इंदौर (विसंकें). बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है. जिसके होने भर से उस क्षेत्र में तबाही का मंजर हो जाता है. मध्यप्रदेश के “नेमावर” से भगवान आदिदेव सिद्धनाथ की कृपास्थली व पापनाशिनी माँ नर्मदा की निर्मल धारा से प्रवाहित होती है. प्राकृतिक हरियाली की छटा व छोटी पहाड़ियों की सुंदरता से घिरा हुआ यह नगर अनेक देवस्थलियों के आशीष व दिव्यता से परिपूर्ण है. इसके कण-कण में आध्यात्मिकता की सुगंध मौजूद है.
लेकिन, 28 अगस्त की मध्यरात्रि से हमेशा शालीनता व शांत बहता माँ नर्मदा का जल रौद्र रूप धारण कर नगर में प्रवेस कर गया और फिर चारों तरफ तबाही का स्वरूप दिखने लगा. बाढ़ से भारी विनाश के बीच अब तक करीब हजारों लोग बेघर हुए, सैकड़ों पशुओं की मौत हो चुकी है, असंख्य उपयोगी संसाधन प्रभावित हुए. बाढ़ से हुआ विनाश साफ दिखाई दे रहा है. अनेक निचली कॉलोनियों में बाढ़ से भारी नुक़सान हुआ.
क्षेत्र में भारी बारिश व बाढ़ से 30 से 35 गांव अत्यधिक प्रभावित तथा 40 गांव मध्यम रूप से प्रभावित हुए. इन गांवों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने स्थानीय रूप से सेवा कार्य प्रारंभ कर दिए. सर्वप्रथम बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों से ट्रेक्टर-ट्राली के माध्यम से लोगों को सुरक्षित स्थान पर लाया गया. इसके पश्चात सभी के भोजन की व्यवस्था की गई, सुरक्षित स्थानों पर कपड़े आदि वितरित किये गए. प्रभावित क्षेत्रों में सेवा व राहत कार्य के लिये 50 टोलियों के माध्यम से लगभग 500 स्वयंसेवकों जुटे हुए थे. सेवा कार्यों से लगभग 2000 से ज्यादा परिवार लाभान्वित हुए.
जिन लोगों पर ये बाढ़ कहर बन कर गुजरी, उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी……
हम लोग रात में जग रहे थे कि पानी आया, इतना पानी था और इतना तेज़ कि जैसे गोली चल रही हो. मैं गाड़ी को ऊंची तरफ़ लगाने गया. जब वापस आया तो देखा कि घरों में पानी घुस चुका है, लगभग पांच-छह फुट ऊंचा पानी था. परिवार वाले सब मिलकर उसमें से खाने का सामान व आटे की बोरी निकाल रहे थे.
स्थानीय लोगों के सभी घरों का यही हाल था, किसी तरह उनको पानी में से बाहर निकाला कुछ काम का सामान और कपड़े लेकर सभी ऊंचे स्थान पर चढ़ गए. हमारे पास अलग से किसी तरह की कोई मदद नहीं थी. मोहल्ले में किसी के पास कुछ भी नहीं है, लगातार तीन दिनों तक घरों में छह-सात फीट पानी और कचरा भरा पड़ा है.
इस बीच स्थानीय लोगों, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व प्रशासन की अविलम्ब अविरल सहायता से काफी राहत पहुंची. …✍🏻.एक स्थानीय प्रभावित व्यक्ति.
हमारा सब कुछ बर्बाद हो चुका है. टीवी, फ्रिज, कुर्सियां, पलंग. बच्चों के कपड़े भी हमें फैंकने पड़े, वो उपयोगी बिल्कुल भी नहीं रह गए थे.
जब पानी आया, तब अंधेरा था, रात्रि का समय था, पानी इतनी तेज़ी से आया कि हम बच्चों को लेकर ऊपर की जमीन व मंज़िलों की तरफ़ भागे, भवनों के दरवाजे रात में बंद थे, किसी तरह ऊपर चढ़कर भवन की ऊपरी मंजिल पर शरण ली.
उस समय हमारे और बच्चों के पांवों में चप्पलें तक नहीं थीं.