत आंदोलन के दौरान 1919-1922  के बीच मुस्लिम दंगों की अनुमानित सूची इस प्रकार है (गांधी एंड अनार्की, सर सी शंकरन नायर, टैगोर एंड कंपनी मद्रास, 1922, पृ. 250, 251): नेल्लोर (22  सितंबर 1919), मुथुपेट, तंजावुर (मई 1920), मद्रास (1920 मई), सुक्कुर, सिंध (29 मई 1920), काचागढ़ी, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (8 जुलाई 1920), कसूर, पंजाब (25 अगस्त 1920), पीलीभीत, यूपी (23 सितंबर 1920), कोलाबा जिला बॉम्बे (9 जनवरी 1921), नैहाटी, बंगाल (4, 5 फरवरी 1921), कराची (1 अगस्त 1921), मद्रास (5 अक्टूबर 1921), कलकत्ता (24 अक्टूबर 1921), हावड़ा (4 नवंबर 1921), कूर्ग (17 नवंबर) 1921), कन्नूर (4 दिसंबर 1921), जमुनामुख, असम (15 फरवरी 1922), सिलहट (16 फरवरी 1922).

लेकिन क्रूरता की सभी सीमाएं लांघ दी उत्तरी केरल के मालाबार में सन् 1921-1922 में हुए मोपला जिहाद ने! मोपला जिहाद को ब्रिटिश अधिकारियों और उनके हिंदू सहयोगियों के खिलाफ एक राष्ट्रवादी विद्रोह या हिंदू जमींदारों के खिलाफ एक मुस्लिम किसान विद्रोह के रूप में वर्णित किया गया है. कम्युनिस्ट नेता ई.एम.एस. नंबूदरीपाद के अनुसार “एरनाड और वल्लुवनाड तालुकों के अनपढ़ पिछड़े मोपलाओं को जन्मियों (भूमि के वंशानुगत धारक) के उत्पीड़न के खिलाफ विरोध की पहली आवाज उठाने का श्रेय जाता है” ( शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ़ पीजेंट मूवमेंट इन केरला, .एम.एस नंबूदरीपाद, पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, बॉम्बे, 1943, पृ.1). आश्चर्य की बात है कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन स्वतंत्रता सेनानी एवं पुनर्वास विभाग, स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन योजना के अंतर्गत खिलाफत आंदोलन और मोपला विद्रोह, दोनों में भाग लेने वालों को स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में मान्यता देता है.

पूर्वाग्रह से दूर रहने के लिए, हम कालीकट के पूर्व डिप्टी कलेक्टर रहे दीवान बहादुर सी. गोपालन नायर की पुस्तक मोपला रेबेलियन 1921’ (नॉर्मन प्रिंटिंग ब्यूरो, 1923 द्वारा प्रकाशित) का आधार लेंगे, जो कि ‘मद्रास मेल’ और ‘वेस्ट कोस्ट स्पेक्टेटर’ समाचार-पत्रों में छपे समकालीन समाचारों और लेखों का मात्र कोरा घटनाक्रम प्रस्तुत करता है.

कौन हैं मोपला?

मपिल्ला नाम  (अनु. दामाद; अंगरेजी रूप; मोपला) मलयाली भाषी मुस्लिमों को दिया जाता है, जो उत्तरी केरल के मालाबार तट पर बसे हुए हैं. 1921 तक, मोपला मालाबार में सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता  समुदाय बन गया. इनकी आबादी तक़रीबन 10 लाख थी जो पूरे मालाबार की जनसँख्या का 32 प्रतिशत थी| अधिकांश मोपला दक्षिण मालाबार में केंद्रित थे. जिहाद के केंद्र एरनाड तालुके में, इनकी संख्या कुल आबादी का 60 प्रतिशत थी ( मपिल्ला रेबेलियन, 1921: पीजेंट रिवोल्ट इन मालाबार, रॉबर्ट एल हार्डग्रेव जूनियर, मॉडर्न एशियन स्टडीज, खंड 11, क्रमांक– 1, 1977, पृ. 58).

