नई दिल्ली. भारत की आजादी के लिए भारत में हर ओर लोग प्रयत्न कर रहे थे. पर अनेक वीर ऐसे थे, जो विदेशों में आजादी की अलख जगा रहे थे. वे भारत के क्रान्तिकारियों को अस्त्र-शस्त्र भेजते थे. ऐसे ही एक क्रान्तिवीर थे – सरदार सेवासिंह, जो कनाडा में रहकर यह काम कर रहे थे. सेवासिंह मूलतः पंजाब के रहने वाले थे, पर वे अपने अनेक मित्रों एवं सम्बन्धियों की तरह काम की खोज में कनाडा चले गये थे. उनके दिल में देश को स्वतन्त्र कराने की आग जल रही थी. प्रवासी सिक्खों को अंग्रेज अधिकारी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे. मिस्टर हॉप्सिन नामक एक अधिकारी ने एक देशद्रोही बेलासिंह को अपने साथ मिलाकर दो सगे भाइयों भागा सिंह और वतन सिंह की गुरुद्वारे में हत्या करवा दी. इससे सेवासिंह की आंखों में खून उतर आया. उन्होंने सोचा कि यदि हॉप्सिन को सजा नहीं दी गयी, तो वह इसी तरह अन्य भारतीयों की भी हत्याएं करवाता रहेगा.
सेवासिंह ने हॉप्सिन को दोस्ती के जाल में फंसाकर मारने की योजना बनाई. इसलिए उसने हॉप्सिन से अच्छे सम्बन्ध बना लिये. हॉप्सिन ने सेवासिंह को लालच दिया कि यदि वह बलवन्त सिंह को मार दे, तो उसे अच्छी नौकरी दिला दी जाएगी. सेवासिंह इसके लिए तैयार हो गया. हॉप्सिन ने उसे इसके लिए एक पिस्तौल और सैकड़ों कारतूस दिये. सेवासिंह ने उसे वचन दिया कि शिकार कर उसे पिस्तौल वापस दे देगा. अब सेवासिंह ने अपना पैसा खर्च कर सैकड़ों अन्य कारतूस भी खरीदे और निशानेबाजी का खूब अभ्यास किया. जब उनका हाथ सध गया, तो वह हॉप्सिन की कोठी पर जा पहुंचा. उनके वहां आने पर कोई रोक नहीं थी. चौकीदार उन्हें पहचानता ही था. सेवासिंह के हाथ में पिस्तौल थी.
यह देखकर हॉप्सिन ने ओट में होकर उसका हाथ पकड़ लिया. सेवासिंह एक बार तो हतप्रभ रह गया, पर फिर संभल कर बोला,‘‘ये पिस्तौल आप रख लें. इसके कारण लोग मुझे अंग्रेजों का मुखबिर समझने लगे हैं.’’ इस पर हॉप्सिन ने क्षमा मांगते हुए उसे फिर से पिस्तौल सौंप दी. अगले दिन न्यायालय में वतन सिंह हत्याकांड में गवाह के रूप में सेवासिंह की पेशी थी. हॉप्सिन भी वहां मौजूद था. जज ने सेवासिंह से पूछा, जब वतन सिंह की हत्या हुई, तो क्या तुम वहीं थे. सेवासिंह ने हां कहा. जज ने फिर पूछा, हत्या कैसे हुई ? सेवासिंह ने देखा कि हॉप्सिन उसके बिल्कुल पास ही है. उसने जेब से भरी हुई पिस्तौल निकाली और हॉप्सिन पर खाली करते हुए बोला – इस तरह. हॉप्सिन का वहीं प्राणान्त हो गया.
न्यायालय में खलबली मच गयी. सेवासिंह ने पिस्तौल हॉप्सिन के ऊपर फेंकी और कहा, ‘‘ले संभाल अपनी पिस्तौल. अपने वचन के अनुसार मैं शिकार कर इसे लौटा रहा हूँ.’’ सेवासिंह को पकड़ लिया गया. उन्होंने भागने या बचने का कोई प्रयास नहीं किया, क्योंकि वह तो बलिदानी बाना पहन चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हॉप्सिन को जानबूझ कर मारा है. यह दो देशभक्तों की हत्या का बदला है. जो गालियां भारतीयों को दी जाती है, उनकी कीमत मैंने वसूल ली है. जय हिन्द.’’
उस दिन के बाद पूरे कनाडा में भारतीयों को गाली देने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. 11 जनवरी, 1915 को इस वीर को बैंकूवर की जेल में फांसी दी गयी.