चित्रकूट. भारत में समय-समय पर अनेक महापुरूषों ने जन्म लेकर समाज को दिशा देने के साथ ‘जागरूकता‘ का वातावरण निर्मित किया है. एकात्म मानवदर्शन के चिन्तक पं. दीनदयाल उपाध्याय एवं राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख का नाम भी इसी श्रृंखला में आता है. दोनों महापुरुषों के जन्मदिवस पर दीनदयाल शोध संस्थान में 25 सितंबर से 11 अक्तूबर तक “ग्रामोदय पखवाड़ा” का आयोजन किया गया.
दीनदयाल शोध संस्थान के जन शिक्षण संस्थान चित्रकूट ने खादी ग्रामोद्योग आयोग एवं EFFICOR और ग्राम सहयोगी कार्यकर्ताओं के सामूहिक प्रयासों से ग्राम पंचायत किहुनिया, चुरू केशरुआ, सेमरिया, बनाडी, नारायणपुर, केकरामार, हाटा, उमरी और भभई में स्वयं सहायता समूह की बहनों के लिए क्षमता संवर्धन, स्वच्छता, सामूहिक श्रमसाधना, कोरोना वायरस से बचाव और पहचान तथा समूह को स्वावलंबी बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा बैंक के सहयोग पर चर्चा की.
साथ ही तम्बाकू मुक्त समाज तथा कोरोना वायरस से बचाव के लिए सामूहिक शपथ भी ली गई. इफीकोर के अतुल डेनियल ने बहनों को शपथ दिलायी और जन शिक्षण संस्थान के अनिल सिंह ने उमरी में कोरोना वायरस से बचाव और जनजागरण अभियान की शपथ दिलाई. उद्यमिता विद्यापीठ के संयोजक मनोज सैनी ने स्वयं सहायता समूह को स्वावलंबी कैसे बनाएं, बैंक के सहयोग के बारे में जानकारी दी. जिसमें ३५ स्वयं सहायता समूहों की ३८५ बहनों ने भाग लिया.
जन शिक्षण संस्थान के कार्यकारी निदेशक राजेंद्र सिंह ने व्यावसायिक प्रशिक्षण और संस्थान की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी. दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव डॉ. अशोक पाण्डेय ने स्वच्छता और सामूहिक श्रम साधना के महत्त्व के बारे में जानकारी दी. समाजशिल्पी दंपत्ति कार्यकर्ताओं ने सामूहिक प्रयासों से गांव-गांव में पेयजल स्रोत, श्रद्धास्थल और सामुदायिक भवनों को स्वच्छ किया.
स्वावलम्बन केन्द्रों पर आरोग्यधाम के वैद्य राजेन्द्र पटेल ने औषधीय पौधों की उपयोगिता एवं महत्व के बारे में विस्तृत जानकारी दी. दीनदयाल शोध संस्थान के उप महाप्रबंधक डॉ. अनिल जायसवाल ने बताया कि पिछले 17 दिनों से पखवाड़े के अंतर्गत डीआरआई के सभी प्रकल्पों के माध्यम से ग्रामों तक स्वच्छता, नशामुक्ति, जल संरक्षण, पर्यावरण आदि विभिन्न विषयों पर जन जागरुकता के लिए प्रतियोगिताओं सहित स्वास्थ्य गोष्ठियों और कृषक गोष्ठियों का आयोजन किया गया.
“सेवा और समर्पण” की प्रतिमूर्ति राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख
नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले में 11 अक्तूबर, 1916 को हुआ था. ‘मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं‘, इस ध्येय वाक्य पर चलते हुए उन्होंने देश के कई ऐसे गांवों की तस्वीर बदल दी, जो विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर थे. नानाजी ने अपनी कर्मभूमि भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को बनाया. बातचीत में वे अक्सर कहा करते थे कि जब अपने वनगमन के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो हम प्रयास क्यों नहीं करते. इसलिए नानाजी जब पहली बार चित्रकूट आए तो फिर यहीं बस गए. उन्होंने चित्रकूट में सबसे पहले कृषि और शिक्षा के माध्यम से बदलाव की पहल की, ग्रामोदय विश्वविद्यालय उनकी अनुपम कृति में से एक है.
नानाजी ने चित्रकूट के उत्थान में कई कार्य किए. उन्होंने कृषि, शिक्षा, अनुसंधान, रोजगार, स्वास्थ और स्वावलम्बी बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में बहुत बड़ा कार्य किया है. दीनदयाल शोध संस्थान की अवधारणा उनमें से एक है. यह लोगों के समग्र विकास के उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया है ताकि उन्हें आत्मनिर्भर और आश्वस्त किया जा सके, जिससे वे अपने अर्जित कौशल के माध्यम से अपनी आजीविका उत्पन्न कर सकें.
साथ ही नानाजी ने ग्रामोदय के सपने को साकार करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों की स्थापना की. जिससे यहां कृषि के क्षेत्र में किसानों की आजीविका को सुदृढ़ किया जा सके. चित्रकूट में आजीवन स्वास्थ्य संवर्धन प्रकल्प आरोग्यधाम, उद्यमिता विद्यापीठ, गुरुकुल संकुल, गौशाला, रसशाला, जन शिक्षण संस्थान एवं शैक्षणिक प्रकल्प शामिल हैं.