हालांकि तत्कालीन मालाबार जिले में दस तालुके शामिल थे, परन्तु मार्शल लॉ को एरनाड, वल्लुवनाड, पोनानी, दक्षिण मालाबार के कालीकट और उत्तरी मालाबार के कुरुम्ब्रनाड और वायनाड में घोषित किया गया था. पहले चार तालुकों, जो हिंसा की चपेट में आएं, का क्षेत्रफल और धार्मिक जनसांख्यिकी इस प्रकार थे (नायर, उक्त, पृ.1,2):

 

तालुका क्षेत्रफल  (वर्ग मील) प्रभावित /कुल गाँव हिन्दू मुस्लिम ईसाई
एरनाड 966 94/94 163,328 237,402   371
कालीकट 379 23/65 196,435   88,393 5763
वल्लुवनाड 880 68/118 259,979 133,919    619
पोन्नानी 426 35/121 281,155 229,016  23,081

मुस्लिमों ने वाणिज्यिक उद्देश्यों की पूर्ती की आड़ में  मालाबार में अपने पैर जमाये. बताया जाता है कि कालीकट के स्थानीय राजा चेरामन पेरुमल को इस्लाम कुबूल करने को इन मुस्लिमों ने प्रोत्साहित किया. राजा ने अरब मिशनरियों को मालाबार में आगे बढ़ने और इस्लाम का प्रचार करने के लिए कहा. एक 15 सदस्यीय दल जिसका मुखिया मलिक-इब्न-दीनार था त्रिशूर जिले के कोडंगलूर में उतरा. स्थानीय शासकों से अनुमति प्राप्त करने के बाद, उन्होंने मालाबार और दक्षिण कनारा में दस मस्जिदों का निर्माण किया और इस्लाम के प्रचार की शुरुआत की. मोपला समुदाय का उद्गम इस प्रकार से बताया जाता है.

कालीकट के ज़मोरिन शासक ने अरब जहाजों के लिए नाविक तैयार करने के लिए धर्मान्तरण को प्रोत्साहित किया. उसने आदेश दिया कि मछुआरों के प्रत्येक परिवार में कम से कम एक पुरुष सदस्य को मुहम्मडन के रूप में पाला जाए (डिस्ट्रिक्ट गजेटियर). अगस्त 1789 में टीपू सुल्तान के अभियान के दौरान बड़े पैमाने पर जबरन धर्मांतरण कराया गया(नायर, उक्त, पृ.3, 4).

उत्तरी मालाबार के मोपलाओं को उच्च जातियों के संपन्न वर्गों में से धर्मान्तरित किया गया था, जबकि दक्षिण मालाबार में  मुख्य रूप से निम्न माने जाने वाले तीय्या, चेरुमन और मुक्कुवन जाति से संबंधित आबादी धर्मान्तरित हुई(हार्डग्रेव, उक्त,, पृ.59).

पिछले मोपला उपद्रव

जैन अल-दीन अल-मआबारी द्वारा 1580 के दशक में लिखे ‘तुहफात अल-मुजाहिदीन फी बआद अहवाल अल-पुर्तुकालिय्यीन’ (पुर्तगालियों द्वारा किये गए कर्मों के सम्बन्ध में पवित्र योद्धाओं को उपहार) पुस्तक में सोलहवीं शताब्दी के मालाबार का अरबी इतिहास है. मोपलाओं को पुर्तगालियों के विरुद्ध जिहाद लड़ने की प्रेरणा देने का इस पुस्तक का उद्देश्य था. उल्लेखनीय है कि मोपलाओं के बीच अखिल-इस्लामी भावना सबसे पहले सोलहवीं शताब्दी में ही देखी गई है, जब उन्होंने इंडोनेशिया के एचेनी मुस्लिमों के साथ पुर्तगालियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. मोपलाओं  के बीच अशांति का दस्तावेजी विवरण 1742 से प्राप्त होने लगता है. मार्च 1764 में तालसेरी  के पास धर्मादम किले में एक पुर्तगाली चर्च पर दो मोपलाओं द्वारा बड़ा हमला किया गया था. यह ( इस्लामिक फ्रंटियर इन साउथ वेस्ट इंडिया  शहीद एज अ कल्चरल आइडियल्स अमंग द मपिल्लास ऑफ़ मलाबार, स्टीफन एफ डेल, मॉडर्न एशियन स्टडीज, खंड 11, क्रमांक 1, 1977, पृ. 42-43, 48, 52) . इन उपद्रवों ​​का विश्लेषण स्टीफन डेल द्वारा किया गया है ( मपिल्ला आउटब्रेक्स: आइडियोलॉजी एंड सोशल कनफ्लिक्ट इन नाइनटीन्थ सेंचुरी केरला, जर्नल ऑफ एशियन स्टडीज वॉल्यूम 35, नंबर 1, नवंबर, 1975, पृ. 85-97).

1836 से लेकर 1921 के बीच मोपलाओं की लगभग तैंतीस हिंसक गतिविधियाँ दर्ज की गई थीं, जिनमे एक दर्ज़न से अधिक 1836 के बाद के सोलह वर्षों में ही घटित हुईं| लगभग सभी हिंसक गतिविधियाँ  ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं , इनमे से एक को छोड़कर सारी गतिविधियाँ  कालीकट और पोन्नानी के बीच के क्षेत्र में सीमित थीं|  इनमे तीन को छोड़कर, बाकि सारी हिंसक घटनाओं में हिंदुओं पर मोपलाओं द्वारा हमले किए गए थे. हालाँकि ये उपद्रव बहुत मामूली थे और कुछ दिनों के भीतर दबा दिए गए| इनमें हमलावरों की संख्या सीमित थी और केवल तीन बार ही तीस से अधिक मोपलाओं ने एक हमले में भाग लिया.

कुछ मामलों में शहीद बनने की कोशिश के चलते  इसमें शामिल सभी मोपलाओं की आत्महत्या के उदाहरण भी देखने में आये. इन हमलों में सीधे तौर पर शामिल 350 मोपलाओं में से 322 की मौत हो गई और केवल 28 ही बच पाए. अंतिम आत्मघाती हमले के लिए अनुष्ठान वास्तविक हमले से कई सप्ताह पहले शुरू हुए थे.

33 घटनाओं में से, नौ का कारण, स्पष्ट रूप से ग्रामीण वर्ग के संघर्ष में निहित था; तीन अन्य घटनाओं को आंशिक रूप से कृषि संबंधी शिकायतों के कारण मौक़ा मिला था. लेकिन तेरह अन्य अपेक्षाकृत बड़े हिंसक उपद्रव थे जिनमें कृषि संबंधी विवादों के साथ कोई स्पष्ट संबंध नहीं था. इनमें से चार व्यक्तिगत झगड़े के परिणामस्वरूप हुए. दो ब्रिटिश कलेक्टरों पर हमले थे – एक पर इसलिए क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम नेता को निर्वासित किया था और दूसरे पर इसलिए क्योंकि उन्होंने एक हिंदू लड़के को जिसे जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया था, को बचाया था. तीन मामलों में हिंदुओं और उनके परिवारों को मार दिया गया था क्योंकि उन्होंने इस्लाम में धर्मान्तरित होने के बाद फिर अपने मूल धर्म को दोबारा अपना लिया. अंत में, आठ मामलों में, हमलावरों के इरादों का अनुमान लगाना असंभव है. सैय्यद फ़ज़ल (1820-1901) जैसे मजहबी नेता, जिन्होंने जिहाद का प्रचार किया, मोपला हिंसक उपद्रव के कर्ता धर्ता थे. ये नेता दो प्रकार के थे – थंगल जो आमतौर पर अरब थे और क़ाज़ी और अधिक महत्वपूर्ण मस्जिदों में इमाम के रूप में काम करते थे| और दूसरे मुसलियर थे जो आमतौर पर कम शिक्षित थे और मुल्लाओं के रूप में काम करते थे.

केवल आर्थिक कारण पिछले मोपला हिंसक उपद्रवों ​​को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर सकते हैं. कृषि भूमि से निष्कासन एक प्रमुख कृषि संबंधी शिकायत थी. उल्लेखनीय है कि विभिन्न हिन्दू कृषक जातियाँ 1862-1880 के दौरान भूमि निष्कासन के दो-तिहाई मामलों में मुख्य पीड़ित रही. लेकिन उनके द्वारा किसी हिंसक गतिविधि का कोई उल्लेख नहीं.

दूसरे, निष्कासन के बढ़ने के साथ मोपला उपद्रव नहीं बढ़ा. 1862-1880 के अठारह वर्ष की अवधि में केवल तीन हिंसक घटनाएं हुईं जब निष्कासन के आदेशों की संख्या 1,891 से नाटकीय रूप से  बढ़कर 8,335 तक हो गई. अंत में मोपला मालाबार जिले के हर तालुके में थे.  लेकिन एक अपवाद को छोड़कर साड़ी हिंसा दक्षिणी तालुकों के छोटे हिस्से तक सीमित थी.

