चीन : एक वैश्विक खतरा (तियानमेन चौक नरसंहार से लेकर कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में) विषय पर द नैरेटिव द्वारा आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के पांचवे दिन 8 जून को “चीन द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्र में उसकी नीतियां” विषय पर देश के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं ऑर्गनाइजर सप्ताहिक के संपादक प्रफुल्ल केतकर जी ने विषय रखा.
उन्होंने कहा कि आज हम आधुनिक चीन पर बात करेंगे और आधुनिकता के दौरान चीन की क्या नीति रही है, उसने अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत किन क्षेत्रों में कब्जा किया है, उस पर बात करेंगे और उन क्षेत्रों में अपने सैन्य गतिविधियों को कैसे बढ़ाया है, उस पर चर्चा करेंगे. उन्होंने कहा कि चीन में जो आधुनिकीकरण आया है, उसमें माओ त्से तुंग के विचार का बहुत बड़े स्तर पर निष्पादन हुआ है. चीन की “एक चीन नीति” है, यह वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा धोखा है.
उन्होंने बताया कि चीन की वामपंथी सरकार का गठन 1921 में हुआ था और इस वर्ष क्रूर तानाशाह वामपंथी सरकार को 100 वर्ष हो जाएंगे, जिसकी तैयारी वह जोरो-शोरों से कर रहे हैं. मगर चीन के कब्जा किया हुए क्षेत्रों के लोग खुद को चीनी नहीं मानते हैं. बीजिंग की सत्ता ने वहां की जनसंख्या में बदलाव कर अपना कब्जा किया है. सबसे महत्वपूर्ण है तिब्बत, शिनजियांग, इनर मंगोलिया, मंचूरिया, हांगकांग. इन सारे कब्जा वाले क्षेत्रों द्वारा यह कहा जाता है कि यह स्वतंत्र देश है और इसे बीजिंग ने कब्जाया है. इनमें से कई प्रदेश चीन से अलग होने की बात कर चुके हैं और इसका विरोध भी कर चुके हैं. इसके लिए कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी इन क्षेत्रों ने गुहार लगाई है.
हमें वामपंथी सोच को समझने की जरूरत है. चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व व्यापार संगठन जैसे कई अन्य अंतरराष्ट्रीय मुख्य संस्थानों पर अपना एकाधिकार जमाना चाहता है. उन्होंने कहा कि सप्लाई चैन पर चीन का कंट्रोल होना बहुत बड़ा खतरा है. व्यापार में चीन का एकाधिकार लाने का प्रयास करना एक बहुत बड़ा खतरा है. इस्लामिक देशों को जिस तरीके से चीनी वामपंथी सरकार कर्ज के रूप में सहयोग करने का दिखावा कर रही है. यह भी एक बहुत बड़ा खतरा बन कर वैश्विक स्तर पर उभर रहा है.
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान जिस प्रकार से यह कह रहा है कि हमारा चीन से बहुत अच्छा संबंध है. मानो ऐसा कि “समुद्र से भी गहरा है और शहद से भी मीठा” मगर यह सिर्फ कहने वाली बात है. चीन के कर्ज देने वाले झांसे में पाकिस्तान बुरी तरीके से फंस चुका है. कर्ज में डूबे रहने की वजह से पाकिस्तान ने जब छूट मांगी तो चीन ने पाकिस्तान से लीज पर कुछ जमीनों को मांग लिया है. यही हाल तुर्की के साथ हुआ. जब तुर्की ने चीन से कोरोना वायरस की वैक्सीन मांगी तो उसके बदले में चीन ने तुर्की से उइगर मुस्लिम नेताओं की मांग कर ली. इन परिस्थितियों में तुर्की सिर्फ देखता रह गया और वैक्सीन के बदले उसे उइगर मुस्लिम नेताओं को चीन को सौंपना पड़ा.
उन्होंने कहा कि चीन आतंकवाद को बाहर बढ़ावा दे रहा है. मगर अपने देश में मुस्लिमों को मस्जिद में ना नमाज पढ़ने दे रहा है और ना ही अन्य कोई इस्लामिक कार्य करने दे रहा है. इतिहास में जब देखा जाए, तब जितने भी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करार हुए हैं तो यह साफ देखा और समझा जा सकता है कि तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान, दक्षिण मंगोलिया, मंचूरिया यह कभी भी चीन का हिस्सा रहे ही नहीं. यह सारे प्रान्तों ने हमेशा से स्वतंत्र जीवन जिया है.
बीजिंग जिसे मीडिल किंगडम कहा जाता है, उससे इन क्षेत्रों की परंपरा से कोई मेल नहीं खाता है. चीन का पहला शिकार 1919 में साउथ मंगोलिया था. उसके बाद से यह लगातार अपनी विस्तारवादी नीतियों को बढ़ाते चले गए. इसके बाद से ही दूसरों को गुलाम बनाने का व्यवहार चीनी वामपंथियों में बड़े स्तर पर आ गया. फिर मंचूरिया को कब्जे में ले लिया, उसी समय पहली बार मंचूरिया पर कब्जा करने के दौरान चीन और सोवियत संघ आमने-सामने आए.
उन्होंने बताया कि तिब्बत हमारा प्राकृतिक बॉर्डर रहा है. चीन ने 12 क्षेत्रों पर अपने विस्तारवादी नीति के तहत कब्जा कर लिया है. उनके द्वारा यह बताया गया कि जिन क्षेत्रों में चीनी परंपरा नहीं थी, उन क्षेत्रों का विकास हान चीनियों द्वारा ही किया गया. यहां तक कि इन क्षेत्रों की महिलाओं को जबरदस्ती चीनियों से शादी करने के लिए दबाव बनाया गया ताकि चीनी परंपरा की शुरुआत इन क्षेत्रों में हो जाए. चीनी परंपरा और वामपंथ के प्रभुत्व को मानने के लिए इन क्षेत्रों के लोगों को मजबूर किया जाता है. इनके साथ क्रूरता की जाती है, इन्हें प्रताड़ित किया जाता है ताकि यह चीनी परंपरा में ढल सकें. मानसिक तौर पर चीनी सरकार द्वारा इन क्षेत्रों के लोगों पर दबाव बनाया जाता है.
चीन की वामपंथी सरकार ने तियानमेन नरसंहार की 32वीं बरसी पर हांगकांग में किसी भी प्रदर्शन को करने के लिए पूरी तरह प्रतिबंध था.
उन्होंने बताया कि हांगकांग जैसे छोटे से शहर में 3 हजार पुलिस कर्मी तैनात किए गए थे. चीन पूरे विश्व में अपना शासन चलाना चाहता है. उसकी यह कोशिश है कि विश्व के सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में उसका एकाधिकार स्थापित हो जाए, वह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को ध्वस्त करना चाहता है.
उन्होंने कहा कि हमें चीन को पीछे छोड़ने के लिए चीन की निर्भरता को खत्म करने की जरूरत है. देश में आत्मनिर्भरता बढ़ना बहुत जरूरी है. चीन ने पिछले 4 सालों में 1600 हजार डॉलर अपनी सकारात्मक खबरों के फैलाव के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया और भारत के कई वामपंथी मीडिया संस्थानों में भी निवेश किया है.