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पाकिस्तान में कैसे-कैसे अत्याचार हुए, कोई सोच भी नहीं सकता

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नई दिल्ली. देश की राजधानी में प्रमुख रूप से दो स्थानों आदर्श नगर और मजनू का टीला, में पड़ोसी देश पाकिस्तान से आए शरणार्थी रहते हैं. शरणार्थी शिविरों में अब तक ये लोग (हिन्दू) एक तरह से बेवतन की तरह रह रहे थे, लेकिन अब उन्हें स्थायी घर मिल जाएगा.

नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत 14 लोगों – 9 आदर्श नगर शिविर से और 5 मजनू का टीला को भारतीय नागरिकता मिल गई. पाकिस्तान में उनके साथ कैसे-कैसे अत्याचार हुए, कोई सोच भी नहीं सकता. अब जब उन्हें भारत की नागरिकता मिली तो उनके चेहरे पर एक अलग ही खुशी है. प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने वाले प्रमाण पत्रों का पहला सेट बांटा गया तो माधव, चंद्रकला, बवाना और लक्ष्मी उन लोगों में शामिल थे, जिन्हें प्रमाण पत्र मिले.

अब बेटी स्कूल जाकर पढ़ सकेगी

लक्ष्मी के पिता को अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता थी और उन्हें अपनी दो बेटियों के जबरन धर्म परिवर्तन का डर था. इसी वजह से 2013 में पाकिस्तान के मीरपुर खास से भाग निकले. उनका परिवार भारत तीर्थ यात्रा पर आया था और गुजरात में कुछ रिश्तेदारों ने उन्हें थोड़े समय के लिए शरण दी. बाद में पता चला कि दिल्ली में भी पाकिस्तानी हिन्दू परिवार रहते हैं, तो गुजरात छोड़कर आदर्श नगर शिविर में रहने लगे. यहीं पर लक्ष्मी की शादी पाकिस्तान से आए एक अन्य व्यक्ति से हुई. अब उनकी एक साल की बेटी भी है. लक्ष्मी ने अपना नागरिकता प्रमाण पत्र दिखाते हुए कहा कि जब मैं भारत आई थी तो मेरी उम्र 12 या 13 साल थी और मैं कभी स्कूल नहीं गई थी. मुझे खुशी है कि मेरी बेटी का भविष्य बेहतर होगा. वो बिना किसी डर के स्कूल जा सकेगी और सरकारी योजनाओं का फायदा भी उठा सकेगी.

भारतीय बनना मानो नए पंख मिल गए

झूले राम को याद है कि 2009-10 में उनके क्षेत्र में धार्मिक तनाव के चलते वो सिंध के हैदराबाद से एक छोटे से गांव में चले गए थे. लेकिन गांव में भी उन्हें राहत नहीं मिली. यही वह समय था, जब उनके परिवार ने पाकिस्तान छोड़ने का निर्णय किया. 2013 में 17 साल की उम्र में सीमा पार करने के बाद, राम ने जल्दी ही दुनियादारी सीख ली और आज मजनू का टीला के पास मोबाइल फोन की एसेसरीज़ और कोल्ड ड्रिंक्स बेचते हैं. अपने भाई हर्ष कुमार और चाचा शीतल दास के साथ नागरिकता मिलने के बाद, उन्होंने खुशी से कहा कि भारतीय बनना मानो नए पंख मिलने जैसा है. उनके परिवार के कुछ सदस्य भी ऐसे ही बदलाव का इंतजार कर रहे हैं. नागरिकता मिलने का सबसे अच्छा फायदा ये है कि अब हमारे लिए नए रास्ते खुल गए हैं. हम अब शिविर से निकलकर शहर में बस सकते हैं, जहां शिक्षा और व्यापार के बेहतर अवसर हैं.

बेटे का नाम रखा भारत

दयाल दास ने 23 साल पहले पैदा हुए अपने बेटे का नाम भारत रखा था. आज, ये बटाईदार किसान, उनकी पत्नी और उनके बच्चे यशोदा (25) और भारत सभी भारतीय नागरिक हैं. वो 23 साल पहले सिंध के हैदराबाद से वीज़ा की मदद से तीर्थ यात्रा पर भारत आए थे और बाद में वीज़ा बढ़वाते हुए यहीं रुक गए. दयाल ने हंसते हुए कहा कि हम पाकिस्तान क्यों छोड़कर आए, ये तो सब जानते हैं. वहां हमारा जीवन अनिश्चितता से भरा था. मुश्किलों की वजह से मेरे बच्चे पढ़ नहीं सके, लेकिन मुझे उम्मीद है कि मेरे नाती-पोते सम्मान के साथ जिंदगी जिएंगे. दयाल दास पाकिस्तानी हिन्दू लोगों की मदद के लिए भी तैयार हैं, ताकि वे भारतीय नागरिकता पाने के लिए आवश्यक कागजी कार्रवाई कर सकें.

बुर्का पहनकर जाना पड़ता था स्कूल

भावना, 22 मार्च 2014 को वाघा बॉर्डर से भारत आई थी, उस वक्त उसकी उम्र आठ साल थी. पाकिस्तान के टंडो अल्लाह यार गांव, जहां वो पैदा हुई थी, के बारे में अब धुंधली सी यादें रह गई हैं, लेकिन वह ये जरूर याद करती है कि कैसे उसे स्कूल में बड़ी बहन के साथ बुर्का पहनकर जाना पड़ता था और हिन्दू होने की वजह से स्कूल के हैंडपंप से पानी पीने से भी मना कर दिया जाता था. नागरिकता पाने वालों में सबसे कम उम्र की लोगों में से एक भावना ने अभी हाल ही में सरकारी कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मजलिस पार्क से सीबीएसई बोर्ड की 10वीं कक्षा की परीक्षा 70% अंकों से उत्तीर्ण की है. वह बताती हैं कि पाकिस्तान के विपरीत, दिल्ली के अपने स्कूल में उनके साथ कभी भेदभाव नहीं हुआ. काश, पाकिस्तान में रह गए मेरे रिश्तेदारों को भी शिक्षा मिल पाती जो मुझे मिली. भारत आने का निर्णय हमारे माता-पिता ने बिल्कुल सही लिया था.

दूसरों की खुशी में खुश

ब्रह्म दास को अभी तक भारतीय नागरिकता नहीं मिली है, लेकिन शिविर में उनके पड़ोसियों को नागरिकता का प्रमाण पत्र मिलने पर उन्होंने भी खुशी मनाई. ब्रह्म का परिवार 2013 में सिंध के मटियारी जिले से 60 अन्य प्रवासियों के साथ मजनू का टीला शिविर में आया था. उन्होंने कहा कि मैंने सारे जरूरी कागजी कार्रवाई कर ली है और मुझे उम्मीद है कि जल्द ही मेरी नागरिकता का लेटर आ जाएगा. जिन लोगों को भारतीय नागरिकता मिल गई है, वे बहुत भाग्यशाली हैं. उनकी आने वाली पीढ़ियां ऐसे देश में रहेंगी, जो उन्हें सम्मान और अवसर देता है. जो लोग वहां (पाकिस्तान) रह गए हैं, उनसे पूछिए कि आर्थिक और सामाजिक अधिकारों से वंचित रहना कैसा लगता है. उन्हें सिंध के मटियारी और अन्य जगहों पर रह रहे अपने रिश्तेदारों की फिक्र सताती रहती है. वहां अत्याचार की खौफनाक खबरें हमें लगातार मिलती रहती हैं.

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