नई दिल्ली. कहना न होगा कि कोई भी सभ्यता अपने शिक्षकों के कंधे पर खड़ी हो कर ही आसमान छूती है. शिक्षक यदि अपने कर्तव्य पथ पर देश, काल को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़े तो वह कुछ भी कर सकता है. चाणक्य ने यूं ही नहीं कहा था कि सृजन और विनाश दोनों उसकी गोद में पलते हैं.
उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के मंझरिया गांव में प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका हैं अनीता जय सिंह. विद्यालय गांव के थोड़ा सा बाहर है, सो बच्चों की उपस्थिति अत्यल्प रहती थी. गांव में अधिकांश तथाकथित पिछड़ी जातियों के लोग रहते हैं, सो शिक्षा के प्रति उदासीनता भी थी.
वर्ष 2014 में अनीता की जब नियुक्ति हुई तो विद्यालय की दशा देख कर उन्हें बहुत बुरा लगा. फिर कुछ समय बाद उन्होंने स्वयं दशा बदलने की ठानी. थोड़ा सा परिवार से सहयोग लिया और अपने पास से 55 हजार रुपये खर्च करके “इनोवेटिव सोच” द्वारा विद्यालय का स्वरूप रेलबे डिब्बे जैसा कर दिया. बच्चों की उत्सुकता बढ़ी, तो थोड़ी संख्या बढ़ी. संख्या बढ़ी तो शिक्षकों ने परिश्रम किया और उनको इतना प्रेरित किया कि वे रोज विद्यालय आने लगे. स्कूल चल निकला! दस-पंद्रह बच्चों वाले स्कूल में सवा सौ बच्चे हो गए. इतना ही नहीं, अब हर साल नवोदय के लिए भी एक दो बच्चे निकल रहे हैं. यह बदलाव है……
वे इतने पर ही नहीं रुकीं. समाज में प्रवेश किया और घरेलू हिंसा मुक्ति, नशा मुक्ति, सामाजिक सशक्तीकरण आदि के लिए भी प्रयास किया. विद्यालय के बाद रोज घण्टे दो घण्टे पोषक क्षेत्र में रह कर समाज को दिशा देती हैं. यह एक आम शिक्षक का सामान्य सा प्रयास भर है. सब करें तो देश बदल जाएगा.
परिस्थितयां विपरीत हो सकती हैं, संसाधन कम हो सकते हैं, पर यदि मनुष्य प्रयास करे तो विपरीत परिस्थितियों में कम संसाधनों के साथ काम करके भी समाज को दिशा दी जा सकती है. और यह कार्य सबसे बेहतर शिक्षक ही कर सकते हैं.
अनीता सिंह ने बालिकाओं और महिलाओं के लिए अपने मकान में लाइब्रेरी स्थापित की है. गरीब बालिकाएं धन के अभाव में जरूरी किताबें नहीं खरीद पातीं. इसी वजह से लाइब्रेरी स्थापित करने का सोचा. पहले प्राथमिक स्कूल मंझरिया में ही लाइब्रेरी बनाने का विचार था, लेकिन वहां पढ़ाई बाधित न हो, इसलिए अपने मकान में ही लाइब्रेरी खोली. किताबों के संग्रह पर अभी 50 हजार रुपये खर्च हुए हैं. धार्मिक, साहित्यिक, उपन्यास, नाटक और प्रतियोगी परीक्षा से संबंधित करीब 500 किताबें लाइब्रेरी में हैं. स्कूल से बचे समय में इंटर तक की बालिकाओं को पढ़ाने वाली अनीता घर में अंग्रेजी और गणित की निःशुल्क कक्षाएं चलाती हैं.