उज्जैन. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि समाज में सभी को ‘कुटुंब प्रबोधन’ की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. कुटुंब प्रबोधन हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत है. “कुटुंब प्रबोधन भारत के चरित्र में निहित है, कुटुकम्ब का ध्यान नहीं देंगे तो जीवन सार्थक कैसे रहेगा? हमें पता होना चाहिए कि हमारे पड़ोस में कौन है? हमारे समाज में कौन है? उनके क्या सुख दुख हैं? कैसे हम उनको राहत दे सकते हैं? यह जीवन को सार्थक बनाते हैं. ऐसी स्थिति में जब हम पाते हैं कि हर कोई भौतिकवाद की तरफ जा रहा है. इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम अपनों को नजरअंदाज कर देते हैं, अपनों का ध्यान नहीं रखते? राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा, जब कुटुंब का ध्यान रहेगा. यह हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत है”.
https://x.com/editorvskbharat/status/1856570469207683316
उज्जैन में 66वें ‘अखिल भारतीय कालिदास समारोह’ के उद्घाटन अवसर पर कहा, “कोई भी समाज, कोई भी देश, इस आधार पर नहीं चल सकता कि हम अधिकारों पर जोर दें. हमारे संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं, पर हमें उन अधिकारों को हमारे दायित्व के साथ संतुलित करना होगा. नागरिक के दायित्व होते हैं, नागरिक की जिम्मेदारी होती है. और इसलिए आज के दिन आह्वान करूंगा, मन को टटोलिए. हम महान भारत के नागरिक हैं. भारतीयता हमारी पहचान है. हमारा राष्ट्रीयता में विश्वास है, राष्ट्र हमारा सबसे बड़ा धर्म है, राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हैं और उसमें हर नागरिक को आहुति देनी है. और उसका सबसे श्रेष्ठ माध्यम है कि नागरिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें”.
नई युवा पीढ़ी में चरित्र निर्माण के लिए नागरिक कर्तव्यों और नैतिकता के प्रति सजगता बढ़ाने की आवश्यकता है. “बच्चे हमारी आने वाली पीढ़ी है. हमें उनके चरित्र पर ध्यान देना चाहिए. नैतिकता का विश्वास बढ़ाना चाहिए. यह हमारी मुख्य जिम्मेदारी है. सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चा अच्छा नागरिक बने, वो नागरिक के महत्व को समझे, नागरिक के कर्तव्य को समझे.”
भारत की ‘सामाजिक समरसता’ के प्रति प्रतिबद्धता पर कहा कि “आज के दिन ‘सामाजिक समरसता’ को जगह जगह से चुनौतियाँ दी जा रही हैं. भारत हमेशा सामाजिक समरसता, विश्व शांति और सबके कल्याण को दृष्टि में रखता है. हम उस देश के वासी हैं, जिसने वसुधैव कुटुम्बकम को अपनाया, दुनिया के सामने सार्थक प्रयोग रखा है. हमने दुनिया को योग दिया, यह विद्या हमने दी क्योंकि हम सबकी सोचते हैं.
महाकवि कालिदास की कृतियों के माध्यम से प्रकृति के संरक्षण के महत्व को दर्शाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज की ज्वलंत समस्या पर्यावरण की है. महाकवि कालिदास की रचनाओं से हमें बोध होता है कि पर्यावरण संरक्षण और सृजन हमारे अस्तित्व के लिए अहम है. जागरूकता से जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या पर सभी को ध्यान देना चाहिए और हमें याद रखना चाहिए कि हमारे पास पृथ्वी के अलावा दूसरा कोई रहने का स्थान नहीं है.