इन उपद्रवों और 1921-22 के जिहाद के बीच मुख्य अंतर यह है कि 1921 में, खिलाफत आंदोलन ने मजहबी उग्रवाद और सामाजिक संघर्ष की पूर्व परंपराओं के साथ विचारधारा और संगठन के महत्वपूर्ण तत्वों को जोड़ा.

जिहाद के बीज

मालाबार जिले में खिलाफत आंदोलन की शुरुआत 28 अप्रैल 1920 को मालाबार डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में एक प्रस्ताव द्वारा हुई जिसका आयोजन  एरनाड तालुके के मंजेरी में किया गया था. इस सम्मेलन में लगभग 1000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. मोपलाओं ने सरकार से तुर्की समस्या का निपटारा करने का आग्रह किया, जिसके असफल होने पर उन्होंने लोगों से सरकार के साथ लगातार बढ़ते असहयोग की नीति को अपनाने का आह्वान किया. मौलाना शौकत अली की अध्यक्षता में मद्रास में आयोजित खिलाफत कांफ्रेंस की बैठक में यह नीति निर्धारित की गई थी (नायर, उक्त, पृ. 8).

गांधी और शौकत अली ने 18 अगस्त, 1920 को कालीकट का दौरा किया. खिलाफत और असहयोग पर उनके भाषणों के कारण मालाबार में खिलाफत समितियों की स्थापना हुई. जिहाद से कुछ महीने पहले प्रमुख मोपला केंद्रों पर अतिविशाल रैलियों का आयोजन किया गया (नायर, उक्त, पृ. 8-10) .

जब मद्रास के एक खिलाफत नेता याकूब हसन, 15 फरवरी 1921 को खिलाफत और असहयोग बैठकों को संबोधित करने के उद्देश्य से कालीकट गए थे, तो उनके विरुद्ध प्रतिबंधात्मक आदेश दिए गए. इससे मोपलाओं  के बीच गंभीर नाराजगी पैदा हुई(नायर, उक्त, पृ. 12, 15-16).

खिलाफत के प्रचारक देश भर में घूमते रहे और उन्होंने खिलाफत का प्रचार प्रसार किया. साथ ही बड़े पैमाने पर अफवाहें फैलाई गईं कि अफगान भारत पर आक्रमण करने वाले हैं. स्वराज की प्रत्याशा में, खिलाफत नेताओं ने कथित तौर पर गरीब मोपलाओं को जमीन वापस दे दी थी और केवल वास्तविक कब्जे के लिए आंदोलन का इंतजार कर रहे थे. मद्रास में मौलाना मुहम्मद अली द्वारा दिए गए एक भाषण को मालाबार में पैम्फलेट के रूप में प्रसारित किया गया जिसे  जिला अधिकारियों ने प्रतिबंधित कर दिया (हार्डग्रेव, उक्त, पृ. 71).

जिहाद के लिए अनुकूल कारक

हर मोपला केंद्र में एक ख़िलाफ़त एसोसिएशन मौजूद थी, जिसमें मोपला अध्यक्ष, मोपला सचिव और बहुसंख्यक मोपला सदस्य थे. ऐसी खिलाफत कमेटियों की संख्या ज्ञात नहीं है, लेकिन यह अनुमान है कि एरनाड और पोन्नानी के दो तालुकों में ही लगभग 100 ‘खिलाफत कमेटियां’ गठित हो चुकी थीं (नायर, उक्त, पृ. 16, 18). प्रत्येक गाँव का अपना खिलाफत एसोसिएशन था, और गाँवों के बीच सूचनाओं के आदान प्रदान की एक नियमित प्रणाली थी, जिसके द्वारा एक बड़े क्षेत्र के मोपला पुरुषों को तेजी से किसी निश्चित स्थान पर बुलाया जा सकता था. मस्जिद में केन्द्रित इबादत की प्रणाली ने मुस्लिम बस्ती के अधिक सकेंद्रित पैटर्न को आकार दिया जो मालाबार की अधिक छितरी हुई हिंदू आबादी से पूर्णत: अलग था (हार्डग्रेव, उक्त, पृ. 72).

जिला पुलिस अधीक्षक आर.एच. हिचकॉक, ने लिखा है, “खिलाफत आंदोलन के नेटवर्क से कहीं अधिक महत्वपूर्ण, मपिल्लाओं के बीच संचार की पारंपरिक प्रणाली थी. यह ऐसा बिंदु था जो हिंदू और मपिल्ला के बीच एक बड़ा अंतर निर्मित करता था. कुछ बाज़ारों में पूर्ण रूप से मपिल्ला ही मौजूद हैं, और अधिकांश मपिल्ला सप्ताह में कम से कम एक बार शुक्रवार की नमाज के लिए और अक्सर मस्जिदों में अन्य समय पर भी एकत्र होते हैं. इसलिए वे अपनी खुद की किसी तरह की सार्वजनिक राय बना सकते हैं और जोड़ सकते हैं लेकिन यह सारा काम धर्म की आड़ में किया जाता है, इस कारण  हिंदू या यूरोपीय लोगों को भी इसके बारे में कुछ भी जानकारी होना मुश्किल हो जाता है. कभी कभी पड़ने वाले त्योहारों को छोड़कर हिंदुओं के पास ऐसा कोई अवसर नहीं है ( हिस्ट्री ऑफ मालाबार रेबेलियन, आर.एच. हिचकॉक, गवर्नमेंट प्रेस, मद्रास, 1921, पृ.3). मोपलाओं ने अपने आप को विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस कर लिया था. इनमें सींग वाले हैंडल के साथ लगभग दो फीट लंबी तलवारें शामिल थीं, एक ओर अथवा दोनों ओर धार वाले तथा शीर्ष पर नुकीले किए गए लगभग डेढ़ फीट लंबे शिकार के चाकू; साधारण मोपला चाकू, लाठियां, मम्मुथी और कुल्हाड़ी इत्यादि शामिल थीं ( मैपिला रेबेलियन 1921-1922, जी.आर.एफ टोटेनहैम, गवर्नमेंट प्रेस, मद्रास, 1922, पृ. 36).

मालाबार क्षेत्र की अलग थलग भौगोलिक स्थिति, विशेषकर अंदरूनी पहाड़ी इलाकों ने जिहादियों को घेरने का काम मुश्किल कर दिया. जिहादी अलग-अलग गिरोहों में बंट गये और युद्ध के गुरिल्ला तरीके अपनाकर उन्होंने बड़ी ही कठिन सैन्य समस्या प्रस्तुत कर दी (टोटेनहम, उक्त, पृ. 38). स्थानीय पुलिस, जिनमे से कई मोपला भी थे,  स्थितियों का मुकाबला करने में  लिए पूरी तरह से असमर्थ साबित हुए. पुलिस थानों पर छापा मारा गया; जिसमे व्यावहारिक रूप से पुलिस द्वारा कोई प्रतिरोध भी नहीं किया गया और सभी हथियार विद्रोहियों द्वारा छीन लिए गए थे (नायर, उक्त, पृ. 71; टोटेनहैम, उक्त, पृ. 7).

अंत में, लेकिन महत्वपूर्ण रूप से, हिंदुओं को हिंदू-मुस्लिम एकता के नासमझ नारों तले दबा दिया गया. जैसा कि टोटेनहैम लिखते हैं, “महात्मा के अहिंसा के हिंदू म्यान को  इस्लाम की हिंसक तलवार ने बुरी तरह से काट दिया. मपिल्ला… घर गया और अपना हल पिघला कर तलवार ढालने  के बारे में सोचने लगा. अहिंसा केवल आवरण था, जब कार्रवाई का क्षण आया, तो युवा हिन्दू वक्ता, मोपला मानसिकता से अनजान बने हुए उनके अभियान के साथ आगे बढ़े…”(टोटेनहम, उक्त, पृ. 3).

जिहादी नंगा नाच

सबसे पहले हम आंकड़ों पर नज़र डालते हैं. 20 अगस्त 1921 को जिहाद शुरू हुआ. 26 अगस्त 1921 को मार्शल लॉ लगा दिया गया और 25 फरवरी 1922 को इसे वापस ले लिया गया. जिहाद की समाप्ति 30 जून 1922 को मानी जा सकती है जब अंतिम बचा हुआ मोपला नेता अबू बकर मुसालियार को पकड़ लिया गया था. सितंबर से दिसंबर 1921 तक जिहाद अपने चरम पर था. केंद्रीय विधानमंडल में एक प्रश्न के उत्तर में (डिबेट्स; 16 जनवरी 1922), गृह सचिव सर विलियम विंसेंट ने जवाब दिया “मद्रास सरकार की रिपोर्ट है कि जबरन धर्मांतरण की संख्या संभवतः हजारों तक पहुँच गई है. लेकिन स्पष्ट कारणों से यह सटीक अनुमान जैसा कुछ भी प्राप्त करना संभव नहीं होगा ” (पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ़ इंडिया, बी आर अंबेडकर, थाकर एंड कंपनी लिमिटेड, 1945, पृ. 148).

