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पादरियों के ‘यौन चंगुल’ में दुनियाभर की नन्स

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ईसाई धर्म स्थल या पूजा घर, जिन्हें चर्च या गिरजाघर कहा जाता है. ईसाई समुदाय में पवित्रतम स्थल माने जाते हैं. लेकिन चर्च की चार दिवारी के भीतर कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जो मुख्यधारा में कभी सामने नहीं आती.

कुछ घटनाओं को चार दिवारी में ही दबा दिया जाता है, और इन घटनाओं का प्रमुख शिकार होती हैं महिलाएं. वो महिलाएं जिन्होंने अपना जीवन ईसाईयत के प्रसार के लिए दे दिया है. ये महिलाएं नन कहलाती हैं, जो आजीवन अविवाहित रहती हैं और धार्मिक परंपरा के तहत उनका विवाह ज़ीज़स से होता है एवं ये अपना जीवन ईसाईयत की सेवा के लिए समर्पित कर देती हैं.

चर्च की चार दीवारों के भीतर की कड़वी सच्चाई यह है कि चर्च के पादरी, बिशप एवं पुरुष इन ननों का यौन शोषण करते हैं. ननों के साथ होने वाला यह शोषण दुनियाभर के लगभग उन सभी देशों में मौजूद है, जहां चर्च प्रभावी स्थिति में है.

दरअसल, चर्च के भीतर ननों के साथ होने वाले यौन शोषण की चर्चा और आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं, लेकिन इस मामले में चर्च की ओर से सबसे बड़ी स्वीकारोक्ति वर्ष 2019 में देखने को मिली थी.

ईसाईयों के धर्म गुरु पोप फ्रांसिस ने वर्ष 2019 में मध्य-पूर्व के अपने ऐतिहासिक दौरे के दौरान पत्रकारों से वार्ता में स्वीकार किया था कि चर्चों के भीतर पादरियों द्वारा ननों का यौन शोषण किया जा रहा है. पोप बेनेडिक्ट ने तो ननों की पूरी एक धर्मसभा को ही भंग कर दिया था, जिनका शोषण पादरियों द्वारा किया जा रहा था.

यह पहला अवसर था, जब किसी पोप ने खुले तौर पर ईसाई पादरियों द्वारा ननों के यौन शोषण को स्वीकार किया था. हालांकि, पोप की स्वीकारोक्ति के बाद वेटिकन में हंगामा मच गया था और वेटिकन ने तत्काल मामले को संभालने के लिए सफाई दी कि पोप ने यह सभी बातें शक्ति के दुरुपयोग के उदाहरण के तौर पर कही थीं.

भारत में भी चर्च की चार दिवारी के भीतर ननों के यौन शोषण की घटनाएं सामने आती रही हैं. अभी हाल ही में नन लूसी कलाप्पुरा ने आमरण अनशन पर जाने का निर्णय लिया था. उन्होंने यह कदम चर्च के भीतर हो रहे भेदभाव एवं ननों के शोषण के विरुद्ध उठाया था.

लूसी कलाप्पुरा, ईसाई बिशप फ्रेंको मुलक्कल के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के मामले में प्रदर्शन में शामिल हुई थीं. लूसी का कहना है कि प्रदर्शनों में शामिल होने एवं चर्च में हो रहे दुर्व्यवहार को उजागर करने के बाद उनके साथ कॉन्वेंट (ननों के रहने का स्थान) में भेदभाव किया जा रहा है.

उनके विरुद्ध भय का माहौल बना दिया गया है, उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया है और तो और बीते 4 वर्षों से कोई उनसे बात भी नहीं करता है, ना ही किसी अन्य नन को उनके साथ भोजन करने की अनुमति है.

वर्ष 1985 से नन के रूप में ईसाई धर्म की सेवा कर रही लूसी ने जब वर्ष 2018 में बिशप फ्रेंको के विरुद्ध ननों के प्रदर्शन का नेतृत्व किया, तभी से चर्च द्वारा उनका आंतरिक बहिष्कार कर दिया गया है.

