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पत्रकारों व कार्यकर्ताओं के लिए मामाजी का समर्पित जीवन प्रेरणापुंज है

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ज्योति जला निज प्राण की – 7000 साक्षात्कार लेकर तैयार की गई पुस्तक

भोपाल (विसंकें). मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान ने कहा कि प्रख्यात पत्रकार मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी एक कर्मयोगी, राष्ट्रभक्त, अहंकार शून्य, सागर-सी गहराई और आकाश-सी ऊँचाई रखने वाले व्यक्तित्व थे. मामाजी का जीवन राग-द्वेष से सर्वथा मुक्त था, वह सभी को समान भाव से देखते थे. इसलिए आज भी लाखों कार्यकर्ताओं और सैकड़ों पत्रकारों के लिए मामाजी का समर्पित जीवन प्रेरणापुंज है.

मिंटो हॉल में आयोजित मामाजी पर डाक टिकट के विमोचन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह मुख्य अतिथि थे. गीता से आदर्श मनुष्य के गुणों को उद्धृत करते हुए कहा कि आपातकाल की संघर्ष-गाथा और अन्य ग्रंथों के माध्यम से मामाजी ने अलग पहचान बनाई. उन्होंने अनेक प्रतिभाओं को निखारा. वे सहज, सरल, समर्पित और स्वाभिमानी थे. पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न स्व. अटल जी भी मामाजी का बेहद सम्मान करते थे. मामाजी के स्वर्गवास के समय अटल जी बहुत द्रवित हुए थे. मुझे याद है मैं उस समय मुंबई में अटलजी के साथ था और मुख्यमंत्री बन गया था, उस समय अटलजी को ग्वालियर लाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई. मैंने रास्ते में अटल जी के झर-झर आंसू बहते हुए देखे. अटलजी को रोते हुए मैंने पहली बार देखा था. इससे भी समझा जा सकता है कि मामाजी के प्रति लोगों के मन में कितनी श्रद्धा है. मामाजी के नाम से मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के लिए स्थापित राष्ट्रीय पुरस्कार पुन: प्रारंभ किया जाएगा. पूर्व सरकार द्वारा यह पुरस्कार बंद कर दिया गया था.

कार्यक्रम के अध्यक्ष हरियाणा, त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि मामाजी ने पूरा जीवन समाज के लिए जिया. वे प्रेरणा के केन्द्र थे. उन्होंने संगठन को महत्वपूर्ण सेवाएं दीं. आपातकाल में कारावास गए. उनके जीवन की दिशा तय करने में भी मामाजी का योगदान था. वे मामाजी ही थे, जिन्‍होंने ग्वालियर संघ कार्यालय में उनके लिए रहने की व्यवस्था की. जिसके कारण वे आगे बढ़ सके. उन्‍होंने कहा कि वास्तव में जैसा मैं सोचता हूं, वैसा कई कार्यकर्ता सोचते होंगे. मुझे आज बहुत प्रसन्नता है कि भारत सरकार ने मामाजी के जीवन को याद किया और उन पर डाक टिकट जारी कर उनके विचारों को मान्यता प्रदान की है.

उन्होंने कहा कि समाज जीवन में सामान्यतः तीन प्रकार के व्यक्ति देखने को मिलते हैं. एक वह जो स्वयं के लिए जीते हैं, दूसरे प्रकार के अपने व परिवार के लिए जीने वाले होते हैं और तीसरे में ऐसे लोग आते हैं जो अपने को समाज का माध्यम बना कर समाज जीवन के लिए अपना जीवन जीते हैं. वास्तव में मामाजी उन व्यक्तियों में से थे जो हम सब के लिए, समाज के लिए जीकर प्रेरणा के स्रोत बने हैं.

उन्‍होंने कहा कि संघ एक ऐसा संगठन है, जिसमें वृहद कार्यकर्ता खासकर प्रचारक पूरी तरह समाज के लिए जीते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ऐसी व्यवस्था है कि ना घर परिवार, ना खाता ना बही. जिसका ऐसा जीवन है वह संघ का प्रचारक है. मामाजी भी ऐसे ही एक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने राष्ट्र जीवन के लिए अपना संपूर्ण जीवन दिया और मुझ जैसे न जाने कितने लोगों का निर्माण किया है.

मुख्य वक्ता भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्रीधर पराड़कर ने कहा कि मामाजी के जीवन में अनेक पहलू देखने को मिलते हैं. एकदम साधारण, वैचारिक दृष्टि से पूर्ण, व्यवहार में सहज रूप रूप दिखाई देता है. जो हम कहानियों में पढ़ते हैं, गणेश शंकर विद्यार्थी, लोकमान्य तिलक के बारे में कि वे कैसे श्रेष्ठ पत्रकार और संपादक रहे, वास्तव में वैसे ही हमारी आंखों के सामने व्यक्ति हुए हैं, जिन्हें देखकर कहा जाए कि पत्रकार को कैसा होना चाहिए तो आचरण के स्तर पर भी मामाजी के रूप में हमें वे प्रत्‍यक्ष दिखाई देते हैं. उनके सान्निध्य का ही पराक्रम है कि आज मुझे राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित करने के साथ ही यहां इस मंच से बोलने का अवसर मिला है.

उन्‍होंने कहा कि मामाजी ने विशिष्ट कृतियों से अपने असाधारण कर्तृत्व का परिचय दिया. वर्ष 1937 में मध्यभारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू हुआ. उसके 65 वर्ष बाद विचार किया गया कि यहां संघ कार्य कैसे शुरू हुआ, इस पर लिखा जाए. लेकिन जब 2003 में उसके ऊपर लिखना था तो डगर आसान नहीं थी. बहुत से लोग बुजुर्ग हो चुके थे, स्‍मृति लोप के बीच तथ्‍यों को सही ढंग से प्रस्‍तुत करना भी एक बड़ी चुनौती थी. तब जिस प्रकार से उनका मार्गदर्शन मिला वह अनुभव अद्भुत है. संसार की कोई किताब नहीं होगी, जिसमें 7000 लोगों के साक्षात्कार लेकर उसे तैयार किया गया हो.

इसी प्रकार से मध्यभारत की संगठन गाथा पर लिखी गई स्वतंत्रता और देश-विभाजन से विस्थापित हुए समुदायों व स्‍वयंसेवकों के सेवा कार्य पर लिखी गई पुस्‍तक हैं. यह पुस्‍तक पूर्ण करने का कार्य इसलिए ही संभव हो सका क्योंकि मामाजी उसका संपादन का कार्य देख रहे थे. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जैसे 1857 के बारे में स्वातंत्र्यवीर सावरकर नहीं लिख जाते तो आज हमारे पास अनेक महत्‍वपूर्ण तथ्‍य नहीं होते. इसी प्रकार से यदि मामाजी ने प्रयास नहीं किया होता तो हमारे सामने यह ”ज्योति जला निजप्राण की” जैसी अद्वितीय पुस्तक आज नहीं होती.

उन्‍होंने कहा कि मामा जी के व्यक्तित्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मामाजी का सम्मान करते हुए भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को अपने संबोधन में यह कहना पड़ा था कि मैं मामाजी के चरण स्पर्श करना चाहता हूं. वास्‍तव में मामाजी असाधारण व्‍यक्‍तित्‍व थे.

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