बस्तर में माओवादी बड़े कार्यक्रम करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं दूसरे क्षेत्रों में सुरक्षाबलों द्वारा निरंतर चलाए जा रहे अभियानों एवं दुर्गम क्षेत्रों में प्रशासन की सहायता से युद्ध स्तर पर चलाए जा रहे विकास कार्यों से उनकी जमीन खिसक रही है.
इसी क्रम में उड़ीसा के माओवाद प्रभावित क्षेत्र मलकानगिरी में 300 मिलिशिया सदस्यों सहित माओवादियों के कुल 700 समर्थकों ने कम्युनिस्ट आतंक की राह छोड़ते हुए मुख्यधारा से जुड़ने का निर्णय लिया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, मलकानगिरी जिले के खैरपुट तहसील अंतर्गत खालगुड़ा, बिसाइगुड़ा, पत्रापुट, भाजागुड़ा सहित सिंधीपुट एवं आंध्रप्रदेश के अल्लुरी सीतारामराजू के कुसुमपुट, मतमपुत, जोडीगुमना के क्षेत्रों के मिलिशिया सदस्यों एवं उनके सहयोगियों ने डीआईजी दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र कोरापुट के समक्ष आत्मसमर्पण किया.
इस दौरान ‘माओवाद मुर्दाबाद’ अमा अरकार जिंदाबाद का नारा बुलंद करते हुए बड़ी संख्या में माओवादियों के यूनिफार्म भी जलाए. इस दौरान पुलिस उपमहानिरीक्षक राजेश पंडित के अतिरिक्त, उपमहानिरीक्षक बीएसएफ कोरापुट मदन लाल एवं मलकानगिरी जिले के पुलिस अधीक्षक नितेश वाधवानी भी उपस्थित थे.
कार्यक्रम के दौरान माओवादी विचारधारा को छोड़ने वाले समर्थकों को वरिष्ठ अधिकारियों ने भेंट देकर उनका मुख्यधारा में स्वागत किया. अधिकारियों ने ग्रामीणों की सराहना करते हुए स्थानीय सक्रिय माओवादी कैडर से हिंसा का मार्ग छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की.
यह क्षेत्र कभी माओवादियों का गढ़ माना जाता था. जहां भाकपा माओवादियों की आंध्र-ओडिशा बॉर्डर डिवीज़न सक्रिय मानी जाती थी. हालांकि प्रशासन एवं सुरक्षा बलों के साझा प्रयासों से किए विकास कार्यों ने क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों की सोच परिवर्तित कर दी है. जिसके उपरांत बड़ी संख्या में माओवादी विचारधारा को समर्थन देने वाले हिंसा का मार्ग छोड़कर मुख्यधारा में विश्वास जता रहे हैं.
अभी कुछ महीने पहले माओवादियों के पक्के समर्थक माने जाने वाले 50 सक्रिय कैडर ने भी पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था. इसके अतिरिक्त जून एवं अगस्त के महीनों में ही क्रमशः 350 एवं 550 ने आत्मसमर्पण कर दिया था.
दरअसल, इस पूरे क्षेत्र में प्रशासन एवं सुरक्षा बलों ने साझा पहल करते हुए सड़क, बिजली, पानी के अतिरिक्त शिक्षा एवं संयोजकता को प्राथमिकता देते हुए व्यापक सुधार किए हैं. इसका परिणाम अब जमीनी स्तर पर दिखने भी लगा है.
तेजी से हो रहे परिवर्तन को देखकर तो यही उम्मीद जताई जा रही है कि वह दिन दूर नहीं जब कभी माओवादियों के गढ़ के रूप में जाने जाने वाले इस क्षेत्र को कम्युनिस्ट आतंक की विचारधारा से मुक्त करा लिया जाएगा.