तलवार के जोर पर 20,800 हिंदू मारे गए और 4000 से अधिक हिंदू मुस्लिम बना लिए गए. ब्रिटिश कार्यवाही के  कारण लगभग 2,339 मोपला मारे गए और 1,652 घायल हुए. 39,338 जिहादियों पर मामले दर्ज किए गए और 24,167 जिहादियों पर मुकदमा चलाया गया. लगभग 2,500 हिंदुओं को जबरन धर्मांतरित किया गया था और लाखों हिंदुओं को बेघर कर दिया गया था (महाराष्ट्र हिंदु सभाच्या  कार्याचा इतिहास, मराठी, एस आर दाते, पुणे, 1975, पृ. 21, 22). नष्ट या भ्रष्ट किये गए मंदिरों की संख्या 1000 से अधिक थी (नायर, उक्त, पृ. 8). इस जिहाद की शुरुआत में कालीकट और मलप्पुरम के सशस्त्र रिजर्व में 210 जवान थे. जिहाद के दौरान, मालाबार स्पेशल पुलिस के रूप में जाना जाने वाला बल, जिले में गठित किया गया जिसमे अंततः 600 जवान तक हो गए (नायर, उक्त, पृ. 39) . मिलिट्री और मालाबार स्पेशल पुलिस के लगभग 43 जवान मारे गए और 126 घायल हुए; जिला पुलिस और रिजर्व पुलिस के 24 जवानों और अधिकारियों की मौत हुई  और 29 घायल हो गए (टोटेनहम, उक्त, पृ. 48, 53, 414, 425).

मोपला जिहाद की विशेषताओं ने निम्नलिखित परिचित पैटर्न का अनुसरण किया: (ज़मोरिन  महाराजा की अध्यक्षता में कालीकट में हुए सम्मेलन की कार्यवाही से उद्धृत ; सर सी शंकरन नायर, उक्त, पृ. 138)

  1. महिलाओं को बेरहमी से पीटना
  2. जीवित व्यक्तियों की खाल उतारना
  3. पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का सामूहिक नरसंहार
  4. पूरे परिवारों को जिंदा जलाना
  5. लोगों का जबरन हजारों की संख्या में धर्मान्तरण, और उन लोगों की हत्या करना, जिन्होंने धर्मांतरण से इनकार कर दिया
  6. अधमरे लोगों को कुओं में फेंकना और पीड़ितों को मरने के लिए और अपने कष्टों से मुक्त होने के लिए संघर्ष करने के लिए छोड़ देना
  7. बड़ी मात्रा में आगज़नी और अशांत क्षेत्र के सभी हिंदू और ईसाई घरों को लूटना जिसमें मोपला महिलाओं और बच्चों ने भी भाग लिया| इस लूटमार में महिलाओं के शरीरों पर से वस्त्र भी लूट लिए गए और पूरी गैर मुस्लिम आबादी को अत्यंत भयंकर अभावग्रस्त बनाने के प्रयास किये गए|
  8. हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए अशांत क्षेत्रों में स्थित कई मंदिरों को अपवित्र और निर्ममता पूर्वक नष्ट कर दिया गया और मंदिर के भीतर गायों को मारा गया और उनके अवशेष प्रवेश द्वार और मूर्तियों पर डाले गये और दीवारों और छतों पर खोपड़ियाँ लटका दी गईं.

कई मुस्लिम नेताओं ने खुद को खिलाफत के राजाओं और  राज्यपालों के रूप में स्थापित किया और हिंदुओं के नरसंहार की अगुआई की. अली मुसैलियर , वरियनकुन्नथ कुन्हम्मद हाजी राजा और सी.आई. कोया थंगल ऐसे ही उदाहरण हैं.  थंगल ने एक सपाट पहाड़ी के ढलान पर अपना दरबार बना रखा था, जिसके आसपास के गांवों में उसके लगभग 4,000 अनुयायी थे. एक बार 40 से अधिक हिंदुओं को उनकी पीठ के पीछे बंधे हाथों के साथ थंगल के पास ले जाया गया, उन पर सैन्य मदद करने के अपराध का आरोप लगाया गया और इनमें से 38 हिंदुओं को मौत की सजा दी गई. उसने व्यक्तिगत रूप से इस हत्याकांड की  निगरानी की और एक चट्टान पर बैठे हुए अपने अनुयायियों को पीड़ितों की गर्दन काटते हुए और शवों को कुएं में फेंकते हुए देखता रहा(नायर, उक्त, पृ. 76-80). दिलचस्प बात यह है कि यह सन 627 में पैगंबर के अधीन इस्लामिक बलों द्वारा खाई की लड़ाई में बानू कुरैज़ा नाम की यहूदी जनजाति के विरुद्ध किये गए हत्याकांड की नकल थी.

