वामपंथी के बाहरी आवरण से पर्दा हट रहा है. अदृश्य आवरण के पीछे छिपी गंदगी दिखने लगी है. उनका चेहरा बेनकाब होता जा रहा है. किसानों, मजदूरों, वनवासियों, जनजातियों और शोषित वर्गों की लड़ाई का दावा कर देश में चीन से आयातित माओवाद की विचारधारा का गढ़ बनाए बैठे वामपंथ के आतंकी प्रतिनिधि असली रूप दिखा रहे हैं.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में गढ़ बनाए बैठे वामपंथी आतंकी हिंसा पर उतारू हैं. सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही माओवादियों ने बीते 3 वर्षों में 116 निर्दोष ग्रामीणों को मारा है. मरने वाले अधिकांश ग्रामीण वनवासी-जनजाति समाज से हैं. बस्तर के जनजाति ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रियता दिखाने के साथ-साथ आम जनमानस में भय का माहौल बरकरार रखने के लिए माओवादियों ने हत्याओं को अंजाम दिया है.
एक जानकारी के अनुसार इस वर्ष जनवरी से लेकर जून के मध्य ही छत्तीसगढ़ में माओवादियों ने 16 बेगुनाहों की हत्या की है. इन हत्याओं को अधिकतर तथाकथित फर्जी जनअदालत लगाकर अंजाम दिया गया.
झारखंड में भी माओवादियों ने स्थानीय जनजाति-वनवासी समाज के ग्रामीणों की हत्या की है. 04 जुलाई को ही माओवादियों में तीन जनजाति युवकों की पिटाई की थी. इससे पहले 29 जून को रांची में दिन दहाड़े देवानंद सिंह मुंडा नामक व्यक्ति को मार डाला. 24 मई को सरायकेला में माओवादियों ने जनजाति दंपति की हत्या कर दी थी. छत्तीसगढ़, झारखण्ड के अलावा माओवादियों ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए ग्रामीणों और वनवासियों की हत्याएं की हैं.
सिर्फ इतना ही नहीं, माओवादी ना सिर्फ जनजाति समाज का शोषण कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं, बल्कि सरकार द्वारा दी जा रही आधारभूत सुविधाओं को भी नष्ट करने के प्रयास में लगे हैं. छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में अरनपुर-पोटाली मार्ग पर बनी सड़क को सुरक्षा बलों की निगरानी के बाद बनाकर शुरू किया गया था. इस मार्ग पर सड़क निर्माण कर आवाजाही लगभग 13 वर्षों के बाद शुरू हुई थी.
पूरा क्षेत्र जनजाति समाज के लोगों का है. स्थानीय जनजाति ग्रामीण सड़क का इस्तेमाल करते थे. लेकिन माओवादियों ने इस सड़क को भी 4 जगहों से काट दिया. इससे पहले भी माओवादी इसी सड़क को 10 जगहों से काट चुके हैं.
जनजातियों की हत्या करने और उनकी सुविधा के लिए बनी सड़कों को काटने के अलावा माओवादी ग्रामीणों की सुविधाओं के लिए बन रहे इंफ्रास्ट्रक्चर में लगी मशीनों को भी आग लगा रहे हैं.
इससे एक बात स्पष्ट है कि जिन वनवासियों-जनजातियों, शोषितों की तथाकथित लड़ाई लड़ने का ये वामपंथी माओवादी-नक्सली दावा करते हैं, उन्हीं जनजातियों को इन लोगों ने निशाना बनाया है.
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीणों के लिए बन रहे घरों को रोकना हो या बच्चों के लिए बन रहे स्कूलों में लगी गाड़ियों को आग लगाना, माओवादी जनजाति समाज के उत्थान में हर कदम पर बाधा बन रहे हैं. बंदूक के आतंक के दम पर भारतीय लोकतंत्र को खारिज करने के उद्देश्य से माओवादियों ने जो योजना बनाई थी वो बुरी तरह विफल साबित हुई, जिसके बाद माओवादी ये नपुंसकता भरी हरकतें कर रहे हैं.