धार जिले की नगर धरमपुरी, जो एक बड़ी ही आलौकिक और पौराणिक नगरी है. यह एक ऐसा स्थान है जो महर्षि दधिची की तपोभूमि रही है एवं श्रीराम के वंशज राजारन्तिदेव जी ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था. रानी रूपमती का जन्मस्थान भी यह नगर रहा है. यहां अनेक ऐतेहासिक ओर पौराणिक मन्दिर हैं जो शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते क्षरित हो रहे हैं. लेकिन समाजसेवी, स्वयंसेवक डटे ही रहते हैं. प्रतिदिन शाखा विकिर के बाद किसी मंदिर की साफ-सफाई, नर्मदा घाट को स्वच्छ करने का कार्य इत्यादि नित्य रूप से करते थे. धरमपुरी नगर में शीतला माता मंदिर के पास खुदाई में भगवान भोलेनाथ पाए गए, जिनकी पूजा नगरवासी नित्य करते रहे. यह लिंग ऐसे स्थान पर हैं, जहां बारिश के पानी के चलते गाद (मिट्टी) जमा हो जाती थी.
संघ के स्वयंसेवक उसे हर 2-3 माह में साफ करते रहते थे. एक दिन अचानक संघ की शाखा के मुख्य शिक्षक के मन में एक इच्छा जागृत हुई कि क्यों न संघ के स्वयंसेवक की एक टोली प्रतिमाह मंदिरों के संरक्षण के लिए कम से कम 100 रुपये एकत्रित करे और धनराशि का हम धार्मिक मठ-मंदिरों में सदुपयोग करें. मुख्य शिक्षक ओर उनकी टीम द्वारा एक जागीरदार सेवा समिति धरमपुरी के नाम से टीम तैयार की गई. समाज से भी धन सहयोग प्राप्त हुआ. समिति के माध्यम से इतनी धनराशि एकत्रित तो कर ही ली थी कि जहां लिंग खुले में बारिश और कीचड़ में रहते थे, उनके लिए एक मंदिर का निर्माण हो सके.
स्वयंसेवकों ने इंजीनियर को बुलाकर पूरा नक्शा तैयार करवाया, लेकिन जो लागत आ रही थी उतनी धनराशि उनके पास नहीं थी. फिर चिंता हुई अब कैसे काम हो? विचार करने लगे, उन्होंने पुनः इंजीनियर से पूछा – इसमें अगर मजदूरी को छोड़ दें तो ये कार्य हो सकता है या नहीं, तो इंजीनियर ने सहमति दे दी.
फिर क्या था, कहते हैं न “न जाने किस रज से बनते स्वयंसेवक”. जुट गए कार्य में. किसी ने रेत उठाई, किसी ने गिट्टी, किसी ने ईंट, किसी ने मशीन चलाई और अपने मन में प्रबल इच्छा शक्ति को साथ लेकर एक सुंदर मन्दिर का निर्माण कर दिया.
वास्तव में संघ व्यक्ति निर्माण की कार्यशाला है जहां समाज सोचता है……”न जाने किस रज से बनते कर्मवीर !