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युवा भारत के ‘स्व’ को जाने-पहचाने और अपने आचरण में लाए – वी. भागय्या जी

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भोपाल. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य वी. भागय्या जी ने कहा कि भारत को भारत के मूल चिंतन और विचार पर चलने की आवश्यकता है. भारत के हर भाग में देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हुआ, जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग ने भाग लिया. वर्तमान युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महापुरुषों का स्मरण कर उनसे प्रेरणा लेकर अपने भविष्य के जीवन का विचार करना चाहिए.

भागय्या जी स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के निमित्त राष्ट्र उत्थान न्यास के विवेकानन्द सभागार में आयोजित कार्यक्रम में युवाओं को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रत्येक क्षेत्र में अपना स्व – तंत्र यानि अपना तंत्र होना चाहिए. सृष्टि के पंच महाभूत के प्रति हमारी कृतज्ञता हो. उसका दोहन करना है, शोषण नहीं करना.

वर्तमान में पूरी दुनिया भारतीय चिंतन से प्रभावित है. त्याग, तपस्या भारत का चिंतन है, प्रकृति का शोषण नहीं, दोहन है. जीने के लिये खाना, खाने के लिए नहीं जीना. व्यक्ति नहीं, कुटुंब भारतीय चिंतन है. भारतीय चिंतन के अनुरूप जीवन जीना आवश्यक है. समाज जीवन के हर क्षेत्र में स्व- तंत्र होना नितांत आवश्यक है.

उन्होंने कहा कि योग के समान आयुर्वेद को स्वीकार करना एवं मानना चाहिए. पर्यावरण का संरक्षण करना भी हमारी जिम्मेदारी है. जल संरक्षण को लेकर स्वयं से प्रारंभ कर जनांदोलन बनाना चाहिए. वृक्ष का पोषण करना एवं उसकी वृद्धि के लिये प्रयास करना. भूमि सुपोषण के लिये भी प्रयास करना चाहिए.

कुटुंब व्यवस्था में सभी का सम्मान हो, मन्दिर हमारे शक्ति केंद्र, शिक्षा केन्द्र, संस्कार केंद्र, जागृति केंद्र हैं. हम सभी को समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को जानना, समझना और भारतीय चिंतन के अनुसार व्यवहार करने की आवश्यकता है. मातृशक्ति को भी अपने व समाज के प्रति हो रहे षड्यंत्र को समझना और उसके निदान के लिए प्रयास करना चाहिए.

भागय्या जी ने कहा कि कुछ लोग भारत में भेद खड़ा करने का कार्य षड्यंत्रकारी कर रहे हैं. संस्कृति-परंपरा-गौरव के प्रति अश्रद्धा पैदा करने का कार्य का कार्य कर रहे हैं. अंग्रेजों के भारत में आने से पहले भारत के सभी ग्राम सम्पन्न व समृद्ध थे. हमारा दुनिया के विकास में 23% हिस्सा था. भारत पूरी दुनिया में बहुतायत सामग्री को निर्यात करता था.

उन्होंने कहा कि दुर्बलों की बात कोई नहीं सुनता. हमें स्वयं को सबल बनकर समाज को सबल बनाने हेतु प्रयास करना है.

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