करंट टॉपिक्स

लखनऊ की यादें – जिन्होंने राममन्दिर आन्दोलन में तन मन समर्पित किया

Spread the love

अवध. हजरतगंज चौराहे पर कारसेवकों की भीड़ और पुलिस की घेराबन्दी. श्रीराम मन्दिर आन्दोलन का केन्द्र अयोध्या थी, लेकिन इस आन्दोलन का एक रास्ता लखनऊ से भी होकर जाता था. बाहर से आ रहे कारसेवकों की सेवा लखनऊ के ही निवासी करते थे. अयोध्या कूच के ऐलान के साथ ही दिसम्बर 1992 से पहले लखनऊ में रामभक्तों का कारवां दिखाई देता था, जो अयोध्या की ओर बढ़ता जा रहा था. लखनऊ में संघ का हर स्वयंसेवक अयोध्या पहुंचना चाहता था. जो न जा सके, उन्होंने आस-पास के अपने गांव में कारसेवकों को चोरी से ठहराने की व्यवस्था की. प्रियदर्शनी कालोनी के तारकेश्वर ने बताया कि अयोध्या स्थित उनके गांव में माता जी ने कई टीन वनस्पति घी, नमक और आटा मंगवाकर रख लिया था. पूरे दिन और रात 11 बजे तक पूरियां छनती रहती थी. आलू कुम्हड़े की सब्जी और अचार के साथ कारसेवकों को भोजन कराया जा रहा था. गरम पानी से भरी बाल्टी में नमक मिलाकर कारसेवकों के पैर की सिंकाईं की जाती थी. खाना खिलाकर 3-4 गांव आगे तक साइकिल से छोड़ा जाता था, आगे की व्यवस्था आगे के गांव वाले करते थे.

सब कुछ भूल, एक ही था जुनून, मन्दिर वहीं बनाएंगे

उम्र 24 वर्ष और जुनून सिर्फ श्रीराम मन्दिर निर्माण का. गुस्सा उन पर जो मन्दिर निर्माण में बाधा थे. रामलला हम आएंगे, मन्दिर वहीं बनाएंगे. ’बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का.’ यह नारे हर समय जोश भरने का काम करते थे.

चारबाग के होटल व्यापारी सुरेन्द्र शर्मा 55 वर्ष के होने वाले हैं, लेकिन मन्दिर आन्दोलन की यादें आज भी उनके मन में ताजा हैं. श्रीराम मन्दिर निर्माण के शिलान्यास को वह नया युग मानते हैं. कहते हैं कि चारबाग में रहता था तो बाहर से आने वाले कारसेवकों को अयोध्या का रास्ता दिखाना, भोजन कराना और ठहराने का भी जिम्मा था. पुलिस की निगाह उन पर ऐसी रहती थी जैसे कि कोई अपराधी हों. अयोध्या भी गया तो जेल में समय काटा, लेकिन श्रीराम मन्दिर निर्माण के जुनून में कोई कमी नही आई.

70 वर्षीय राजा बाजार निवासी हरिजीवन रस्तोगी कहतें है कि जुनून इस कदर था कि पुलिस की नाकाबन्दी भेदकर अयोध्या पहुंच गया था. 06 दिसम्बर को उस समय भी अयोध्या में ही था, जिस समय ढांचा गिराया गया था. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था. वह दिन वहीं गुजारा और लखनऊ पहुंचा तो यहां भी विपरीत माहौल था, लेकिन विहिप से जुड़े होने के कारण मन में कोई डर नहीं था. एक ही नारा था, रामलला हम आएंगे, मन्दिर वहीं बनाएंगे. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब बुधवार को सच्ची जीत हुई है, जब श्रीराम मन्दिर के निर्माण की नींव रखी गयी है.

74 वर्षीय यहियागंज निवासी हरीश अग्रवाल भी उन कारसेवकों में शामिल थे, जो उफान पर चल रहे श्रीराम मन्दिर आन्दोलन में डट कर खड़े थे. वह कहते हैं कि नारा था कि जन्मभूमि का ताला खोलो, नहीं तोड़ो. पुलिस से बचकर वह अपनी टीम के साथ अयोध्या पहुंच गए थे और जन्मभूमि का ताला खोलो, नहीं तोड़ो का नारा अयोध्या में देकर आए थे. वह कहते है कि राम मन्दिर के निर्माण का एक जुनून था. व्यवसाय और परिवार से दूरी बनाकर वह आन्दोलन में कूद गए थे. आन्दोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन छूटने के बाद भी जोश में कोई कमी नहीं दिखी.

लखनऊ में राममन्दिर आन्दोलन को हवा देने में बजरंग दल के संयोजक रहे अनूप अवस्थी भी शामिल थे. दुकान में ताला लटकाकर आन्दोलन में लग जाते थे. वह कहते हैं कि राममन्दिर आन्दोलन नहीं एक आग थी. सरकार के तानाशाह रवैये के बाद भी रामभक्तों के कदम पीछे नहीं हट रहे थे. उन्हें भी फतेहगढ़ जेल भेजा गया और जब छूटकर आया तो फिर अयोध्या की तरफ कूच करने पर पकड़ा गया. कारसेवक सुरेन्द्र शर्मा को भी संघर्षो के वो दिन आज भी याद हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *