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बंगाल हिंसा की एनआईए करे जांच, 146 सेवानिवृत्त अधिकारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिख उठाई मांग

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नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल में चुनावों के पश्चात जारी राज्य व्यापी हिंसा पर समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति महोदय को पत्र लिखा है. सेवानिवृत्त न्यायिक, प्रशासनिक, सैन्य, पुलिस, राजनयिक अधिकारियों (कुल 146 – 56 सैन्य, 17 पूर्व न्यायाधीश, 9 पूर्व राजनयिक, के अलावा प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी) ने राष्ट्रपति को पत्र लिख हिंसा की निष्पक्ष जांच और हिंसा में शामिल अराजक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.

राष्ट्रपति को लिखे पत्र में उन्होंने चिंता जताते हुए कहा है कि भारतीय लोकतंत्र महान है और संवैधानिक संस्थान भारत की सर्वोच्चता और अंखडता को अक्षुण्ण बनाने के लिए हमेशा से तत्पर रहे हैं. समाज को बंगाल की हिंसा ने क्षुब्ध किया है. बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुए सुनियोजित हिंसक रक्तपात ने सही सोचने वाले नागरिकों का मानना है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बदला लेना, उग्रता और हमला करने, जैसी घटनाओं को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. पत्र में भारत में चिरकाल से स्थापित शांति और अहिंसा के महत्व का जिक्र किया गया है.

प्रबुद्ध वर्ग का कहना है कि लोकतांत्रिक ढंग से एक या अन्य पार्टी के पक्ष में अपने मताधिकार का उपयोग करने वाले लोगों के खिलाफ जिस प्रकार हिंसा को अंजाम दिया गया, उससे समाज आहत है. मीडिया और प्रत्यक्षदर्शियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार राष्ट्रदोही तत्वों ने राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते कत्ल, बलात्कार, लोगों व संपति पर हमले की घटनाओं को अंजाम दिया, जिस कारण हजारों लोगों को मजबूरन बेघर होना पड़ा.

विस चुनावों के पश्चात हुई हिंसा ने स्थानीय प्रशासन व पुलिस के लचर रवैये को उजागर किया है. इन घटनाओं को अभी रोका नहीं गया तो आने वाले समय में ये भारत में लंबे समय से चली आ रही मजबूत लोकतांत्रिक परंपरा को नुकसान पहुंचाएंगी. राज्य सरकार के साथ ही संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं का संवैधानिक दायित्व बनता है कि वे नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करें.

मीडिया ने बंगाल हिंसा को व्यापकता से रिपोर्ट करते हुए बताया है कि चुनावी बाद की हिंसा में एक दर्जन से अधिक महिला, पुरुष, बच्चों की हत्या हुई है. राज्य में हिंसा की 15 हजार से अधिक घटनाएं हुई हैं. बंगाल के 23 में से 16 जिले चुनाव पश्चात की हिंसा में बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. जिसके परिणाम स्वरूप 4 से 5 हजार लोगों को अपना घर-बार छोड़कर असम, झारखंड, उड़ीसा में शरण लेनी पड़ी है.

पूर्व राजनयिक भास्वति मुखर्जी और महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रवीण दीक्षित सहित अन्य ने पत्र में कहा कि हिंसा पीड़ितों के लिए विशेष राहत पैकेज की आवश्यकता है, इसके साथ ही उनके पुनर्वास और सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए.

चुनावी पश्चात हिंसा में बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, महिलाओं से छेड़छाड़, अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ हिंसा की घटनाएं इसका दुखद पहलू है.

प्रबुद्ध वर्ग ने पश्चिम बंगाल में चुनाव पश्चात जारी हिंसा को रोकने के लिए राष्ट्रपति महोदय से हस्तक्षेप की मांग की, जिससे भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान से बचाया जा सके. साथ ही हिंसा के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की. सबसे पहले उन लोकसेवकों को चिन्हित किया जाए, जो हिंसा के दौर में आवश्यक कदम उठाए और अपने कर्तव्य की पूर्ति में विफल रहे. हिंसा के लिए उकसाने वाले नेताओं की पहचान होनी चाहिए, हिंसा की समस्त घटनाओं में एफआईआर दर्ज की जाए तथा हिंसा में शामिल सभी आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो.

बंगाल हिंसा के मामले में निष्पक्ष जांच व शीघ्र न्याया के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया जाए. साथ ही पश्चिम बंगाल सीमावर्ती राज्य होने के कारण संवेदनशील है. इसलिए इन मामलों की जांच के लिए एनआईए को सौंपा जाना चाहिए, जिससे राष्ट्र विरोधी तत्वों से निपटा जा सके.

 

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