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ओबामा जी भारत के लोकतंत्र पर आपकी चिंता पाखंड से अधिक कुछ नहीं…!!

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बलबीर पुंज

बराक हुसैन ओबामा जी नमस्कार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका दौरे पर आपने एक साक्षात्कार में कहा, ‘हिन्दू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा ध्यान देने योग्य है.… यदि आप (प्रधानमंत्री मोदी) भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं, तो प्रबल आशंका है कि भारत एक मोड़ पर बिखरने लगेगा और हमने देखा है कि इस प्रकार के बड़े आंतरिक संघर्ष होने पर क्या होता है.’

आपका, बिन मांगा उपदेश गले नहीं उतर रहा. इसे लेकर अमेरिका में ही आपको आईना दिखाया जा रहा है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि आपने इस बयान के लिए मोटी रकम ली है. यह भी हो सकता है कि आपको सही जानकारी न हो. या फिर भारत के प्रति आपका मन हीनभावना से भरा है. आपके इस बयान से प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा पर कोई असर नहीं पड़ा. उनका यह दौरा उपलब्धियों से भरा रहा. अलबत्ता आपकी द्वेषपूर्ण, घृणायुक्त और अपरिपक्व बातों से निराशा अवश्य हुई है.

क्या आपको यह ज्ञात है कि जनसांख्यिकीय अनुपात में भारतीय मुसलमान भले ही अल्पसंख्यक हों, लेकिन भारत मुस्लिम आबादी वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है. साक्षात्कार में आपने चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे सरकारी अत्याचारों का उल्लेख किया, परंतु क्या उसकी तुलना भारतीय मुस्लिमों से की जा सकती है? फिर, जब आप चीन में उइगर मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति जता रहे थे, तब आप उसी चीन द्वारा तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं के सांस्कृतिक संहार और दमन पर चुप क्यों रहे?

नि:संदेह, किसी भी देश में मजहबी, नस्लीय और जातिगत उत्पीड़न का संज्ञान लेना और उसके परिमार्जन का प्रयास एक समाज के सभ्य होने का प्रतीक है, परंतु आपका प्रेम केवल मुस्लिम अल्पसंख्यकों तक ही सीमित क्यों है? भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में बहुसंख्यक मुस्लिम समाज की मजहबी प्रताड़ना का शिकार हो रहे हिन्दू-बौद्ध-सिक्ख अल्पसंख्यकों की आपने कभी भी सुध तक नहीं ली. इन देशों में हिन्दुओं-सिक्खों-बौद्धों का इस्लाम के नाम पर मजहबी उत्पीड़न, हत्या और जबरन मतांतरण हो रहा है. वे पलायन को मजबूर हैं. भारत की कश्मीर घाटी भी इस मजहबी त्रासदी से अभिशप्त है. आपने इस विषय पर अपनी जुबान अब तक क्यों नहीं खोली?

यह स्थापित सत्य है कि यदि कुछ समुदायों को किसी क्षेत्र/देश में प्रताड़ित किया जाता है तो कालांतर में उनकी आबादी नगण्य हो जाती है. इस हिसाब से देखें तो विभाजन के समय भारत में तीन करोड़ के आसपास रही मुस्लिम आबादी अब करीब 22 करोड़ हो गई है. यदि भारत में मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जाता तो क्या ऐसा संभव होता. इसी ‘हिन्दू बहुसंख्यक’ भारत में असंख्य मुस्लिम, प्रशासनिक-सामरिक-वैज्ञानिक सेवा देने के साथ-साथ मंत्री पद और देश के शीर्ष पदों-राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री के स्तर तक पहुंच चुके हैं.

ओबामा जी, आपने साक्षात्कार में भारत में दो राष्ट्र ‘हिन्दू इंडिया’ और ‘मुस्लिम इंडिया’ की बात कही. यह विभाजनकारी विचार कोई नया नहीं है. सर सैयद अहमद खां ने भी इसी सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान की नींव रखी थी. समाज को तोड़ने वाली यह विषबेल आज भी भारतीय उपमहाद्वीप में पनप रही है. प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आपने इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और जिस विचारधारा का वह प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे जिम्मेदार ठहरा दिया, जो इस भूखंड के इतिहास और तथ्यों के बिल्कुल विपरीत है.

भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग स्वयं को भारतीय संस्कृति और उसकी भूमि से जोड़कर नहीं देखता. यह अलगाववादी चिंतन इस भूखंड पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के जन्म के बहुत पहले से अस्तित्व में है. आपकी ‘सेक्युलर’ परिभाषा में गांधी जी और पं. नेहरू तो अवश्य आते होंगे, परंतु वे दोनों और अन्य समकालीन नेता भी भारत का रक्तरंजित विभाजन नहीं रोक पाए, क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप के एक वर्ग में अलगाववाद एक कड़वी सच्चाई है. इसके कारण क्या हैं, इस पर ईमानदारी से सोचें.

आपके द्वारा भारतीय लोकतंत्र में ‘कथित चिंताओं’ को ‘कूटनीतिक बातचीत’ में जोड़ने की बात भी न केवल बाह्य हस्तक्षेप को बढ़ावा देने वाली, अपितु यह विचार औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित भी है. याद रहे कि अमेरिका में लोकतांत्रिक जड़ें केवल ढाई सदी पुरानी हैं तो भारत यदि आज भी लोकतांत्रिक, बहुलतावादी और सेक्युलर है तो यह उसकी हजारों वर्ष पुरानी हिन्दू सनातन संस्कृति के मूल्यों का ही परिणाम है. संक्षेप में कहूं, तो भारत में इन मूल्यों की एकमात्र गारंटी, इस देश का हिन्दू चरित्र है.

प्रधानमंत्री मोदी जब से भारत का नेतृत्व कर रहे हैं, तभी से देश का एक विकृत वर्ग निरंतर विषवमन कर रहा है कि ‘भारतीय लोकतंत्र खतरे’ में है. ऐसा कुप्रचार करने वाले विपक्षी दलों के चुनाव हारने पर निर्वाचन प्रक्रिया में ‘धांधली’ का अनर्गल आरोप लगाकर लोकतंत्र को कलंकित करते हैं. ओबामा जी, क्या आप भूल गए कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने विरुद्ध आए जनमत को फर्जी बताया था, जिससे भड़के उनके समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हमला कर दिया था. क्या ऐसे आरोप के बाद मान लिया जाए कि अमेरिका की चुनाव प्रणाली धोखा है? क्या पृष्ठभूमि में आपने भारत की स्थिति को देखा है? देश के कई राज्यों में भाजपा-विरोधी दलों की सरकारें हैं.

ओबामा जी, यदि आपके लिए भारतीय नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से लेकर आपराधिक मामलों में अदालत द्वारा दोषी ठहराना लोकतंत्र को कमजोर करना है, तो आप ट्रंप की गिरफ्तारी, यौन शोषण मामले में दोषी ठहराने और उन पर चल रहे अन्य 30 से अधिक आपराधिक अभियोग के बारे में क्या कहेंगे? यह सर्वविदित है कि अमेरिका का लोकतंत्र केवल उसकी सीमा तक सिमटा है. अपने राष्ट्रहितों के लिए अमेरिका तानाशाह शासकों के साथ भी प्रगाढ़ संबंध रखने के साथ ही उन्हें भरपूर मान-सम्मान भी देता रहा है. इस पृष्ठभूमि में भारत के लोकतंत्र पर आपकी चिंता पाखंड से अधिक कुछ नहीं है….

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