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संतों के सहयोग, बेहतर प्रबंधन व सरकार की सूझबूझ से कोरोना काल में आयोजित कुम्भ

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प्रतीकात्मक फोटो

हरिद्वार को बदनाम करने के लिए हो रही साजिश

अमित शर्मा

हरिद्वार. महाकुंभ को लेकर चल रही तरह-तरह की बहस से हरिद्वार को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है. हिन्दू धर्म-संस्कृति-परंपराओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए महाकुंभ के बहाने सरकार व मेला प्रशासन को घेरने की तैयारी चल रही है. जबकि इसके विपरीत उत्तराखंड सरकार व मेला प्रशासन कोविड के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए प्रारंभ से ही कुंभ को सीमित किया गया. उत्तराखण्ड सरकार व मेला प्रशासन की सूझबूझ व बेहतर प्रबंधन, संतों के सकारात्मक सहयोग, के चलते कोरोना काल में महाकुम्भ का सफल आयोजन हुआ. दिव्य-भव्य के नाम पर किए जाने वाले महाकुंभ के आयोजन को बेहद ही सीमित व सूक्ष्म रूप में पूरा किया गया.

12 वर्ष के अंतराल पर हरिद्वार में लगने वाले महाकुंभ का मुख्य आकर्षण देश-विदेश से आने वाले साधु संत महात्मा के साथ एक से बढ़कर एक तपस्वी सन्यासियों की उपस्थिति होती है. लेकिन इस बार अति सूक्ष्म रूप से संपन्न कुंभ में संत महात्माओं की दिव्यता व वैभवता के साथ तपस्वी सन्यासियों के दर्शन नहीं हुए, अखाड़े की पेशवाई व शाही स्नान को छोड़ दें तो पूरे महाकुंभ में एक भी आयोजन ऐसा नहीं हुआ, जिसमें महाकुंभ की झलक दिखी हो. कोरोना वायरस के बीच हुए इस महाकुंभ में शायद पहला मौका होगा, जब हरिद्वार में संतों के मंथन से अमृत ना छलका हो.

कोविड-19 के चलते उत्तराखंड सरकार ने 1 जनवरी से प्रारंभ होने वाले महाकुंभ को 1 अप्रैल से प्रारंभ किया. जहां पहले 120 दिन का महाकुंभ आयोजित होता था, वहीं इस बार महज 30 दिनों में संपन्न हुआ. यही नहीं कोविड-19 की sop के चलते इस बार महाकुंभ में लगने वाले महामंडलेश्वर नगर, कथावाचकों के पंडाल सहित देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति व उत्तराखंड की संस्कृति से संबंधित प्रदर्शनियां आदि भी नहीं लगे. आलम यह रहा कि जिस मेला क्षेत्र में पैर रखने की जगह भी नहीं होती, वहां दूर-दूर तक परिंदा भी नजर नहीं आ रहा है. हर की पौड़ी से लगे हुए पंतदीप, चमगादड़ टापू, नीलधारा, चंडी दीप, गौरी शंकर दीप, नया टापू, दक्षदीप सभी खाली पड़े हैं.

सरकार द्वारा किसी भी संत, महंत, महामंडलेश्वर व अन्य धार्मिक संस्थाओं को भूमि आवंटित नहीं की. जिसके चलते हरिद्वार स्थित जो अखाड़े हैं. उन्होंने अपनी छावनियों में ही अपने साधु संतों महंतों के रहने की व्यवस्था की थी. सैकड़ों की संख्या में महामंडलेश्वर व लाखों नागा सन्यासियों वाले जूना अखाड़े के किसी भी महामंडलेश्वर को स्थान नहीं मिला, यही व्यवस्था निरंजनी, आनंद, आवाह्न, अग्नि के साथ महानिर्वाणी व अटल अखाड़ा के लिए भी रही. उदासीन अखाड़े के संत महंत भी अपनी छावनी तक ही सीमित रहे तो वहीं निर्मल अखाड़े के संत भी अपनी छावनी में ही रहे.

हरिद्वार में बैरागी संतों का स्थान ना होने के कारण पूर्व से आरक्षित बैरागी कैंप में बैरागी अखाड़ों को सरकार द्वारा जगह देकर उनके शिविर लगवाए गए, लेकिन इन शिविरों की संख्या भी महज कुछ तक ही सीमित रह गई. सरकार द्वारा जारी sop के चलते अधिकांश संत महंत कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट लेकर ही हरिद्वार पहुंचे थे. यही नहीं कोविड-19 के चलते साधु संतों के भक्त भी अधिक संख्या में नहीं आ सके.

उधर, कुंभ के मद्देनजर प्रशासन द्वारा सुरक्षाबलों स्वास्थ्य कर्मियों, मीडिया कर्मियों व अन्य अधिकारी-कर्मचारियों के लिए लगाए गए टेंट भी खाली पड़े रहे. अधिकांश मीडिया संस्थानों ने अपने स्थानीय व स्टेट कार्यालयों से ही काम चलाया. कोविड जांच के लिए कुंभ क्षेत्र में सैकड़ों जगह टेस्ट प्वाइंट बनाए गए, जहां पर लगातार लोग कोविड-19 जांच करा रहे हैं. हरिद्वार आने वाले प्रत्येक मार्ग पर कोविड-टेस्ट हो रहा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मुख्य स्नान पर्व पर 50,000 से अधिक लोगों को कोविड- नेगेटिव रिपोर्ट ना होने के कारण बार्डर से ही वापिस भेज दिया गया. जबकि हरिद्वार के कुछ अखाड़ों के साधु संतों में कोविड-19 पॉजिटिव होने के चलते यहां पर ठहरे प्रत्येक व्यक्ति का भी टेस्ट कराया जा रहा है.

एक अनुमान के तहत कोविड जांच में पाए गए पॉजिटिव केस का अनुपात महज 1 प्रतिशत के लगभग ही है. जो किसी भी राज्य व टेस्टिंग के आधार पर सामान्य से भी कम है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रतिदिन 5000 से अधिक टेस्ट कराए जा रहे हैं. कहा जाए कि सरकार की सूझबूझ व मेला प्रशासन के बेहतर प्रबंधन, अखाड़ों, संतों, महंतों के सकारात्मक समर्थन के कारण कोरोना महामारी के बीच कुम्भ सकुशल सम्पन्न हुआ है.

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