धर्मनिरपेक्षतावादी धोखा

मोपला जिहाद पर धर्मनिरपेक्षतावादी मत इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के पीछे  धर्मनिरपेक्ष प्रेरणाओं की प्रधानता बताकर मोपला बलात्कार और हत्या को सही ठहराता है. इस मत की जांच की आवश्यकता है| 1852 की शुरुआत में, टी.एल. स्ट्रेंज को मालाबार में स्पेशल कमिश्नर नियुक्त किया गया ताकि वह मोपलाओं के द्वारा किये जा रहे उपद्रवों की जांच कर सके|  स्ट्रेंज ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “मैं … आश्वस्त हूं और हालांकि ऐसे उदाहरण हैं कि एक पट्टेदार के लिए इस व्यवस्था में व्यक्तिगत कठिनाई पैदा हो सकती है, परन्तु इस समस्त कार्य व्यवहार में हिन्दू जमींदार अपने काश्तकार की ओर, चाहे मोपला या हिंदू, सामान्यत: सौम्य, भेदभाव से रहित और न्यायसंगत रहता है … वहीँ मोपला पट्टेदार, विशेष रूप से दक्षिण मालाबार के तालुकों में, जहाँ उपद्रव का प्रकोप सर्वाधिक है , अपने दायित्वों से बचने के लिए बहुत कुशल हैं. झूठे और अपमानजनक मुकदमेबाजी का सहारा लेते हैं… हिंदू, उन हिस्सों में जहां सर्वाधिक उपद्रव हुए हैं, मोपलाओं  से ऐसे भयभीत हैं कि इनमे से ज्यादातर उनके खिलाफ अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की हिम्मत भी नहीं नहीं जुटा पाते| कई मोपला पट्टेदार ऐसे हैं जो किराए का भुगतान भी नहीं करते हैं'(नायर, उक्त, पृ. 6). मोपलाओं ने तिया नाम की निचली समझी जानेवाली जाति पर हमला करने की कई घटनाएं जिहाद के दौरान घटी. तिया जाति के ताड़ी-दुकानों की पिकेटिंग का विषय, जो असहयोग आन्दोलन का एक हिस्सा था, सीधे तौर पर मुस्लिम भावनाओं से जुड़ा हुआ था (हार्डग्रेव, उक्त, पृ. 70,71).

यदि वास्तव में जिहाद एक उपनिवेशवाद-विरोधी या सर्वहारा-विरोधी उद्यम था, तो हिंदुओं को धर्मांतरित और मंदिरों को नष्ट क्यों किया गया, जबकि मस्जिदें बची हुई थीं? स्वयं मोपला जिहादियों ने अपनी हिंसा का कोई सेक्युलर स्पष्टीकरण नहीं दिया. दो नेताओं ने अपने तरीके से मोपलाओं के कार्यों के लिए,  धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि इस्लामी प्रेरणाएं बतायी हैं. गांधी ने मोपलाओं के बारे में कहा कि, “बहादुर और ईश्वर से डरने वाले मोपला जिसे वे मजहब समझ रहे हैं उसके लिए लड़ रहे हैं और उस तरीके से जिसे वे मजहबी समझते हैं.” डॉ अम्बेडकर ने कहा कि इसका “उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंककर इस्लाम के राज्य की स्थापना करना था” (अम्बेडकर, उक्त, पृ. 148, 153). सत्य वैचारिक अत्याचार का प्रथम हताहत होता है. विद्रोह नहीं, विप्लव नहीं, क्रान्ति नहीं; यह नग्न मोपला जिहाद था!

क्रमश:

(लेखक ने इस्लाम, ईसाई धर्म, समकालीन बौद्ध-मुस्लिम संबंध, शुद्धी आंदोलन और धार्मिक जनसांख्यिकी पर पुस्तकें लिखी हैं)

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