नई दिल्ली. 73वें संविधान संशोधन अधिनियनम-1992 के अधीन 1996 में बने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, जिसे पेसा क़ानून भी कहा जाता है, को 25 वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है. पाँचवीं अनुसूची के 10 राज्यों; महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हि.प्र; म.प्र; छ.ग; झारखंड व उड़ीसा में से आख़िरी 4 राज्यों ने तो इस क़ानून के नियम भी अभी तक नहीं बनाए हैं. इस कारण राज्य के जनजाति लोग इसके लाभ से अभी तक वंचित हैं.
वनवासी कल्याण आश्रम ने केंद्र सरकार से माँग की कि इस क़ानून के रजत जयंति वर्ष में सभी 10 राज्यों से मिलकर, उनको निर्देश देकर मिशन मोड में लागू किया जाए. कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाक्टर एचके नागू के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल 6 जुलाई को पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से उनके कार्यालय में मिला. चर्चा के समय केंद्रीय पंचायत सचिव सुनील कुमार भी उपस्थित रहे. शिष्टमंडल में वनवामी कल्याण आश्रम के संयुक्त महामंत्री विष्णु कांत-दिल्ली, जनजाति हितरक्षा प्रमुख गिरीश कुबेर-हैदराबाद और कालूसिंह मुजाल्दा-इंदौर भी सम्मिलित थे.
क़ानून ने जनजातियों को ग्रामसभा के जरिये अपने गाँव में शासन-प्रशासन की स्वायत्तता दी है, लघु-खनिज व लघु जल-स्रोतों के प्रबंधन और उपयोग तथा लघु-वनोपजों पर मालिकाना हक़ दिया है. इस क़ानून ने सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का चयन, बजट के उपयोग का प्रमाणन, नशाबंदी पर रोक या उसे विनियमित करने, अपने परस्पर के छोटे झगड़े परम्परागत ढंग से निपटाने, अपनी संस्कृति के संरक्षण, साहूकारी व्यवसाय-ब्याजखोरी पर नियंत्रण, स्थानीय हाट-बाज़ारों के प्रबंधन, भूमि हस्तांतरण जैसे 29 विषयों का अधिकार निचली पंचायत – ग्राम सभाओं को दिये हैं. पर, इन राज्यों ने राजस्व गाँवों को ही पेसा गाँव घोषित कर दिया, जबकि इस क़ानून में टोला, पाडा या बस्तियों को अलग पेसा गाँव घोषित करना होता है.
ग्राम सभाओं को पंचायत कोष में से निश्चित राशि स्थानीय विकास हेतु देने का नियम है. परंतु इन्हें कोई धनराशि उपलब्ध नहीं कराई जाती. कानून लागू नहीं होने से कुछ स्वार्थी तत्व इसकी आड़ में लोगों को भ्रमित कर पत्थलगढी जैसे कामों से अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं.
शिष्टमंडल ने मांग की कि केंद्र को इन 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों व राज्यपालों का अलग सम्मेलन बुलाकर इसके रास्ते में आ रही बाधाओं को दूर करना चाहिये. जैसी प्रतिबद्धता वन व जनजाति मंत्रालय ने गत दिनों एक संयुक्त परिपत्र जारी कर वनाधिकार क़ानून को लागू करके प्रकट की है, वैसा ही संयुक्त परिपत्र इसे लागू करने के लिये भी जारी किया जाए.