जैसलमेर के कुलधरा गांव के बाद अब यहां से 18 किमी दूर बासनपीर गांव में पालीवालों का एक और गांव होने के प्रमाण मिले हैं. यहां पौधारोपण के लिए की जा रही खुदाई के दौरान एक तहखाना मिला है. जिसमें सीढ़ियां भी हैं. माना जा रहा है कि आगे खुदाई करने पर पूरा मकान और अन्य मकानों के खंडहर मिल सकते हैं. गांव वालों के अनुसार 200 वर्ष पहले जैसलमेर के आसपास पालीवालों के 84 गांव हुआ करते थे. लेकिन तत्कालीन दीवान सलीम के अत्याचारों से परेशान होकर वे एक साथ यहां से पलायन कर गए. अब जगह-जगह इनके बसने के प्रमाण मिल रहे हैं. जैसलमेर का वीरान कुलधरा गांव इसका सबसे बड़ा प्रमाण है. अब बासनपीर गांव में यह तहखाना मिलने से पालीवालों के एक और गांव के होने की पुष्टि होती है.
पालीवालों के लिए माना जाता है कि वे कभी पाली के निवासी थे, इसी आधार पर पालीवाल कहलाए. पाली की उन्नति में पालीवालों का बहुत बड़ा योगदान था. पाली तत्कालीन व्यापार का केन्द्र था और यहां के व्यापारियों की कोठियां मांडवी, सूरत और नवागर में थीं. वहां पाली वाले व्यापारी ईरान, अर्वस्थान (अरब), अफ्रीका, यूरोप तथा उत्तर तिब्बत से व्यापार करते थे. मि. विल्सन की “इण्डिया कास्ट” पुस्तक के अनुसार पाली एक व्यापारी नगर था, जिसमें पालीवालों के एक लाख घर थे. वे सब प्रसिद्ध व्यापारी थे. पाली पर यवनों के हमले के बाद पाली का पतन शुरू हो गया. यवन पालीवासियों को कन्वर्जन के लिए मजबूर करने लगे तो पालीवाल वहां से पलायन कर गए और पलायन के बाद वे खेती व पशुपालन पर निर्भर हो गए. मेहनती व बुद्धिमान पालीवालों ने जैसलमेर के रेगिस्तान में भी सोना उगलने के तरीके खोज निकाले. उन्होंने जिप्सम की परत वाली ज़मीन पर अपने गांव बसाए. जिप्सम की परत वर्षा के जल को ज़मीन के अंदर अवशोषित होने से रोकती है, जिससे पानी लंबे समय तक बचा रहता था. इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने खड़ीनों का निर्माण किया. इस पानी से वे आसानी से दो फसलें, यहाँ तक कि गेहूं की खेती भी कर लेते थे. इस कारण पालीवाल किसानों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी और वे इसी कारण सम्पन्नता प्राप्त कर सके.
अच्छा हो यदि सरकार बासनपीर में आगे की खुदाई भी कराए और कुलधरा, खाभा व बासनपीर में पालीवालों की धरोहर को सहेजे, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी अपने पूर्वजों पर गर्व कर सकें.