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अब सीधे मासंपेशियों में पहुंचाई जा सकेगी दवा, डिवाइस को 20 साल के लिए पेटेंट मिला

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प्रयागराज. इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय ने थ्री-डीके प्रिंटेड मास्क का डिजाइन तैयार किया था, जिसकी काफी चर्चा हुई थी. अब केंद्रीय विवि के बायोकेमिस्ट्री विभाग का नया शोध ख्याति प्राप्त कर रहा है. विभाग ने एक ऐसे डिवाइस का डिजाइन तैयार किया है, जिससे सीधे मांसपेशियों में दवा पहुंचाई जा सकेगी. बायोकेमेस्ट्री विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मुनीश पांडेय के निर्देशन में यह नया शोध हुआ है. डिवाइस की डिजाइन को लेकर चिकित्सक भी उत्साहित हैं. भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के कोलकाता स्थित कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स डिजाइन एंड ट्रेडमार्क ने 20 साल के लिए इस डिजाइन के पेटेंट को मान्यता भी दे दी है.

कहते हैं ना आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है. आपदा काल में अक्सर ऐसा होता है. डॉ. मुनीश के मन में भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में यह विचार जन्मा. दिसंबर में उनकी पत्नी वंदना पांडेय के पैर की हड्डी टूट गई. दिसंबर से अप्रैल तक उन्हें बीच-बीच में हर 15 दिन में अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. डॉ. ड्रिप के जरिए शरीर में दवा पहुंचाते थे. कई बार ड्रिप खुद झटके से निकल जाती थी, तब शरीर के दूसरे हिस्सों में ड्रिप लगाई जाती. इससे सूजन के साथ रक्तस्राव होता और पीला द्रव्य शरीर से निकलने लगता.

रिपोर्ट्स के अनुसार, मुनीश ने बताया कि पत्नी की तकलीफ देख उन्होंने ऐसा डिवाइस बनाने के बारे में सोचा जिससे दवा मांसपेशियों में आसानी से पहुंचाई जा सके. अलग-अलग क्षेत्र के दिग्गजों की टीम बनी और उनके परामर्श से डिवाइस की डिजाइन तैयार की गई. पेटेंट के लिए आवेदन किया, जिसे मंजूरी भी मिल गई. वैसे, फिलहाल इस डिजाइन के अनुरूप डिवाइस बनाने की दिशा में किसी कंपनी ने पहल नहीं की है. दरअसल, पहले यह पेटेंट गजट में प्रकाशित होगा. इसके बाद यदि कोई कंपनी संपर्क करती है तो उसे डिजाइन सौंपा जाएगा.

डिवाइस की विशेषता

इस डिवाइस को हाथों में चिपकाया जा सकेगा. इसमें सीरिंज भी लगी होगी. साथ ही, एक बटन होगा. इस बटन को दबाकर आवश्यकतानुसार आइवी फ्लूड, रक्त अथवा अन्य दवाएं मरीज के शरीर में पहुंचाई जा सकेंगी.

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के सर्जन डॉ. संतोष सिंह कहते हैं कि कई बार ड्रिप लगाने के बाद वह खुद बंद हो जाती है. ऐसा भी होता है कि यदि मरीज के शरीर में खून चढ़ाया जाता है तो खत्म होने पर शरीर से खून पैकेट में वापस जाने लगता है. डिवाइस में ऐसी व्यवस्था भी है कि वह अपने आप लॉक हो जाती है. इस लिहाज से चिकित्सा जगत के लिए यह खोज काफी फायदेमंद साबित होगी.

डॉ. मुनीश के अलावा नारायण ट्रांसलेशन रिसर्च सेंटर और नारायण मेडिकल कॉलेज नेल्लोर के डॉ. सिवाकुमार विजयाराघवलु, रामया यूनिवर्सिटी बेंगलुरू में एप्लाइड साइंस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सेलवम अर्जुनन, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एस विजयानंद और डॉ. चल्लाराज इमैनुअल, इंडियन एकेडमिक डिग्री कॉलेज बेंगलुरू में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. पी. राजाराजन, आशुतोष हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर के निदेशक व प्रयागराज के वरिष्ठ सर्जन डॉ. यूबी यादव, पुडुचेरी के डॉ. पी कार्थिगेयन और शोध छात्र डिवाइस बनाने वाली टीम में शामिल हैं.

इन मरीजों को मिलेगी राहत

डॉ. मुनीश के अनुसार लंबी बीमारी से जूझ रहे मरीजों की मांसपेशियों में सीधे दवाएं पहुंचाई जा सकती हैं. यह दवाएं सीधे प्रभावित जगह पर आर्गन तक पहुंचाई जा सकती हैं. ऐसे मरीजों की संख्या आम मरीजों की अपेक्षा अधिक होती है. भविष्य में इनकी संख्या बढ़ने की भी संभावना है. इस डिवाइस से नैनो मेडिसिन दवाएं यानि ऐसी दवाएं जो सूक्ष्म मात्रा में होती हैं, उन्हें भी मांसपेशियों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है. इससे साइड इफेक्ट भी कम रहेगा.

‘यह डिवाइस मरीजों के लिए निश्चित तौर पर क्रांतिकारी साबित होगा. विशेषकर बच्चों के लिए फायदेमंद है. दरअसल, कई बार बच्चों में दवाओं की अधिक डोज पहुंच जाती है और यह फेफड़े के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है. इस डिवाइस से चिकित्सकों को भी बार-बार मरीजों के पास नहीं जाना होगा.

डॉ. संतोष सिंह, सर्जन स्वरूपरानी नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज

‘भविष्य में इस डिवाइस से दवा शरीर में आसानी से पहुंचाई जा सकती है. विशेष यह कि बच्चों और बूढ़ों के लिए डिवाइस काफी कारगर साबित होगी. खासतौर से अस्थि रोग पीड़ितों के मामले में यह लाभप्रद होगी. हमें उम्मीद है कि जल्द ही यह बाजार में सुलभ हो जाएगी और हम इसका उपयोग करने लगेंगे.

डॉ. यूबी यादव, निदेशक, आशुतोष हॉस्पिटल एंड ट्रॉमा सेंटर प्रयागराज

 

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