योगिता साळवी
विक्रोली का इंदिरा नगर. आज भी रात के समय बस्ती में कोई नहीं आता. कारण भी वैसा ही है. शमशान भूमि की दीवार का सहारा लेकर बस्ती बसी है. शमशान में जलने वाले शवों का धुँआ और बस्ती में घरों में खाना पकाने वाले चूल्हे का धुंआ एक साथ आकाश में जाता है, इतना समीप है बस्ती और शमशान. बस्ती में बाहर से कोई आना संभव ही नहीं था. इसका लाभ समाजकंटक ना लेते तो ही आश्चर्य था. सभी अच्छे बुरे काम बस्ती में आराम से चल रहे थे. सोचिये, ऐसी बस्ती में कोरोना के कालखंड में कैसा वातावरण होगा.
वहां जाकर देखना आवश्यक था. कुछ वर्ष पहले किसी और सामाजिक सर्वेक्षण के कारण इस बस्ती से संपर्क हुआ था. सर्वेक्षण फार्म भरते समय लगभग ८० महिलाओं ने अपने पति का नाम ‘हनुमंता’ बताया था. यह हनुमंता कोई मनुष्य नहीं था, बल्कि बजरंगबली हनुमान थे. वे हनुमान को अपना पति बता रही थीं. यह सभी महिलाएं कर्नाटक के मातंग समाज से हैं. फ़िलहाल ये सभी पत्थर फोड़ने का काम करती है. कहा जाता है कि उनके गांव में किसी रोग का संक्रमण हुआ और लोग मरने लगे. लड़कों को बचाने के लिए लोगों ने दवाई खरीदी. परंतु लड़कियों को बचाने के लिए कौन खर्च करेगा? गांव के बाहर के हनुमान मंदिर में बीमार लड़कियों को छोड़ दिया गया. कुछ लड़कियों ने अपने प्राण गवां दिए, जो बच गईं उनका रक्षणकर्ता हनुमंता. हनुमंता के नाम पर इन्हें छोड़ दिया गया. देवदासियों के जीवन भोग उन्हें सहने पड़े. इस दुर्दैवी जीवन से त्रस्त होकर वे मुंबई आ गईं. और यहां परिश्रम करने लगीं. ऐसी मेहनती महिलाओं की यह बस्ती. वहां गए तो सब चिंताग्रस्त दिख रही थीं. काम बंद हो चुका था. पापी पेट की भूख के कारण जिंदगी पहले ही बर्बाद हो चुकी थी. फिर भी वह अपनी स्थिति से जूझकर ही सही पर जी रही थीं. अब कोरोना के काल में जीवन निराधार हो गया था.
बस्ती में सामाजिक-राजनैतिक काम करने वाले लीला मौसी को साथ में लेकर उनसे मिलना हुआ. उनसे चर्चा की. उन्हें कोरोना के बारे में पूछा. कोरोना क्या है – इसके बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था. एक महिला ने बताया, कोरोना होने पर मनुष्य कुत्ते की मौत मरता है. मैंने पूछा, कोरोना से बचने के लिए आप क्या करती हो? उस पर उन महिलाओं ने कहा, क्या कर सकते हैं? मरने की राह तो नहीं देख सकते. जैसे संभव होता है, वैसे सभी सावधानियों से सब देखभाल करते हैं. उन्हें कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए क्या किया जाए, इस बारे में जानकारी दी. इस पर उनका कहना था, एक टॉयलेट, एक ही पानी का कनेक्शन, अपने जो बताया वह कैसे संभव होगा? बस्ती में दारू-सिगरेट पीने वाले भी बहुत हैं. जुआ भी खेला जाता है. घर छोटे हैं, बैठने के लिए भी जगह नहीं. और बाहर नहीं गए तो दाल-चावल कौन खिलाएगा? उनके प्रश्न वास्तविक थे, जिस का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था.
उन्हें सरकार, प्रशासन और स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं के बारे में जानकारी दी. इन महिलाओं का कहना था कि वे कितने दिन देंगे? हम किसी पर निर्भर क्यों रहें? इससे अच्छा है काम शुरू हो जाए. भीख ही मांगनी होती तो कब की मांग लेते. इज्जत बेचकर रोटी कमा लेते. पर, हमें हमारे अधिकार का खाना चाहिए. अशिक्षित, रोजदारी पर काम करने वाले उन महिलाओं को देखकर मन में आया, जन्म देने वाले माता-पिता ने मरने के लिए छोड़ दिया, परंतु इतनी यातनाएं सहकर भी अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ा. उन्हें मैं हम क्या दे सकते हैं?
एक महिला ने कहा, हम मुफ्त नहीं मांगते दीदी. पर हमारे अधिकार का अनाज तो हमें मिलना चाहिए ना. बाकि हम जी लेंगे. ये उस समय की घटना है, जब तबलीगी महाराष्ट्र से भागे थे. यह बस्ती उनके छिपने लायक थी. बाजु में मैनग्रोव का जंगल, खाड़ी भी थी. यहां कोई छिपा होगा क्या, ऐसा सोचकर मैंने उनसे कहा, यहां पर अगर कोई अनजान व्यक्ति आए तो उस पर ध्यान रखना. उन्हें मैंने तबलिगी के बारे में जानकारी दी. उस पर उन बहनों का कहना था – ये हनुमंता की बस्ती है. यहां कौन आएगा? सब औरतों ने हाथ उठाकर शपथ ली. पर, एक महिला चुपचाप कोने में खड़ी थी और उसने शपथ के लिए हाथ भी नहीं उठाया. अब सभी औरतें उसकी तरफ गयीं और कन्नड़ में उससे बात करने लगी. इसके बाद उस महिला ने दोनों हाथ ऊपर किये और कन्नड़ में कुछ कहा. मैंने पूछा तो बाकि औरतें बोली, ये तो देवदासियों का नसीब है. इसका मालिक अपना नहीं है. अपना नहीं मतलब, हिन्दू नहीं. हमने उससे कहा अगर तुम्हें हमारे साथ नहीं आना है तो अभी बता दे. कल अगर कोई बाहर से आ गया और तूने छिपाया और फिर सबको कोरोना हो गया तो? हनुमंता ने हमें बचाया. हम किसी का बुरा नहीं करते. हनुमंता का स्मरण करो और फिर जो करना है, वह करो. दीदी उसने हनुमंता की शपथ लेकर कहा है कि अगर बस्ती में कोई आएगा तो वो हमें बताएगी.
जीवन ने जिन्हें वंचितों के दुःख झेलने पर विवश किया, उन्हें देखकर लगता है कि सुख नाम की कोई चीज है या नहीं? इन महिलाओं की अवस्था देखकर आंखें भर आई. मेरी अस्वस्थता देखकर एक औरत ने कहा, रुको अक्का चाय बनाती हूँ. विशेष बात यह कि उस बस्ती में कभी कोरोना का प्रभाव नहीं दिखाई दिया. अत्यंत प्रयत्नपूर्वक सभी सावधानी से उन महिलाओं ने व्यवहार किया. कोरोना संक्रमण से बचाव करने के लिए आवश्यक सभी निर्देशों का पालन किया. पर, प्रशासन द्वारा प्रदत्त अधिकार उन्होंने बिल्कुल नहीं छोड़े. बाकी जीवन तो चल ही रहा है – हनुमंता भरोसे….