लद्दाख. वर्तमान वैश्विक संदर्भ में भारत-चीन सीमा विवाद मूलत: भारत के बढ़ते वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक व सैन्य शक्ति को प्रतिबिंबित करता है. दरअसल, चीन विश्व में भारत की बढ़ती धाक से भड़का हुआ है. चीन वैश्विक महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा में दक्षिण एशिया सहित विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव को कम करने का विफल प्रयास कर रहा है. सीमा विवाद के पीछे यही वजह है. लेकिन चीन की हरकतों को जवाब देने के लिए भारतीय सेना के साथ ही सीमा पर बसा समाज भी तत्पर है. पूर्व सैनिक, युवा, महिलाएं, सेना के सहयोग के लिये तैयार हैं.
पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन को धूल चटाने के लिए सेवानिवृत्त सैनिक भी दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं. पुनः हथियार मिलें तो ये चीनी सैनिकों को पस्त कर देंगे. इतना ही नहीं, ब्लैक टॉप जैसी ऊंची चोटियों पर तैनात सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए स्थानीय युवा भी आगे आए हैं. वह पोर्टर की भूमिका में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में साजो-सामान पहुंचा रहे हैं. वर्तमान में सौ स्वयंसेवी कार्य में जुटे हैं, इसमें महिलाएं भी भूमिका निभा रही हैं.
चीनी सेना को खदेड़कर कालाटॉप पहाड़ी पर डटे रणबांकुरों को जरूरी सामान की जरूरत पड़ी तो सामान ढुलाई के लिए चुशुल गांव से पोर्टर मांगे गए. सूचना मिलते ही गांव के सौ से ज्यादा युवा वालंटियर के रूप में सप्लाई पहुंचाने में जुट गए.
पूर्वी लद्दाख के चुशुल व मेरक क्षेत्रों के स्वयंसेवी प्रतिदिन सात किलोमीटर चलकर 18,600 फीट की ऊंचाई पर ब्लैक टॉप, गुरूंग जैसी चोटियों पर जरूरी साजो-सामान पहुंचा रहे हैं. इनमें युवा, सेवानिवृत्त सैनिक, तिब्बत से आकर बसे लोग और डॉक्टर भी शामिल हैं. दवाइयां, पानी और जरूरी सामान पहुंचा रहे हैं. चुशुल सेक्टर के युवा पोर्टर के रूप में सेना के साथ दिन-रात मैदान में हैं. चुशुल के 170 घरों का कोई न कोई सदस्य चीन को हराने के लिए सेना के साथ है.
लद्दाख स्काउट्स रेजीमेंट के युवा लड़ाके खड़े हैं तो स्थानीय लोग भी कदम से कदम मिला रहे हैं. सेना की मदद के लिए हाथ बढ़ाने वाले चुशुल के निवासियों में से प्राइमरी हेल्थ सेंटर के डॉक्टर जिगमित वांगचुक भी हैं. वह पीठ पर दवाइयां व हाथों में पानी की बोतलें लेकर गुरूंग हिल पर जवानों तक पहुंचाते हैं. उनका कहना है कि क्षेत्र के दुर्गम हालात में जवानों का कोई मुकाबला नहीं है. हर देशवासी सेना की बहादुरी का कायल है.
लद्दाख स्काउट्स के पूर्व सैनिक ताशी का कहना है कि हथियार मिले तो चीन को दिखा देंगे कि हममें अभी बहुत दम है. चुशुल सेक्टर के निवासी व लेह हिल काउंसिल के काउंसिलर कुंचोक स्टेंजिन ने बताया कि तकरीबन 100 लद्दाखी स्वयंसेवी सेना की मदद कर रहे हैं. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बसे लद्दाखी किसी से कम नहीं हैं.
भाजपा सांसद जामयांग सेरिंग नांग्याल ने वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे चुशुल में जाकर सेना की मदद कर रहे लोगों का हौसला बढ़ाया. चुशुल के लोग भारतीय सेना की मदद करने के लिए मैदान में हैं. उनकी देशभक्ति सिर चढ़कर बोल रही है.