बिशप फ्रेंको मुलक्कल पर 46 वर्षीय नन के साथ 13 बार दुष्कर्म करने का आरोप लगा था, इसके बाद बिशप को गिरफ्तार किया गया. लेकिन बाद में रिहा कर दिया गया. पीड़िता को आज तक न्याय नहीं मिल पाया है.

रिपोर्ट्स के अनुसार, लूसी ने भारत में ननों की स्थिति पर कहा कि शोषण एवं अत्याचारों से सभी नन मानसिक रूप से इतनी प्रताड़ित महसूस करती हैं कि आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लिया जाता है. सिर्फ केरल में ही पिछले 20 वर्षों में 28 ननों ने आत्महत्या की है.

जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए बताया था कि भारत में लंबे समय से पादरियों द्वारा ननों का यौन शोषण किया जा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार एक भारतीय नन ने बताया था कि एक पादरी ने शराब के नशे में उसके साथ दुष्कर्म किया था.

अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एपी की रिपोर्ट के अनुसार ननों ने विस्तार से बताया था कि ईसाई पादरी यौन संबंधों के लिए उन पर दबाव डालते हैं. रिपोर्ट में जानकारी सामने आई थी कि ननों, पूर्व ननों और पादरियों सहित दो दर्जन से अधिक लोगों ने कहा कि ऐसे मामलों की उन्हें पूरी जानकारी है.

एक तरफ जहां अमेरिका में 60 वर्ष पूर्व तकरीबन दो लाख नन हुआ करती थीं, वहीं अब ननों की संख्या 50 हजार से भी कम है. यही आंकड़ें भारत के भी हैं. केरल, जहां सबसे अधिक ईसाई महिलाएं नन बनती थीं, वहां अब इन आंकड़ों में 25 प्रतिशत तक गिरावट आई है. यही कारण है कि अब चर्च ने ननों के लिए पूर्वोत्तर भारत सहित पंजाब, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड जैसे राज्यों की ओर रुख किया है.

सिस्टर लूसी की ही भांति सीएमसी से निकलकर सिस्टर जैसमे राफेल ने भी चर्च में हो रहे अत्याचारों को उजागर किया था. उनकी पुस्तक ‘आमीन: एक नन की आत्मकथा’ में उन्होंने विस्तार से चर्च के भीतर होने वाले कुकर्मों को बताया है.

उन्होंने अपनी पुस्तक में स्पष्ट कहा है कि जो नन पादरियों को ‘खुश’ रखती है, उन्हें चर्च के भीतर उतनी ही अधिक सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं.

सिस्टर लूसी ने एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया था कि वर्ष 1992 में 30 वर्षीय नन अभया की दर्दनाक हत्या हुई थी, जिसकी जांच सीबीआई ने की और इस मामले में पादरी थॉमस कुट्टुर और नन सैफी दोषी पाए गए थे, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली थी.

हालांकि, बाद में केरल उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी. इस मामले में यह जानकारी सामने आई थी कि मृतका नन ने ईसाई पादरी एवं नन को अवैध संबंध बनाते हुए देख लिया था, जिसके बाद उन दोनों ने उसकी हत्या कर दी थी.

चर्च में ननों के साथ ऐसा भेदभाव है कि ननों के लिए विभिन्न प्रकार की मनाही है. लेकिन पादरी जो चाहे वो कर सकते हैं. किसी की शादी में जाना हो या किसी की मृत्यु में, पादरियों को जाने की अनुमति है, लेकिन ननों को नहीं है. इसके अलावा नन अपनी पसंद के कपड़े भी नहीं पहन सकती हैं.

सच्चाई यही है कि चर्च के भीतर जितना भेदभाव महिला एवं पुरुष के बीच है, उतना किसी अन्य स्थान पर नहीं है.

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