काशी (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेन्द्र ठाकुर ने तीर्थाटन की मौलिकता, धार्मिक महत्व, आध्यात्मिकता बनी रहनी चाहिए, यह संदेश युवा पीढ़ी में अनिवार्य रूप से पहुंचे. भारत की जो आध्यात्मिकता और जीवन शैली है, उस कारण दुनिया हमारी और आशान्वित होकर देखती है. क्या भारत का समाज इसके लिए तैयार है कि वह दुनिया को आध्यात्मिक मार्गदर्शन दे सके. वे विश्व संवाद केन्द्र, काशी न्यास द्वारा प्रकाशित विशिष्ट स्मारिका ‘तीर्थरूप काशी’ के लोकार्पण कार्यक्रम में सम्बोधित कर रहे थे.
मंगलवार को लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र, काशी कार्यालय पर लोकार्पण कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि काशी ज्ञान एवं समरसता की भूमि है. भारत में जन्मे सभी मतपंथों का स्थान काशी में है. यहां तीर्थ क्षेत्रों में सम्पूर्ण समाज बिना भेदभाव के प्रवेश कर सकता है. तीर्थरूप काशी स्मारिका में समरसता का यही भाव निहित है. स्वाधीनता के अमृत महोत्सव आयोजन में यह तथ्य सामने आया कि भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन को 75 वर्ष बाद भी हम नहीं जान पाये थे. वास्तव में यह आन्दोलन स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज हेतु था.
विशिष्ट अतिथि श्रीकाशी विश्वनाथ मन्दिर न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि काशी साहित्यिक दीप्त चेतना का प्रत्यक्ष स्थान है. तीर्थ का एक अभिप्राय जल से भी है. काशी के सभी कुण्ड और तालाब तीर्थ रूप है. तीर्थों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकना समाज के सभी बुद्धजीवियों का कार्य है. विशिष्ट स्मारिका के अतिथि सम्पादक रामाशीष सिंह ने कहा कि काशी के शिव राम-नाम को जपते हुए गलियों में विचरते रहते हैं. इसी काशी में आद्य शंकराचार्य ने महामाया से ज्ञान प्राप्त किया. विश्व का सर्वाधिक प्राचीन काव्य रामायण है. रामायण का उद्घाटन काशी में ही हुआ था. काशी में ही तुलसीदास ने रामलीला की परम्परा प्रारम्भ की. प्रधान सम्पादक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने स्मारिका परिचय कराते हुए बताया कि स्मारिका में हिन्दू जैन, बौद्ध, सिक्ख सहित सभी मतपंथों के विषय सम्मिलित हैं. मंदिरों की नगरी काशी के अधिकतम मन्दिरों का इतिहास देने का प्रयास किया गया है. कार्यक्रम में उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ. वीरेन्द्र जायसवाल ने कहा कि काशी एक सांस्कृतिक अनुभव है. इसका वर्णन दस पुस्तकों में भी नहीं किया जा सकता. परन्तु फिर भी इस पत्रिका द्वारा काशी के शिव को समझाने का प्रयास प्रशंसनीय है. कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों ने भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया. मंगलाचरण वेंकट रमन ने किया, स्वागत सम्बोधन न्यास के उपाध्यक्ष डॉ. हेमन्त गुप्त एवं अतिथि परिचय स्मारिका के प्रबन्ध सम्पादक नागेन्द्र द्विवेदी ने किया.