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सांस्कृतिक एकता का भी समागम बना नेत्र कुम्भ

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महाकुम्भ नगर, प्रयागराज। नेत्र कुम्भ देश की सांस्कृतिक एकता का भी समागम बन गया है। देश के विभिन्न राज्यों से विभिन्न आयु वर्ग के लोग नेत्र रोगियों की चिकित्सा सेवा में अपना योगदान देने के लिए आ रहे हैं। कार्य अवधि पूरी होने के बाद अपने घर लौट जाते हैं। फिर नये स्वयंसेवक आ जाते हैं। यह सिलसिला इस माह के प्रथम सप्ताह से ही जारी है, जो नेत्र कुम्भ के समापन तक रहेगा।

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से आये युवक-युवतियों के एक समूह ने मंगलवार को नेत्र कुम्भ से विदा ली। 16 जनवरी को नेत्र कुम्भ में आये थे। ये सभी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं। अपने अनुभवों के बारे में सारंग येवले ने बताया कि उन लोगों ने नेत्र कुम्भ में जो देखा, वह पहले देश में कभी नहीं हुआ था। नेत्र चिकित्सा सेवा का इतना बड़ा आयोजन दुर्लभ है। इस तरह के आयोजन से लोगों के जीवन में नयी रोशनी तो आती ही है, देश के विभिन्न राज्यों से आये लोगों में एकात्म भाव भी मजबूत होता है। आयुष पारिख ने कहा कि नेत्र कुम्भ में भाग लेकर उन्हें जीवन में नया अनुभव हुआ है। वे यहां के आयोजकों के प्रति कृतज्ञ हैं।

विदर्भ क्षेत्र के ही युवक मोहित बरोले ने बताया कि प्रयागराज में नेत्र कुम्भ का आयोजन एक बड़ी घटना है। यहां स्वयंसेवकों को श्रद्धालुओं की चिकित्सा सेवा के साथ ही संगम में स्नान का भी पुण्य मिला। वे नेत्र कुम्भ के अनुभवों को जीवन पर्यंत नहीं भूलेंगे। इस संबंध में आयोजन समिति की मीडिया कोआर्डिनेटर डॉक्टर कीर्तिका अग्रवाल ने बताया कि नेत्र कुम्भ में देश के कोने-कोने से स्वयंसेवक चिकित्सा सेवा के लिए आ रहे हैं। यह देश के लोगों का आध्यात्मिक के साथ ही आत्मीय समागम भी है। महाकुम्भ के अवसर पर इस तरह का विशाल आयोजन सबके लिए प्रेरणादायी है।

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