मिथिला पेंटिंग में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दुलारी देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. लेकिन उनका यहां तक का सफर आसान नहीं था. दुलारी देवी कभी घर चलाने के लिए अपनी मां के साथ पड़ोस में रहने वाली मिथिला पेंटिंग की प्रसिद्ध कलाकार महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी के घर झाड़ू-पोंछा का काम करती थीं. इसी दौरान महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी को पेंटिंग करते हुए देख दुलारी देवी भी पेंटिंग करने लगीं. बिहार के मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली 55 वर्षीया दुलारी देवी ने कभी स्कूल की सीढ़ियां नहीं चढ़ीं. लेकिन, आज वह किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. इस सफळता के पीछे उनका कठोर परिश्रम और लगन है.
“मैंने जीवन में बहुत गरीबी देखी है. मुझे पेंटिंग बनाना पसंद है और आज इसी की बदौलत मुझे इज्जत और सम्मान मिल रहा है.”
दुलारी देवी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. परिवार मेहनत मजदूरी कर अपना गुजारा करता था. दुलारी देवी की कम उम्र में शादी, और बच्चे के जन्म के 6 माह बाद ही बच्चे की मौत ने पूरी तरह से तोड़ दिया. लेकिन, दुलारी देवी ने स्वयं को संभाला. 2 साल बाद वह अपने मायके आ गयीं.
दुलारी देवी को मिथिला पेंटिंग का शौक तो था, लेकिन इतने पैसे नहीं थे कि वह रंग, कागज़ और कपड़े ख़रीद पातीं. इसी दौरान उनकी लगन को देखते हुए कर्पूरी देवी ने उनकी मदद की और पेंटिंग की बारीकियां सिखाईं. 1983 में प्रख्यात पेंटर गौरी मिश्रा ने महिलाओं को मिथिला पेंटिंग सिखाने और उनके काम को प्रमोट करने के लिए एक संस्था बनाई थी. कर्पूरी देवी की मदद से दुलारी देवी को वहां सीखने का अवसर मिला.
विदेशों से लोग कलाकारों से मिलने और पेंटिंग खरीदने आते रहते हैं. पेंटिंग से जुड़ी पहली कमाई के बारे में बात करते हुए बताया कि जापान से आए कुछ मेहमानों ने उनसे पेंटिंग वाले सात पोस्टकार्ड्स खरीदे थे और एक कार्ड की कीमत मात्र पांच रुपये थी.
इसके बाद दुलारी देवी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब तक अलग-अलग विषयों पर लगभग 8 हजार पेंटिंग बना चुकी हैं. दुलारी देवी की बनाई पेंटिंग दुनिया भर के कई प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों के साथ ही इग्नू द्वारा तैयार मैथिली भाषा के पाठ्यक्रम के मुख्यपृष्ठ पर भी छप चुकी हैं. दुलारी देवी की बनाई पेंटिंग ‘फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश’ के अलावा मार्टिन ली कॉज की फ्रेंच में लिखी पुस्तकों की भी शोभा बढ़ा रही है.